Holashtak 2024: होली हर्ष उल्लास और रंगों का त्योहार है जो फाल्गुन माह में मनाया जाता है। एक दूसरे से मिल कर गिले शिकवे मिटाने का पर्व है होली। हिन्दू धर्म के अनुसार यह दो दिवसीय उत्सव है। पहले दिन होलिका दहन किया जाता है जिसे छोटी होली भी कहते है और वहीं दूसरे दिन रंगों से होली खेलते है, जिसे बड़ी होली कहते है। इन दोनों दिनों का अपना-अपना अलग महत्व है। इस बार होली 25 मार्च को है। होली से 8 दिन पहले मांगलिक कार्यों के करने पर रोक लग जाती है। होली से ठीक 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं और इस समय में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है होली के आठ दिन। धार्मिक मान्यता की माने तो इन आठ दिनों में कोई भी मांगलिक कार्यक्रम जैसे शादी, ब्याह, मुंडन, गृह प्रवेश की मनाही होती है। होलाष्टक होली से 8 दिन पहले शुरू हो जाते हैं।
कब से शुरू हो रहे होलाष्टक और किन मांगलिक कार्यों की है मनाही
धार्मिक मान्यता की माने तो होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में रहते हैं और जिसके कारण शुभ कार्य अगर आप करते है तो आपको इसका अच्छा फल नहीं मिल पाता है। पंचांग के अनुसार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को होलाष्टक शुरू हो जाएगा। इस बार होलाष्टक 17 मार्च से लगेगा। शादी, संस्कार जनेऊ, नामकरण, नए घर में प्रवेश, हवन पूजन आदि की मनाही होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार होलाष्टक पर नवविवाहिता घर की नई बहू भी अपनी पहली होली अपने ससुराल में नहीं मनाती है। होलाष्टक लगने से पहले ही बहू को उसके मायके भेज दिया जाता है।
होलाष्टक का कारण
होली के आठ दिन पहले मांगलिक कार्यों पर रोक लगने का प्रमुख कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद से जुड़ा हुआ है। विष्णु भक्त प्रह्लाद का लगातार 8 दिनों तक अपने पिता हिरण्यकश्यप और बुआ द्वारा कष्ट से संबंधित है। हिरण्यकश्यप विष्णु भगवान को अपना दुश्मन मानता था और इसलिए उसने अपने राज्य में स्वयं को ही भगवान घोषित कर दिया था और ऐलान करवा दिया था कि सभी लोग उसकी पूजा करें। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद विष्णु जी का परम भक्त था और वो बहुत ही श्रद्धा भाव से विष्णु भगवान की पूजा करने बैठ जाता था। कई बार उनके पिताजी ने मना किया कि विष्णु भगवान नहीं है। मना करने के बाद भी जब हिरण्यकश्यप का पुत्र नहीं माना तब अपने पुत्र को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तिथि तक अपने पुत्र को कठोर से कठोर दंड देता गया । इस कारण से होली के 8 दिनों पहले को शुभ समय नहीं माना जाता है क्योंकि इन दिनों भगवान और भक्त दोनों ही कष्ट में थे।
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