बिहार के दशरथ मांझी को तो आप सब लोग जानते होंगे। अगर पहले से नहीं जानते थे, तो उनके जीवन पर आई नवाजुद्दीन सिद्दकी की फिल्म देखकर जान गए होंगे। लेकिन शायद आप छत्तीसगढ़ के इस मांझी को नहीं जानते होंगे। जहां बिहार के मांझी ने लगातार 22 साल अपना दिन-रात, खून-पसीना एक कर अपने गांव वालों के लिए पहाड़ काटकर एक सड़क बनाया था, वहीं इस मांझी ने लगातार 27 साल अपना सब कुछ झोंक कर गांव वालों के लिए तालाब खोद डाला।
हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के पहाड़ गांव के श्याम लाल की, जिन्होंने अपने गांव में पानी की समस्या को दूर करने के लिए जमीन खोदकर बंजर जमीन को तालाब बना डाला। उन्होंने यह काम तब शुरू किया था जब वे महज 15 साल के किशोर थे। दरअसल उस समय श्यामलाल का पूरा गांव पानी की कमी से परेशान था। गांव वाले मवेशियों की प्यास बुझाने को लेकर मुश्किल में थे। कलेक्टर और सरकारी दफ्तरों के दर्जनों चक्कर लगाए, लेकिन कोशिश नाकाम रही। सरकारी तंत्र की इस उपेक्षा से श्यामलाल ने हिम्मत नहीं हारी बल्कि उनको इससे और हौसला मिला। इसके बाद तो बस वो जुट गए तालाब खोदने में और आज मेहनत का फल सबके सामने है। अब मवेशियों और गांव वालों को तो पानी मिल ही रहा है साथ-साध फसलें भी लहलहा रही हैं।
शुरू में दशरथ मांझी की तरह श्याम लाल के गांव वाले भी उन पर हंसते थे और उन्हें पागल समझते थे। लेकिन धीरे-धीरे सबने उनका लोहा मान लिया। अब तो घर के लोग भी उनके काम में हाथ बंटाते हैं। गांव वाले भी अब श्याम लाल को अपना आदर्श और रक्षक मानते हैं। गांव का हर व्यक्ति उनके द्वारा खोदे गए तालाब का पानी इस्तेमाल करता है। उनकी उपलब्धि पर महेंद्रगढ़ के विधायक श्याम बिहारी जायसवाल उनके गांव पहुंचे और श्याम के प्रयास के लिए उन्हें दस हजार रुपये भी दिए। जिला अधिकारी ने भी उन्हें हरसंभव सहायता का भरोसा दिलाया है।
श्याम लाल बताते हैं, ‘किसी ने मेरी मदद नहीं की, ना प्रशासन ने और ना ही गांववालों ने।’ वह कहते हैं कि उन्होंने गांव के लोगों और मवेशियों के भले के लिए यह काम किया। 27 साल के इस अथक मेहनत के बाद भी श्यामलाल रुके नहीं हैं और अब वह इस तालाब को संवारने के काम में जुट गए हैं।