MCD: देश की राजधानी की पहचान यहां की सुंदरता, बेहतरीन नगरीकरण व्यवस्था और सुशासन से होती है।बात अगर राजधानी दिल्ली की हो तो एकाएक नाम आता है दिल्ली नगर निगम का। दिल्ली नगर निगम देश ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा नागरिक निकाय के रूप में पहचान बना चुका है।दिल्ली के लोगों को बेहतर सेवाएं देने के लिए दिल्ली नगर निगम 7 अप्रैल, 1985 को अस्तित्व में आया।दिल्ली का बढ़ता क्षेत्रफल और पर्याप्त विकास को ध्यान में रखते हुए वर्तमान में यहां दिल्ली नगर निगम के अलावा दो अन्य एजेंसियां नई दिल्ली नगर पालिका परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड राजधानी में सफाई से लेकर सड़क एवं मूलभूत सुविधाओं के लिए काम कर रहे हैं।दिल्ली नगर निगम आजकल निगम चुनावों की घोषणा के साथ सुर्खियों में बना हुआ है।निगम ने अपने गठन से लेकर विभाजन तक कई पड़ाव देखे हैं।आइए खबर के जरिये जानते हैं ऐसे ही अनछुए पहलू।
MCD: नगरपालिका की पहली नियमित बैठक 23 अप्रैल 1863 को हुई
MCD: बात शुरू होती है अंग्रेजों के उस दौर से जब दिल्ली में स्वायत्त शासन को कोई अभिलिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है।वर्ष 1862 में किसी एक प्रकार की नगरपालिका के सबूत जरूर मौजूद हैं। तत्कालीन पंजाब सरकार की एक अधिसूचना के अनुसार दिनांक 13 दिसंबर 1862 में 1850 का अधिनियम दिल्ली में लागू हुआ था। नगरपालिका की पहली नियमित बैठक 23 अप्रैल 1863 को हुई थी। जिसमें स्थानीय नागरिक आमंत्रित किए गए थे।1 जून 1863 को आयोजित बैठक की अध्यक्षता दिल्ली के कमिश्नर ने की थी। इस दौरान उपयुक्त ढंग से उसके कार्यवृत लिखे गए थे।
MCD: निगम की पुरानी यादों का दर्पण है Town Hall
MCD: दिल्ली का दिल यानी चांदनी चौक में मौजूद ऐतिहासिक टाउन हॉल दिल्ली के पहले निकाय का गवाह बन चुका है।जिसका निर्माण वर्ष 1866 में पूरा हुआ था। इसके निर्माण में उस समय 1.86 लाख रुपये की लागत आई थी। पहले इसे लारेंस इंस्टीट्यूट के नाम से जाना जाता था।हालंकि बाद में इसे इंस्टीट्यूट बिल्डिंग के नाम से भी पुकारा गया। सन् 1864 और 1869 के मध्य में टाउन हॉल में एक घंटाघर का निर्माण किया गया। उस समय इस पर 22 हजार 136 रुपये की लागत आई थी। वर्ष 1874 में नगरपालिका ने सरकारी संपत्तियों का हस्तांतरण किया।
MCD: दिल्ली दरबार के दौरान हुआ व्यापक फेरबदल
कोलकाता से दिल्ली राजधानी लाने के बाद 1911 में भव्य दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया।इसी दौरान नगरपालिका के गठन में पुनः परिवर्तन किया गया। पदेन सदस्यों की संख्या 3 तक सीमित कर दी गई। निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या घटाकर 11 कर दी गई।मनोनीत सदस्यों की संख्या भी निर्वाचित होने वाले सदस्यों के बराबर यानी 11 तक कर दी गई।सन् 1921-22 में नियमों में पुनः संशोधन हुआ तो नगर को 12 वार्ड में विभाजित किया गया। जहां एक हिंदू तो एक मुस्लिम सदस्य को चुनकर भेजा जाता था। कुछ समय बाद सदस्यों की संख्या बढ़कर 36 हुई।इसमें 2 पदेन 4 सदस्यों को मनोनीत करने की व्यवस्था हुई। विशिष्ट अभिरुचि द्वारा चुने गए 6 सदस्य तथा वार्ड 24 सदस्य चुने जाते थे।
MCD: शेख हबीबुर्रहमान बने पहले निर्वाचित अध्यक्ष
वर्ष 1946 में लोगों को यहां अपने प्रेसीडेंट चुनने का अधिकार दिया गया। शेख हबीबुर्रहमान यहां के पहले निर्वाचित अध्यक्ष थे, लेकिन भारत आजाद होने पर हुए विभाजन के दौरान हबीबुर्रहमान पाकिस्तान चले गए। इनके बाद डा. युद्धवीर सिंह को उनके स्थान पर अध्यक्ष चुना गया। वस्यक मताधिकार के अधिकार पर नियमित चुनाव 15 अक्टूबर 1951 को हुए। सदस्यों की संख्या बढ़कर 63 हो गई, जिसमें 50 सदस्य निर्वाचन द्वारा आते थे। हालांकि कुल निर्वाचन क्षेत्र 47 ही थे। ऐसे में 3 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे थे जहां पर अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व होने की वजह से वहां 2 सदस्य चुने जाते थे।7 अप्रैल 1958 को संसद एक्ट के तहत एमसीडी अस्तित्व में आया और पंडित त्रिलोक चंद शर्मा दिल्ली के पहले मेयर बने।
साल 1967 में निगम के सदस्यों की संख्या 80 से बढ़ाकर 100 कर दी गई।जबकि 6 एल्डरमैन पहले की तरह यथावत रहे। 24 मार्च 1975 को निगम भंग कर दिया गया।निगम की पांचवी अवधि के लिए चुनाव 12 जून 1977 को हुए। 11 अप्रैल 1980 को गृह मंत्रालय के आदेश के तहत निगम को छह मास के लिए भंग कर दिया गया।
MCD: मार्च 22 में फिर एक हुआ निगम
केंद्र सरकार ने इस वर्ष 2022 में दिल्ली के नगर निगमों को एक करने का फैसला लिया। सरकार ने इस फैसले पर मुहर लगाते हुए 3 की बजाय 1 निगम की बात कही। इसके साथ ही पूरी दिल्ली में एक ही महापौर होने पर जोर दिया।मालूम हो कि वर्ष 2012 में तत्कालीन शीला दीक्षित सरका ने निगम को 3 हिस्सों में बांट दिया था। जिसके तहत साउथ दिल्ली, नॉर्थ दिल्ली, ईस्ट दिल्ली शामिल थे। एसडीएमसी में सेंटर, साउथ वेस्ट और नजफगढ़ के इलाके आते हैं।एनडीएमसी में रोहिणी, सिविल लाइंस, करोल बाग, सदर पहाड़गंज, केशवपुरम, नरेला थे।तीसरे नगर निगम ईडीएमसी में शाहदरा नॉर्थ, शाहदरा साउथ के इलाके आते थे।
MCD: Town Hall से सिविक सेंटर पहुंचा निगम
मालूम हो अपने गठन से लेकर वर्ष 2011 तक नगर निगम का मुख्यालय चांदनी चौक स्थित टाउन हाल में था। वर्ष 2011 में सिविक सेंटर बनने के बाद दिल्ली नगर निगम का मुख्यालय यहां बना दिया गया, मगर एक साल तक ही उसका यह मुख्यालय रहा। दरअसल वर्ष 2012 में दिल्ली नगर निगम का विभाजन कर दिया गया। हालांकि पहले की तरह अब भी एकीकृत दिल्ली नगर निगम का मुख्यालय सिविक सेंटर में ही होगा। इस 28 मंजिला सिविक सेंटर में नगर निगम के समस्त विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बैठने के लिए पर्याप्त स्थान है। इसके अलावा सदन की बैठक के लिए भी बड़ा सभागार है। इस सभागार में करीब 300 सदस्य बैठ सकते हैं।
MCD: सिविक सेंटर की छत से देखिये दिल्ली
नई दिल्ली के मिंटो रोड स्थित सिविक सेंटर दिल्ली की सबसे ऊंची इमारत है, करीब 101 मीटर ऊंची इमारत की छत से आप पूरी दिल्ली को निहार सकते हैं।सिविक सेंटर की छत से दूरबीन के जरिए जामा मस्जिद, लोटस टैंपल, कुतुब मीनार, लालकिला, लोटस टैंपल आदि पर्यटन स्थलों को अच्छे से देखा जा सकता है।
इन 56 इमारतों की छत पर है दूरबीन की व्यवस्था
करीब 828 मीटर ऊंचे दुबई के ‘बुर्ज खलीफा’ में 163 मंजिलें हैं। इसकी छत पर लगी दूरबीन से शहर का नजारा दिखता है।
चीन के शंघाई टावर की ऊंचाई 632 मीटर है।128 फ्लोर की इमारत की छत पर भी दूरबीन लगी है।
दुनिया भर में 56 ऐसी इमारतों का निर्माण हो चुका है, जहां दूरबीन की मदद से पूरे शहर का दीदार कर सकते हैं। इनमें से 27 तो चीन में ही हैं।
MCD: जानिए निगम के सदन के बारे में
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले दिल्ली नगर निगम में अधिकतम सदस्य संख्या 250 है।इसके अलावा नगर निगम में प्रतिवर्ष 14 विधायकों को भी मनोनीत किया जाता है। इसमें दिल्ली के 7 लोकसभा सदस्य और 3 राज्यसभा सदस्य भी नगर निगम के सदस्य होते हैं। दिल्ली सरकार की सिफारिश पर उपराज्यपाल 10 सदस्य मनोनीत करते हैं। इन 34 सदस्यों को भी सदन की बैठक में बैठने का अधिकार मिलता है। सिविक सेंटर के ए ब्लॉक में महापौर, उपमहापौर, राजनीतिक दलों के कार्यालय और विभिन्न समितियों के अध्यक्षों के कार्यालयों के लिए भी पर्याप्त संख्या में कक्ष बनाए गए हैं।
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