Saato-Atoo: भगवान शिव और पार्वती के रूठने और मनाने का पर्व है सातों-आठों, जानिये इसकी रोचक कथा और मनाने का तरीका

Saato-Atoo: लोककथाओं के अनुसार माता गौरी भगवान भोलेनाथ से रूठ कर अपने मायके चली आती हैं, इसीलिए अगले दिन अष्टमी को भगवान भोलेनाथ माता पार्वती को मनाने उनके मायके चले आते हैं।

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Satoo-Atoo
Satoo-Atoo festival in Kumaon.

Saato-Atoo: उत्तराखंड में भगवान और प्रकृति दोनों को ही विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। समय-समय पर उनसे संबंधित अनेक पर्व व त्योहार भी मनाए जाते हैं। देवभूमि में एक ऐसा अनोखा पर्व भी मनाया जाता है, जिसे सातों- आठों का पर्व भी कहते हैं। जिसमें इंसान भगवान को भी एक मानवीय रिश्ते (बड़ी दीदी और जीजाजी के रूप में) में बड़ी आस्था और विश्वास के साथ बांध देता है।

यह पर्व उत्तराखंड में कई जगहों पर मनाया जाता है लेकिन सीमावर्ती इलाकों में खासकर कुमाऊं के पिथौरागढ़ जनपद में यह बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है
प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले इस त्योहार की शुरुआत भाद्रपद मास (अगस्त-सितंबर) की पंचमी तिथि से होती है।इसे बिरूड़ पंचमी भी कहते हैं। इस दिन हर घर में तांबे के एक बर्तन में पांच अनाज मक्का, गेहूं, गहत , ग्रूस या गुरुस आदि को भिगोकर मंदिर के समीप रखा जाता है। इन अनाजों को सामान्य भाषा में बिरूड़े या बिरूड़ा भी बोला जाता है। इस मौके पर इन्हीं अनाजों को प्रसाद के रूप में बांटा एवं खाया जाता है।

Saato-Atoo Festival of Kumaon in Uttrakhand,also known as Birud Panchmi.
Saato-Atoo in Kumaon.

Saato-Atoo: माता पार्वती की एक पुतलानुमा आकृति तैयार कर सजाते हैं

दो दिन बाद सप्तमी के दिन शादीशुदा महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं। दोपहर बाद अपना पूरा श्रृंगार कर धान के खेतों में निकल पड़ती हैं। धान के खेतों में एक विशेष प्रकार का पौधा जिसे सौं का पौधा कहते हैं उसे और कुछ धान के पौधे को उखाड़कर इन्हीं पौधों से माता पार्वती की एक पुतलानुमा आकृति बनाई जाती है। उस आकृति को एक डलिया में थोड़ी सी मिट्टी के बीच में स्थापित कर दिया जाता है उसके बाद उन्हें नए वस्त्र व आभूषण पहनाए जाते हैं।

Saato-Atoo: माता पार्वती की एक पुतलानुमा आकृति तैयार कर सजाते हैंपौधों से बनी इसी आकृति को गमरा या माता गौरी का नाम दिया जाता है, फिर माता गौरी का श्रृंगार किया जाता है। उसके बाद महिलाएं गमरा सहित डलिया को सिर पर रखकर लोकगीत गाते हुए गांव में वापस आती हैं।

माता गौरी को गांव के ही किसी एक व्यक्ति के घर पर पंडित जी द्वारा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। पंचमी के दिन भिगोए गए पांचों अनाजों के बर्तन को नौले या धारे (गांव में पानी भरने की एक सामूहिक जगह) में ले जाकर उन अनाजों को पानी से धोया जाता है।फिर इन्हीं बिरूड़ों से माता गौरी की पूजा अर्चना की जाती है इस अवसर पर शादीशुदा सुहागिन महिलाएं गले व हाथ में पीला धागा (जिसे स्थानीय भाषा में डोर कहते हैं ) बांधती हैं।। यह अखंड सुख-सौभाग्य और संतान की लंबी आयु की मंगल कामना के लिए बांधा जाता है।

Saato-Atoo: जानिये व्रत कथा

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Saaton-Atoo festival of kumaon.

लोककथाओं के अनुसार माता गौरी भगवान भोलेनाथ से रूठ कर अपने मायके चली आती हैं, इसीलिए अगले दिन अष्टमी को भगवान भोलेनाथ माता पार्वती को मनाने उनके मायके चले आते हैं। इसीलिए अगले दिन महिलाएं फिर से सज-धज कर धान के हरे भरे खेतों में पहुंचती हैं। वहां से सौं और धान के कुछ पौधे उखाड़ कर उनको एक पुरुष की आकृति में ढाल दिया जाता है।

उन्हें महेश्वर बोला जाता है, फिर महेश्वर को सम्मा नपूर्वक एक डलिया में रखकर नए वस्त्र आभूषण पहनाए जाते हैं। उस डलिया को भी सिर पर रखकर नाचते गाते हुए गांव की तरफ लाते हैं। फिर उनको माता पार्वती के समीप ही पंडित जी के मंत्रोच्चार के बाद स्थापित कर दिया जाता है।

माता पार्वती व भगवान भोलेनाथ को गमरा दीदी व महेश्वर भिना (जीजाजी) के रूप में पूजा जाता है। साथ ही उनको फल व पकवान भी अर्पित किए जाते हैं। इस अवसर पर घर की बुजुर्ग महिलाएं घर के सभी सदस्यों के सिर पर इन बिरूड़ों को रखकर उनको ढेर सारा आशीर्वाद देती हैं तथा उनकी लंबी आयु व सफल जीवन की मनोकामना करती हुई उनको दुआएं देती हैं।

Saato-Atoo: माता पार्वती की एक पुतलानुमा आकृति तैयार कर सजाते हैंमां गौरी और महेश्वर को एक स्थानीय मंदिर में बड़े धूमधाम से लोकगीत गाते और ढोल नगाड़े बजाते हुए ले जाया जाता है। जहां पर उनकी पूजा अर्चना के बाद विसर्जित कर दिया जाता है। जिस को आम भाषा में सेला या सिला देना भी कहते हैं। यह एक तरीके से बेटी की विदाई का जैसा ही समारोह होता है।

जिसमें माता गौरी को मायके से अपने पति के साथ ससुराल को विदा किया जाता है। इस अवसर पर गांव वालों भरे मन व नम आंखों से अपनी बेटी गमरा को जमाई राजा महेश्वर के साथ ससुराल की तरफ विदा कर देते हैं। अगले वर्ष फिर से गौरा के अपने मायके आने का इंतजार करते हैं।

Saato-Atoo: फौल फटकना की रीत भी होती है खास

इस अवसर पर एक अनोखी रस्म भी निभाई जाती है।जिसमें एक बड़े से कपड़े के बीचोंबीच कुछ बिरूड़े व फल रखे जाते हैं। फिर दो लोग दोनों तरफ से उस कपड़े के कोनों को पकड़कर उस में रखी चीजों को ऊपर की तरफ उछालते हैं। कुंवारी लड़कियां व शादीशुदा महिलाएं अपना आंचल फैलाकर इनको इकट्ठा कर लेती हैं। यह बहुत ही शुभ व मंगलकारी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई कुंवारी लड़की इनको इकट्ठा कर लेती हैं तो उस लड़की की शादी अगले पर्व से पहले-पहले हो जाती है।

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