Jagannath Rath Yatra: क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथयात्रा? जानें इतिहास और महत्व…

Jagannath Rath Yatra: भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में जाने से 100 यज्ञों के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन बलभद्र और सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर निकलते हैं, लेकिन पुरी के अलावा भी ये रथयात्रा देश के कई शहरों में भी इस्कॉन मंदिरों द्वारा निकाली जाती है।

0
218
Jagannath Rath Yatra 2022
Jagannath Rath Yatra 2022

Jagannath Rath Yatra 2023: ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हो गई है। पुरी में आज यानी 20 जून से जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव की धूमधाम से शुरुआत हो गई है जो अगले दिन 21 जून 2023 को शाम 7:09 पर समापन होगा। हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया को रथयात्रा शुरू होती है और पुरी में यह सबसे बड़े फेस्टिवल में से एक है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग हर साल ओड़िशा आते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त इस उत्सव में अपनी हाजिरी लगाता है, उनका जीवन हर्षोल्लास से भर जाता है और वो सभी कष्टों से मुक्त हो जाते हैं।

भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तकरीबन ढाई से तीन किमी दूर गुंडिचा मंदिर जाएंगे। यह उनकी मौसी का घर माना जाता है। इस रथयात्रा में तकरीबन 25 लाख लोगों के आने की संभावना है।

rathyatradetail b 28
Jagannath Rath Yatra 2022

धर्म शास्त्रों के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में जाने से 100 यज्ञों के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन बलभद्र और सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर निकलते हैं, लेकिन पुरी के अलावा भी ये रथयात्रा देश के कई शहरों में भी इस्कॉन मंदिरों द्वारा निकाली जाती है।

Celebration of Lord Jagannath's Rath Yatra in Jagannath Puri
क्यों निकाली जाती है Jagannath Rath Yatra?

क्यों निकाली जाती है Jagannath Rath Yatra?

जगन्नाथ भगवान विष्णु के अवतार रूप हैं। कहा जाता है कि रथयात्रा से भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। इस वजह से पुरी में जगन्नाथ मंदिर से 3 रथ रवाना होते हैं, इनमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथ का रथ होता है। मान्यता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे नगर देखने की इच्छा जाहिर की तो वो उन्हें भाई बलभद्र के साथ रथ पर बैठाकर ये नगर दिखाने लाए थे। कहा जाता है कि इस दौरान वो अपने मौसी के घर गुंडिचा भी पहुंचे और वहां पर सात दिन ठहरे थे। अब पौराणिक कथा को लेकर रथ यात्रा निकाली जाती है। यह प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra 2023) 1960 के दशक के अंत से भारत के विभिन्न शहरों में मनाई जाती है, न केवल हिंदू बल्कि बौद्ध भी रथयात्रा में भाग लेकर इस त्योहार को मनाते हैं। क्या आपको पता है कि जगन्नाथ मंदिर से जो 3 रथ रवाना होते हैं उन रथ का नाम क्या है? अगर नहीं पता है तो आईये यहां हम बताते हैं:

  1. नंदीघोष रथ जो जगन्नाथ जी का रथ होता है, इस रथ को गरुड़ध्वजा या कपिध्वजा बोलते हैं। रथ के ऊपर लगे ध्वजा को त्रैलोक्यमोहिनी कहा जाता है और रथ में लगी रस्सी को शंखाचुड़ा बोलते हैं।
  2. बलभद्र के रथ को हल्धवजा और लंगलाध्वक बोलते हैं। रथ के ऊपर लगे ध्वजा को उन्नानी कहते हैं और रथ में लगी रस्सी को बासुकी के नाम से जाना जाता है।
  3. सुभद्रा के रथ को दरपदलना या पद्मध्वजा कहते हैं। सुभद्रा के रथ के ऊपर लगे ध्वजा को नद्मबिका कहते हैं और रथ में लगी रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते है।

मजार पर क्यों रोका जाता है?

आखिर भगवान जगन्नाथ के रथ को यहां क्यों रोका जाता है। इसके पीछे कुछ पौराणिक कथाएं हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, जहांगीर के वक्त एक सुबेदार ने ब्राह्मण विधवा महिला से शादी कर ली थी और उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम सालबेग था। मां हिंदू होने की वजह से सालबेग ने शुरुआत से ही भगवान जगन्नाथ पंथ का रुख किया। सालबेग की भगवान जगन्नाथ के प्रति काफी भक्ति थी, लेकिन वो मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाते थे।

Jagannath Rath Yatra
Jagannath Rath Yatra शुरू

Jagannath Rath Yatra का क्या है इतिहास ?

जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत से जुड़ी कुछ पौराणिक कहानियां हैं जो लोगों की सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं को दर्शाती हैं। एक कहानी के अनुसार, कृष्ण के मामा कंस कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मारना चाहते थे। इस आशय से कंस ने कृष्ण और बलराम को मथुरा आमंत्रित किया था। उसने अक्रूर को अपने रथ के साथ गोकुल भेजा। पूछने पर, भगवान कृष्ण बलराम के साथ रथ पर बैठ गए और मथुरा के लिए रवाना हो गए। भक्त कृष्ण और बलराम के मथुरा जाने के इसी दिन को रथ यात्रा के रूप में मनाते हैं। जबकि द्वारका में भक्त उस दिन का जश्न मनाते हैं जब भगवान कृष्ण, बलराम के साथ, उनकी बहन सुभद्रा को रथ में शहर की शान और वैभव दिखाने के लिए ले गए थे।

Jagannath Rath Yatra का महत्व

जगन्नाथ शब्द दो शब्दों जग और नाथ से बना है। जग का अर्थ है ब्रह्मांड और नाथ का अर्थ है भगवान जो ‘ब्रह्मांड के भगवान’ हैं। रथयात्रा हर साल भक्तों द्वारा निकाली जाती है। अलग-अलग तीन रथों पर सवार भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को पुरी की सड़कों से गुंडिचा मंदिर तक भक्तों द्वारा खींचा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जुलूस के दौरान अपने भगवान के रथों को खींचना भगवान की शुद्ध भक्ति रस में लीन होने का एक तरीका है और यह उन पापों को भी नष्ट कर देता है जो जाने या अनजाने में किए गये हों। रथ के साथ भक्त ढोल की थाप की ध्वनि के साथ गीत और मंत्रों का जाप करते हैं। जगन्नाथ रथयात्रा गुंडिचा यात्रा, रथ महोत्सव, दशावतार और नवदीना यात्रा के रूप में भी प्रसिद्ध है।

Jagannath Rath Yatra started in Ahmedabad, PM Modi tweeted Congratulations
Jagannath Rath Yatra का महत्व

देश भर में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा उत्सव बस्तर में अनोखे तरीके से निकाली जाती है। यहां लोग रथ यात्रा के दौरान तुपकी चलाकर भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद लेते हैं। दरअसल, छत्तिसगढ़ के बस्तर में आदिवासी समुदाय के लोग जंगलों से बांस लाते हैं और इस बांस से बंदूक जैसी संरचना बनाते हैं। इसे तुपकी कहते हैं। तुपकी शब्द तोप शब्द से मिलता जुलता है। तुपकी एक तरह से तोप या बंदूक का कार्य ही करती है, लेकिन यह बहुत छोटी और खिलौने जैसी संरचना होती है।

lord jagannath puri rath yatra ORRISA
बस्तर के लोग श्रद्धा के साथ निभाते हैं परंपरा

बस्तर के लोग श्रद्धा के साथ निभाते हैं परंपरा

तुपकी के भीतर जंगली फल पेंग भरा जाता है और बांस की ही बनी एक डंडी से दबाव डालने पर पेंग फल गोली की तरह बाहर निकलता है। लोग इसी तुपकी को चलाकर भगवान जगन्नाथ को प्रणाम करते हैं। इसकी शुरुआत यहां कब से हुई इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन बस्तर का जनमानस बड़ी श्रद्धा के साथ इस परंपरा को निभाता है।

Jagannath Rath Yatra: तुपकी ग्रामीणों की रोजी-रोटी का जरिया

ग्रामीण हफ्तों पहले ही जंगल से बांस की लकड़ियां काट कर ले आते हैं और तुपकी के निर्माण का कार्य प्रारंभ कर देते हैं। गुंचा यानी रथयात्रा के दिन भी इसे लेकर जगदलपुर पहुंचते हैं और यहां लोग भगवान जगन्नाथ के सम्मान में ग्रामीणों से इसे खरीदते हैं। एक तरह से यह ग्रामीणों की रोजी-रोटी का जरिया भी है, लोग आपस में भी एक दूसरे को मारकर ऐसे आनंद लेते हैं। भगवान जगन्नाथ को प्रणाम करने की यह प्रथा पूरे देश में केवल बस्तर में पाई जाती है।

संबंधित खबरें:

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here