Allahabad HC: मां के प्‍यार की शक्ति सर्वोपरि बताते हुए कोर्ट ने सुनाया फैसला, बच्‍चों की कस्‍टडी मां को सौंपी

Allahabad HC: एक बच्चे के जीवन में मां के प्रेम की आवश्यकता पर बल देते हुए, न्यायालय ने कहा ''बच्चे अपने माता-पिता के खेलने की चीजें नहीं हैं। उनका कल्याण सर्वोपरि है''।

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Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो बच्चों की अभिरक्षा उनकी मां को सौंपते हुए एक अहम फैसला सुनाया कहा कि एक बच्चे के जीवन में विश्वास और भावनात्मक अंतरंगता की एक मजबूत नींव स्थापित करने के लिए उसे मां का प्यार बिना किसी शर्त के मिलना चाहिए।
न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने नाबालिग बच्ची सान्या शर्मा की तरफ से मां सीमा शर्मा द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है।दोनों बच्चे अपनी दादी के साथ रह रहे हैं।मां ने उनकी नैसर्गिक संरक्षक होने के नाते अभिरक्षा की मांग की थी।कोर्ट ने मां के प्‍यार की शक्ति को सर्वोपरि बताया।

Allahabad HC: पति की आत्‍महत्‍या के बाद से बच्‍चों से अलग रह रही है मां

मामले के अनुसार सीमा शर्मा (बच्चों की मां) ने मार्च 2016 में कपिल शर्मा से शादी की थी। जिनकी मौत हो गई। इनसे 2 बच्चे पैदा हुए, जिसमें एक 5 साल की बेटी और ढाई साल का एक बेटा है।पति की आत्महत्या के मामले में सीमा शर्मा को 5 अन्य लोगों के साथ आरोपी बनाया गया है।
मामले की जांच अभी चल रही है। हालांकि अभी तक कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है। अपने पति की मृत्यु के बाद सीमा शर्मा अपनी बहन के साथ मुरादाबाद में रहने लगी। जबकि उसके छोटे बच्चे उनकी दादी ( दीपा शर्मा) के पास रह गए। इसलिए मां ने दोनों बच्चों की अभिरक्षा के लिए हाईकोर्ट का रूख किया।

कोर्ट ने कहा कानून का विशेष प्रावधान नाबालिग बच्चे की संपत्ति के अभिभावक होने के एक पिता के अधिकार को सुरक्षित रखता है।

वह बच्चे का अभिभावक नहीं है, अगर बच्चा पांच वर्ष से कम उम्र का है।कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान संरक्षकता के भेद में, अंतरिम कस्टडी के अपवाद को बताता है, और फिर निर्दिष्ट करता है।

Allahabad HC: बच्‍चों की कस्‍टडी को लेकर चल रहा झगड़ा

Allahabad HC PIC 13 Feb New 1
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जब तक बच्चा पांच साल से कम उम्र का है, तब तक बच्चे को मां की ही कस्टडी में रखा जाना चाहिए।चूंकि मां और दादी के बीच नाबालिग बच्चों की कस्टडी को लेकर झगड़ा चल रहा है।

इस कारण कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मां उन बच्चों की प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते, दादी या उनके पिता की बहन (बुआ) की तुलना में बहुत अधिक ऊंचे पायदान पर खड़ी है।
एक बच्चे के जीवन में मां के प्रेम की आवश्यकता पर बल देते हुए, न्यायालय ने कहा ”बच्चे अपने माता-पिता के खेलने की चीजें नहीं हैं। उनका कल्याण सर्वोपरि है”।

जब मां उनके साथ होगी तो उनकी अच्छी तरह से परवरिश की जाएगी।एक बच्चे को कभी भी ऐसा महसूस नहीं होना चाहिए कि उन्हें मां का प्यार पाने की जरूरत है। यह सोच उनके दिल में जीवनभर के लिए एक खालीपन बना देगी।

Allahabad HC:मां का प्यार बिना शर्त मिले -कोर्ट

एक बच्चे के जीवन में विश्वास और भावनात्मक अंतरंगता की एक मजबूत नींव स्थापित करने के लिए एक मां का प्यार बिना शर्त मिलना चाहिए। अगर इस प्यार को रोक दिया जाता है, तो एक बच्चा इस प्यार को एक लाख अन्य तरीकों से ढूंढेगा। कभी-कभी वे अपने पूरे जीवनकाल में इसे खोजते ही रह जाते हैं।

हम अपने बच्चों को घर पर जो भावनात्मक नींव देते हैं, वह उनके जीवन की नींव है। हम घर के मूल्य और एक मां के प्यार की शक्ति को कम करके नहीं आंक सकते हैं।

नतीजतन, बच्चों के प्रति एक मां और दादी के अधिकारों को तोलने के बाद, कोर्ट ने दादी की तुलना में प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते एक मां के अधिकार में अधिक वजन पाया।

इसलिए, दोनों बच्चों की कस्टडी उनकी मां सीमा शर्मा को सौंप दी। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि दादी, यदि चाहें, तो सप्ताह में एक बार यानी प्रत्येक शनिवार को दोपहर 12.00 बजे से शाम 05.00 बजे के बीच अपने पोते-पोतियों से मिल सकती हैं।

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