Supreme Court: कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय के लिए 4 फीसदी आरक्षण खत्म करने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।जिस पर कोर्ट आज इस मामले पर अपनी बात कही है। जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली बेंच में सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता की तरफ से मामले की सुनवाई टालने आग्रह किया गया। जिसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई 25 जुलाई तय कर दी।
सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश मामले की अगली सुनवाई तक जारी रहेगा। इसके मुताबिक फिलहाल नई नीति के आधार पर नौकरी और दाखिला नहीं दिया जा सकेगा। मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस बीवी नागरथना ने कहा कि अगर मंत्रियों द्वारा मामले पर बयान दिया जा रहा है तो गलत है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए वो भी तब जब मामला न्यायालय के समक्ष हो। कोर्ट ने यह तब कहा जब वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि सरकार के मंत्री का हर दिन बयान देते है कि हमने आरक्षण खत्म कर दिया है। यह अवमानना है क्योंकि SG सरकार का ही प्रतिनिधित्व कर रहे है। हालांकि SG की तरफ से कहा गया कि वह इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकते।
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा पदाधिकारियों को न्यायाधीन मामलों पर बयान नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि पद और संस्था की मर्यादा और पवित्रता बनाए रखने की जरूरत है। जस्टिस बीवी नागरथना ने कहा कि जब मामला न्यायालय के अधीन लंबित है तो उस मामले के बारे में किसी को इस तरह का बयान क्यों देना चाहिए? यह उचित नहीं है।
Supreme Court: भाजपा ने साधा निशाना
Supreme Court: इस मसले पर बीजेपी ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा है।बीजेपी नेता और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, धर्म के नाम पर की गई राजनीति के खिलाफ हमने रोक लगाई, लेकिन कांग्रेस पार्टी कहती है, अगर हम सत्ता में आये तो मुस्लिम रिजर्वेशन को वापस लाएंगे। उन्होंने कहा, मैं पूछता हूं कि रिजर्वेशन लाए तो ये किसका रिजर्वेशन काटेंगे।
Supreme Court: क्या बोले असम के सीएम?
Supreme Court: कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, अगर जिन्ना भी जिंदा होता तो ऐसा मैनिफेस्टो नहीं जारी करता। सरमा ने कहा, कांग्रेस सिर्फ मुस्लिम फंडामेंटालिस्य पार्टी बन गई है।
कांग्रेस कह रही है कि हम मु्स्लिम रिजर्वेशन फिर से वापस लाएंगे।उन्होंने कहा, इस मुद्दे पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट को ये भी विचार करना चाहिए कि अगर कर्नाटक में इसे दोबारा बहाल कर दिया गया तो देश के दूसरे हिस्सों से भी ऐसी मांग उठनी शुरू हो जाएगी।
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