Mainpuri By-Election: क्या BJP से लड़, गढ़ बचा पाएंगी डिंपल? जानिए संसदीय सीट का सियासी समीकरण

Mainpuri By-Election: मुलायम सिंह यादव सबसे पहली बार 1967 में यहां से विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993, 1996 और 2003 में भी विधायक बने। वहीं, 1982 से 1985 तक एमएलसी रहे।

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Mainpuri By-Election: समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए डिंपल यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण उपचुनाव हो रहा है। डिंपल यादव मुलायम की बहू और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव की पत्नी हैं। 10 अक्टूबर को सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के कारण यह सीट खाली हुई थी। डिंपल को चुनने के फैसले ने सियासी समझ-बूझ रखने वाले लोगों को हैरान कर दिया है, क्योंकि अखिलेश के चचेरे भाई और मैनपुरी के पूर्व लोकसभा सांसद तेज प्रताप यादव एक मजबूत दावेदार माने जा रहे थे।

Mainpuri By-Election: दमदार नहीं है डिंपल का रिकॉर्ड

डिंपल कन्नौज लोकसभा सीट से तीन बार लड़ीं। एक बार निर्विरोध जीतीं। दूसरी बार 2014 के लोकसभा चुनाव में जीतीं। उस वक्त मुलायम सिंह यादव उनके पक्ष में प्रचार करने कन्नौज गए थे। अगले लोकसभा चुनाव में मुलायम कन्नौज नहीं जा पाए। वह अपने मैनपुरी में ही व्यस्त हो गए। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का चुनावी गठजोड़ था। कन्नौज में डिंपल को कामयाबी नहीं मिली। मुलायम व मायावती अपनी बरसों पुरानी दुश्मनी भुलाकर एक मंच पर आए थे और मुलायम मैनपुरी में भारी बहुमत से जीत गए। इस बार मैनपुरी के सियासी समीकरण बदले हुए हैं।

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अखिलेश यादव के पास चार थे विकल्प

सपा नेताओं का कहना है कि मुलायम की मौत के बाद डिंपल की उम्मीदवारी से सहानुभूति वोटों को मजबूती से आकर्षित करने में मदद मिलेगी। अखिलेश यादव के पास चार विकल्प थे: तेज प्रताप यादव, चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव, डिंपल यादव या परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति। हम में से अधिकांश ने मान लिया था कि यह तेज प्रताप होगा, लेकिन अखिलेश जी ने डिंपल जी को चुना है क्योंकि वह शायद मैनपुरी में ‘नेताजी’ की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। उन्होंने कहा, ‘वह भाजपा के खिलाफ सबसे मजबूत विकल्प भी हैं। साथ ही, शिवपाल यादव (अखिलेश के अलग हुए चाचा) के लिए मुलायम सिंह यादव की बहू के खिलाफ मैनपुरी से चुनाव लड़ना अब आसान नहीं होगा।

भाजपा का कहना है कि वह सीट जीतेगी चाहे सपा ने किसी को भी मैदान में उतारा हो। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं का एक ही काम है नारे लगाना। उन्हें चुनाव टिकट नहीं मिलेगा क्योंकि उस पार्टी में केवल एक परिवार को चुनाव लड़ने का अधिकार है- वो है यादव परिवार।

मुलायम परिवार का गढ़ है मैनपुरी

बता दें कि मैनपुरी सपा मुलायम परिवार का गढ़ रहा है। यहीं से मुलायम पहली बार 1996 में सांसद चुने गए थे। उन्होंने इस सीट से तीन बार 2004, 2009 और 2019 में सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा था। 2014 के उपचुनाव में यह सीट तेज प्रताप ने जीती थी।

जबकि डिंपल दो बार कन्नौज से लोकसभा सांसद रह चुकी हैं, मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव, जो 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गईं, उन्हें भाजपा के उम्मीदवार के रूप में अपनी पारी की शुरुआत का इंतजार है। अपर्णा के करीबी सूत्रों का दावा है कि उनके पास मैनपुरी से भाजपा का टिकट हासिल करने का मौका है, हालांकि पार्टी का एक वर्ग गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवार के पक्ष में है।

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Mainpuri By-Election सपा उम्मीदवार डिंपल यादव

मैनपुरी का सियासी समीकरण

बता दें कि मैनपुरी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश राज्य के 80 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह एक जेनरल संसदीय सीट है। इसमें कुछ इटावा जिले का हिस्सा शामिल है। लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की साक्षरता दर 64.98% है। 2011 की जनगणना के अनुसार, मैनपुरी संसदीय सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 351,779 हैं। अगर ग्रामीण और शहरी मतदाता की बात करें तो यहां कुल 1,487,766 और 228,227 हैं।

अगर जातीय आंकड़ों पर नजर डाले तो इस क्षेत्र में करीब सवा चार लाख यादव मतदाता हैं। इसके अलावा करीब सवा तीन लाख शाक्य मतदाता हैं. वहीं 2.25 लाख क्षत्रिय और 1.10 लाख ब्राह्मण मतदाता हैं। दलित वोटों की बात करें तो, इसमें सबसे अधिक 1.20 लाख जाटव मतदाता हैं और एक लाख लोधी मतदाता हैं। इसके साथ ही करीब 70 हजार वैश्य और 55 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। बता दें कि, समाजवादी पार्टी इस क्षेत्र से यादव, शाक्य और मुस्लिम मतों के समीकरण पर ही लगातार चुनाव जीतती आ रही है।

पहली बार 1967 में मुलायम सिंह यादव बने थे एमएलए

गौरतलब है कि मुलायम सिंह यादव सबसे पहली बार 1967 में यहां से विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993, 1996 और 2003 में भी विधायक बने। वहीं, 1982 से 1985 तक एमएलसी रहे। उस वक्त नेता विपक्ष की भी भूमिका निभाई। बताते चले कि मुलायम सिंह यादव ने सोशलिस्ट पार्टी से सियासी सफर शुरू किया था मगर, इसके बाद लोकदल और जनता दल में भी रहे थे। अब नेताजी की विरासत संभालने की जिम्मेदारी उनकी बहू डिंपल के कंधे पर है। अब देखना ये है कि मुलायम सिंह यादव की तरह ही जनता उन्हें भी अपना आशीर्वाद देती है या नहीं!

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