Classical Music Of India: भारतीय शास्त्रीय संगीत में ठुमरी के बिना किसी गीत अथवा संगीत की कल्पना नहीं की जा सकती। इसी ठुमरी का राग खमाज गानों के अंदर एक खास अलंकार उत्पन्न करता है।खमाज राग का ज्यादातर इस्तेमाल उपशास्त्रीय संगीत, ठुमरी-टप्पा और होरी गायन में बहुधा सुनने को मिलता है। इसमें इतना रस है कि बॉलीवुड की मशहूर फिल्मों के गानों में इसका इस्तेमाल म्यूजिक कंपोजर्स ने खूब किया है। इसमें सुर समाज्ञी लता मंगेशकर का गाया -नगरी-नगरी द्वारे, द्वारे गीत हो, अजी रूठकर अब कहां जाइएगा या ठाढ़े रहियो ओ बांके यार, खासतौर से हर संगीत प्रेमी की जुबां पर रहते हैं।
राग खमाज के चलन की बात करें, तो पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर बनारस तक के लोकगीत बिना इसके सूने लगते हैं। इन स्थानों पर उपशास्त्रीय गायन की ढेरों विधाओं में कई संगीत घरानों का योगदान रहता है।यही वजह है कि खमाज के साथ पीलू, झिंझोटी और कौशिक ध्वनि को भी इसमें सुन सकते हैं।
Classical Music Of India: करुण रस से भरा राग है ‘खमास’
जैसा कि नाम से वर्णित है कि राग खमास करुण रस से ओतप्रोत है। पारंपरिक रूप से इस राग का वादी स्वर गांधार और स्वांदी बड़ा स्वर निषाद है। कई मशहूर संगीतकारों का मानना है कि जो लोग बनारस से संबंध रखते हैं, वे ये बखूबी जानते हैं कि उस्ताद बिसमिल्लाह खां की शहनाई के साथ राग खमाज का कितना गहरा रिश्ता रहा है।
Classical Music Of India: मांझ ‘खमाज’ भी है प्रचलित
प्रख्यात सितारवादक पंडित रविशंकर के घराने का प्रचलित मांझ खमाज भी राग खमाज का एक सुंदर प्रकार है।जिसमें उन्होंने अनुराधा फिल्म के लिए लता मंगेशकर से मर्मस्पर्शी गीत कैसे दिन बीते, कैसे बीती रतियां, पिया जाने ना गवाया था। यही वजह है बहुत से सुंदर भजन, गीत, लोकगीत से लेकर फिल्मी गीतों के सुरों को सहज और मधुर बनाने में राग खमास का योगदान भुलाया ही नहीं जा सकता है।
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