Nepal चुनाव के नतीजे आने के बाद भी क्यों नहीं बन पा रही है सरकार, जानिए क्या है पूरा मामला

चुनाव पूर्व आये नतीजों में किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, जिसके चलते भी सरकार बनने में देरी हो रही है। सोमवार 19 दिसंबर 2022 को Nepal की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नई सरकार के गठन के लिए सभी राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर 25 दिसंबर तक का समय दिया है।

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Nepal Election

भारत के पड़ोसी देश नेपाल (Nepal) में 20 नवंबर 2022 को हुए आम चुनाव (Election) के साथ-साथ विधानसभा चुनाव के नतीजों को आए हुए कई दिन बीत गये हैं लेकिन अभी तक सरकार नहीं बन पाई है। नेपाल में 2015 में संविधान (Constitution) के बदले जाने के बाद से ये दूसरे चुनाव हैं। नया प्रधानमंत्री मिलने में लगातार हो रही देरी के चलते नेपाल में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है।

नेपाल में 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद दस बार सरकारें बदल चुकी हैं और अभी हुए चुनाव में भी त्रिशंकु संसद होने के चलते किसी भी दल या गठबंधन ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया है। नेपाल में 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा वोटर हैं।

कैसे ओर कितनी सीटों पर होते हैं नेपाल में चुनाव?

20 नवंबर 2022 को नेपाल के हाऊस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (संसद) और प्रांतीय विधानसभाओं के लिए चुनाव (Election) हुए थे। नेपाल की संसद में कुल 275 सीटें हैं जिनमें से 165 सीटों पर फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (FTTP) व्यवस्था के तहत चुनाव हुआ था। इन 165 सीटों के लिए कुल 2,412 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। वहीं, बाकी की बची हुई 110 सीटों पर आनुपातिक प्रतिनिधि (Proportional Representation) व्यवस्था के तहत सदस्यों का चुनाव होगा। नेपाल में संसद और सभी 7 प्रांतों में एक साथ चुनाव होते हैं।

नेपाल में संसद के अलावा प्रांतीय विधानसभा की 330 सीटों के लिए भी चुनाव हुए थे। इन 330 सीटों के लिए कुल 3,224 उम्मीदवार मैदान में थे। इन 330 सीटों पर फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (First Past The Post) व्यवस्था के तहत चुनाव हो रहा है जबकि बाकी की बची हुई 220 सीटों पर सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के तहत होगा। चुनाव नतीजों के बाद ही ये तय होगा आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के तहत किस पार्टी को संसद और विधानसभाओं में कितनी सीटें मिलेंगी।

पूर्ववर्ती ओली सरकार के कार्यकाल में भारत के साथ बढ़ी थी तकरार

नवंबर में हुए चुनावों से पहले प्रचार के दौरान पूर्व नेपाली पीएम के पी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने कहा था कि वो प्रधानमंत्री बनते ही भारत के साथ चल रहे सीमा विवाद हल कर देंगे। वे देश की एक इंच भूमि भी जाने नहीं देंगे। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि 2 साल से ज्यादा सत्ता में रहने के बावजूद ओली ने इस विवाद को हल करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।

KP Sharma Oli
KP Sharma Oli

बतौर प्रधानमंत्री ओली ने कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा जो भारत के हिस्सें हैं को नेपाल में दर्शाता हुआ नया नक्षा (Map) जारी कर दिया था जिसको लेकर खासा विवाद हुआ था। भारत इन्हें अपने उत्तराखंड प्रांत का हिस्सा मानता है। ओली ने इस नक्शे को नेपाली संसद में पास भी करा लिया था। ओली राष्ट्रवादी मुद्दों को उछाल कर स्विंग वोटरों को अपने पक्ष में साधने में जुटे हुए थे।

प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) और भारत

नेपाली कांग्रेस के मुखिया और वर्तमान में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि उकसाने और शब्दों की लड़ाई की बजाय वो भारत के साथ कूटनीति और बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने 2022 में भारत की यात्रा भी की थी।

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क्या है मौजूदा स्थिति?

नेपाल में 20 नवंबर को हुए चुनाव के बाद भी किसी भी पार्टी की सरकार नहीं बन पाई है। चुनाव पूर्व आये नतीजों में किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, जिसके चलते भी सरकार बनने में देरी हो रही है। सोमवार 19 दिसंबर 2022 को नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नई सरकार के गठन के लिए सभी राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर 25 दिसंबर तक का समय दिया है।

क्या है दलों की स्थिति?

चुनाव नतीजों में नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन को 136 सीटें मिली हैं लेकिन 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में बहुमत के आंकड़ें को छुने के लिए कम से कम 138 सीटें चाहिए। इसका अर्थ ये हुआ कि पीएम देउबा के नेतृत्व वाले गठबंधन को सरकार बनाने के लिए दो सीटें और चाहिए।

Sher Bahadur Deuba
Sher Bahadur Deuba

चुनाव में दूसरे सबसे बड़े गठबंधन पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की नेतृत्व वाले नेपाल कम्युनिस्ट एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (यूएमएल) को 76 सीटें मिली हैं और उनके गठबंधन के पास सहयोगियों के साथ कुल 104 सीटें हैं जो बहुमत के जादुई आंकड़े से काफी दूर हैं। इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल माओवादी केंद्र (सीपीएन- माओइस्ट सेंटर) को नवंबर में हुए चुनाव में कुल 32 सीटें हासिल हुई हैं जिनमें से 18 सीधे चुनाव में और 14 समानुपातिक प्रतिनिधित्व मिली हैं।

चुनाव के अंतिम नतीजों में नेपाली कांग्रेस को 57, नेकपा एमाले को 44, नेकपा माओवादी केंद्र को 18 नेकपा एकीकृत समाजवादी को 7, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी को 7, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को 7, जनता समाजवादी पार्टी को भी 7 सीटों के अलावा निर्दलीयों एवं अन्य को 15 सीटें मिलीं हैं।

कहां अटक रहा है मामला?

नेपाल पर नजर रखने वाले कई विशेषज्ञ कह रहें हैं कि प्रधानमंत्री पद की दावेदारी में कई नामों के होने की वजह से भी सरकार बनाने में देरी हो रही है। नेपाली कांग्रेस के मुखिया शेर बहादुर देउबा जो अभी प्रधानमंत्री हैं के अलावा प्रचंड ने भी पीएम पद को लेकर अपनी दावेदारी जताई है वहीं एक और पूर्व पीम केपी शर्मा ओली भी इस दौड़ में बने रहना चाहते हैं।

पूर्व पीएम प्रचंड ने कहा है कि नई सरकार बनने में उनकी पार्टी की बड़ी भूमिका होगी। प्रचंड ने चुनावों में विदेशी ताकतों के प्रभाव का भी आरोप लगाया है। हालांकि 18 दिसंबर को प्रचंड ने प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से मुलाकात की थी। मुलाकात को लेकर माना जा रहा है कि प्रचंड ने देउबा से मिलकर खुद की दावेदारी के लिए समर्थन मांगा है। नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता प्रकाश शरण ने मुलाकात को लेकर कहा कि प्रचंड ने देउबा से पांच साल के कुल कार्यकाल के लिए शुरुआती ढाई साल में प्रधानमंत्री बनने के लिए समर्थन मांगा है।

क्या है पीएम नियुक्त करने की प्रक्रिया?

2015 में स्वीकार किए गए नेपाल के नए संविधान के अनुसार, 60 प्रतिशत सीटें सीधे चुनाव से और 40 प्रतिशत सीटें वोट प्रतिशत के आधार पर तय की जाती हैं। अगर किसी को स्पष्ट बहुमत मिल जाता है तो नतीजों के घोषित होने के 30 दिन के भीतर प्रधानमंत्री को नियुक्त करना होता है। नियुक्त प्रधानमंत्री को अगले एक महीने की तक मोहलत दी जाती है कि वो संसद मे अपना बहुमत साबित करे। अगर ऐसा नहीं होता है या त्रिशंकु संसद के हालात हैं तो राष्ट्रपति को अधिकार है कि वो सदन में सबसे बड़े दल के संसदीय नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है लेकिन उसे भी एक महीने के अंदर ही बहुमत साबित करना पड़ेगा।

अगर उपर बताये गए सभी तरीकों के बाद भी बहुमत नहीं साबित होता है तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सिफीरिश पर प्रतिनिधिसभा को भंग कर करता है और छह महीने के अंदर चुनाव की घोषणा कर सकता है।

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