Supreme Court: गुजरात में वर्ष 2002 में हुए दंगों के मामलों पर शीर्ष अदालत ने अहम फैसला सुनाया है। इन दंगों की जांच के लिए पिछले 20 वर्ष से लंबित 11 याचिकाओं को कोर्ट ने अप्रासंगिक बताते हुए बंद कर दिया।इनमें से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से दायर एक याचिका भी शामिल है। जिसमें लगभग दो दशक पूर्व गुजरात के दंगों के दौरान हिंसा की उचित जांच की मांग उठाई गई थी। मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस एस रविंद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला की 3 जजों की पीठ ने मामलों को व्यर्थ मानकर सुनवाई बंद करने का फैसला किया।
इस संबंध में पीठ ने कहा कि दंगों से संबंधित 9 मामलों की जांच और अभियोजन के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया गया था।इनमें से 8 मामलों में सुनवाई पूरी हो चुकी है।

Supreme Court: 9 में केवल 1 मामले की सुनवाई शेष
एसआईटी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया कि नरोदा ग्राम क्षेत्र से संबंधित 9 में केवल 1 मामले की सुनवाई अभी लंबित है। इसकी बहस अंतिम चरण में है।अन्य मामलों में ट्रायल भी पूरे हो चुके हैं और मामले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलीस स्तर पर लंबित है।पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों ने एसआईटी के बयान को स्वीकार किया है। पीठ ने आदेश में कहा कि सभी मामले अब व्यर्थ हो गए हैं।अदालत का मानना है कि इन मामलों को व्यर्थ होने के रूप में निपटाया जाता है। पीठ ने निर्देश देते हुए कहा कि नरोदा ग्राम के संबंध में मुकदमे का कानून के अनुसार निष्कर्ष निकाला जाए।
सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ सिटीजन फॉर पीस एंड जस्टिस ने दंगों के मामलों में उचित जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। अब केवल उनकी सुरक्षा की मांग को लेकर दायर याचिका लंबित है।
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