13 सितंबर 2022 को भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) ने बताया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में 86 और निष्क्रिय पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (Registered Unrecognized Political Parties – RUPPs) को सूची से हटा दिया गया एवं इनके अलावा 253 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) को ‘निष्क्रिय पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों’ के रूप में घोषित कर दिया गया.
पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को निर्वाचन आयोग द्वारा असूचीबद्ध करने का कारण
निष्क्रिय पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल
चुनाव आयोग (Election Commission) के अनुसार, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत, देश के किसी भी हिस्से में सक्रिय हरेक राजनीतिक दल को अपने नाम, प्रधान कार्यालय, पदाधिकारियों, पते, पैन नंबर आदी में हुए किसी भी बदलाव के बारे में बिना किसी देरी के आयोग को सूचित करना होता है.
निष्क्रिय घोषित किए गए 253 दलों ने निर्वाचन आयोग द्वारा भेजे गए पत्र/नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया और न ही वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा एवं राज्यसभा चुनावों में भाग लिया है.
86 दल क्यों किए गए असूचीबद्ध?
चुनाव आयोग (Election Commission) ने बताया कि संबंधित राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों द्वारा किये गए भौतिक सत्यापन के बाद या संबंधित पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के पंजीकृत पते पर भेजे गए पत्रों / नोटिस की रिपोर्ट के आधार पर 86 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों’ की ओर से कोई जवाब नही मिला.
असूचीबद्ध किए जाने के बाद ये दल निर्वाचन चिह्न (आरक्षण और आबंटन) आदेश, 1968 के तहत मिलने वाले लाभों को भी नहीं प्राप्त कर सकेंगे.
पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों
चुनाव आयोग (Election Commission) के अनुसार ऐसे नए पंजीकृत दल जो राज्य स्तरीय दल बनने के लिये विधानसभा या आम चुनावों में जरूरी मत हासिल नहीं कर पाए हैं या फिर जिन्होंने पंजीकृत होने के बाद से कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा है, उन्हें गैर-मान्यता प्राप्त दल माना जाता है. ऐसे दलों को मान्यता प्राप्त दलों को मिलने वाली सभी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है.
चुनाव चिह्न (आरक्षण और आबंटन) आदेश, 1968
चुनाव चिह्न (आरक्षण और आबंटन) आदेश, 1968 के तहत पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को सामान्य चिह्न (निशान) प्रदान किये जाते हैं.
किसी राज्य के उस समय में हो रहे विधानसभा चुनाव के संबंध में कुल उम्मीदवारों में से कम-से-कम 5 फीसदी उम्मीदवारों को चुनाव लड़वाने के वचन के आधार पर पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को एक समान चिह्न का विशेषाधिकार दिया जाता है.
मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल
भारत में दो तरह के राजनीतिक मान्यता प्राप्त दल होते हैं, एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल या तो राष्ट्रीय दल या फिर राज्यस्तरीय दल होगा यदि वह चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित की गई शर्तों को पूरा करता है.
निर्वाचन आयोग के अनुसार राज्य या राष्ट्रीय स्तर का मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल बनने के लिये एक दल को पिछले चुनाव के दौरान राज्य विधानसभा या लोकसभा में हुए कुल मतदान के वैध (Valid) मतों का एक निश्चित न्यूनतम प्रतिशत या निश्चित संख्या में सीटें हासिल करनी होती हैं.
राजनीतिक दलों को आयोग द्वारा दी गई मान्यता उन्हें प्रतीकों (Symbols) के आबंटन, सरकारी टेलीविजन और रेडियो स्टेशनों पर राजनीतिक प्रसारण के लिये समय का प्रावधान एवं मतदाता सूची तक पहुंच जैसे कुछ विशेषाधिकारों देती है.
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों को मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ शर्तें निर्धारित की गई है-
राष्ट्रीय दलों की मान्यता प्राप्त करने के लिये शर्तें | चुनाव आयोग के अनुसार राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें |
यदि कोई दल लोकसभा या विधानसभा के आम चुनाव में किन्हीं चार या चार से अधिक राज्यों में डाले गए वैध वोटों का 6 फीसदी प्राप्त करता है और इसके अलावा यह किसी राज्य या राज्यों से लोकसभा में चार सीटें जीतता है… या आम चुनाव में लोकसभा में 2 फीसदी सीटें (11 सीट) जीतता है और इन दो फिसदी सीटों पर चुने गए उम्मीदवार तीन राज्यों से चुनकर आते हैं. या किसी दल को चार राज्यों में एक राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त है को राष्ट्रीय स्तर के दल का दर्जा दिया जाता है. | अगर कोई दल किसी राज्य में मान्यता प्राप्त दल का दर्जा चाहता है तो, संबंधित राज्य की विधानसभा चुनाव में डाले गए वैध वोटों का 6 फीसदी प्राप्त करता है और इसके साथ ही संबंधित राज्य की विधानसभा में 2 सीटें जीतता है… या संबंधित राज्य से लोकसभा चुनाव में डाले गए वैध वोटों का 6 फीसदी प्राप्त करता है और संबंधित राज्य से लोकसभा की 1 सीट जीतता है… या संबंधित राज्य के विधानसभा चुनाव में 3 फीसदी सीटें जीतता है या विधानसभा में 3 सीटें, जो भी अधिक हो… या संबंधित राज्य से लोकसभा के आम चुनाव में राज्य के लिए तय की गई प्रत्येक 25 सीटों या उसके किसी भी अंश के लिये लोकसभा में 1 सीट जीतता है… या 2011 में जोड़ी गई इस शर्त के अनुसार, राज्य से लोकसभा या राज्य विधानसभा चुनाव में राज्य में डाले गए कुल वैध वोटों का 8 फीसदी प्राप्त करता है. |
भारत निर्वाचन आयोग
भारत लंबे समय तक चले ब्रिटिश शासनकाल के बाद 1947 में आजाद हुआ. आजादी के साथ ही भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाया गया जिसके तहत भारत के लोगों द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों को ही सरकार चलाने का मौका मिल सके.
इसके साथ ही देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और निष्पक्ष तरीके से चुनाव करवाने के लिये संविधान निर्माताओं ने संविधान में भाग 15 में (अनुच्छेद 324-329) को शामिल किया और संसद को चुनावी प्रक्रिया को नियत्रिंत (Regulate) करने के लिये कानून बनाने का अधिकार दिया है.
इन्हीं कानूनी प्रावधान के तहत संसद ने जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम (RPA), 1950 और जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 अधिनियमित किया गया है.
संविधान के अनुसार 25 जनवरी 1950 को भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना की गई थी.
जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1950
जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1950 देश में निर्वाचन (लोकसभा / विधानसभा) क्षेत्रों के परिसीमन के लिये प्रक्रियाएं निर्धारित करता है. इसके अलावा लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं और विधान परिषदों में सीटों के आबंटन का प्रावधान करता है.
जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1950 ही देश में मतदाताओं की योग्यता निर्धारित करने और मतदाता सूचियों को तैयार करने और सीटों को भरने के तरीके के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है.
जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951
निर्वाचन आयोग, जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत चुनाव (Election) और उप-चुनावों (By-Elections) के संचालन को नियंत्रित करता है. इसी अधिनियम के तहत चुनाव आयोग को चुनाव कराने के लिये प्रशासनिक मशीनरी प्रदान की जाती है.
जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951, राजनीतिक दलों के पंजीकरण (Registration) से भी संबंधित है. इसी अधिनियम के तहत ही सदनों (लोकसभा / राज्यसभा / विधानसभा / विधानपरिषद) की सदस्यता के लिये अर्हताओं और अयोग्यताओं (Qualification and Disqualification) को तय करता है.
इसमें भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों पर अंकुश लगाने के प्रावधान किये गए हैं. इसमें चुनावों से उत्पन्न संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है.
चुनाव चिह्न (आरक्षण और आबंटन) आदेश, 1968 और चुनाव आयोग को मिली शक्तियां
इस आदेश के तहत चुनाव आयोग दलों में चल रहे आपसी विवाद या विलय (Merger) के मुद्दों का फैसला करने के लिये एकमात्र प्राधिकरण है. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1971 में सादिक अली और एक अन्य बनाम भारत निर्वाचन आयोग के मामले में इसको बरकरार रखा.
चुनाव चिह्न (आरक्षण और आबंटन) आदेश, 1968 आदेश के पैरा 15 के तहत चुनाव आयोग प्रतिद्वंद्वी समूहों या किसी भी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के दो या दो से अधिक समूह के मध्य चल रहे झगड़ों का भी फैसला कर सकता है. यह मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों के विवादों पर लागू होता है.
पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों में उपजे विवाद के मामलों में चुनाव आयोग विवाद में शामिल गुटों को अपने मतभेदों को खुद से हल करने या फिर अदालत जाने की सलाह देता है.