Supreme Court ने कहा महाराष्ट्र और कर्नाटक कृष्‍णा नदी जल बंटवारे का मध्‍यस्‍थता से निकालें हल

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Supreme Court : महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच कृष्‍णा नदी जल बंटवारा के मसले पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान वकील श्‍याम दीवान ने कहा कि दोनों पक्ष इस मामले में संवैधानिक पीठ के गठन की मांग कर रहे हैं। इस पर CJI ने संवैधानिक पीठ के गठन का आश्वासन देते हुए कहा, कि हम इसे देखेंगे साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आप दोनों लोग इस मामले में समझौता नहीं कर लेते। क्या इस विवाद का हल मध्यस्थता के जरिये हल नहीं हो सकता ? वकील श्याम दीवान ने कहा मध्यस्थता के जरिए कुछ मामले हल हो सकते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय कोर्ट का ही मान्‍य है।

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Supreme Court : जानें महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच कृष्‍णा नदी जल बंटवारा विवाद

कृष्णा नदी महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से निकलती हुई महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। अपनी सहायक नदियों के साथ कृष्णा नदी एक विशाल बेसिन का निर्माण करती है। कृष्णा नदी जल विवाद मुख्यतः कृष्णा नदी के जल के बंटवारे से संबंधित है, जो कई दशकों से चल रहा है। इस विवाद की शुरुआत पूर्ववर्ती हैदराबाद एवं मैसूर राज्यों के साथ हुई थी तथा बाद में महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के बीच भी जारी रहा।

कृष्णा नदी जल विवाद के समाधान के लिए वर्ष 1969 में कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण (Krishna Water Disputes Tribunal-KWDT) की स्थापना की गई थी। इस न्यायाधिकरण ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1973 में प्रस्तुत की, जिसे वर्ष 1976 में प्रकाशित किया गया।

न्यायाधिकरण ने कृष्णा नदी के 2060 हजार मिलियन घन फीट (Thousand Million Cubic Feet-TMC) जल का तीनों राज्यों में विभाजन कर दिया था। राज्यों के मध्य विवाद बढ़ने के बाद वर्ष 2004 में दूसरा कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण स्थापित किया गया।

जिसने वर्ष 2010 में पिछले 47 वर्षों से पानी के प्रवाह के डाटा पर पनी अंतिम रिपोर्ट पेश की। KWDT 2 द्वारा दिए गए अंतिम फैसले के अनुसार, महाराष्ट्र को 666 TMC, कर्नाटक को 911 TMC और आंध्र प्रदेश को 1001 TMC जल दिया गया। KWDT 2 का यह अंतिम फैसला वर्ष 2050 तक मान्य होगा। वर्ष 2014 में तेलंगाना के निर्माण के बाद आंध्र प्रदेश ने KWDT 2 द्वारा दिए गए फैसले और वर्ष 2013 में उसके द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।

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