सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 21 सितंबर को हेट स्पीच (Hate Speech) से भरी रिपोर्ट टेलीकास्ट करने ओर चर्चा करने के लिए टीवी चैनलों को कड़ी फटकार लगाई है. न्यायालय ने कहा कि यह समाचार प्रस्तोता (एंकर) की जिम्मेदारी है कि वह किसी को नफरत से भरी भाषा बोलने से रोके. जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने पूछा कि इस मामले में सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है, क्या यह एक छोटा मुद्दा है?
पिछले दिनों केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक कार्यक्रम में कहा था कि, “असली पत्रकारिता तथ्यों को सामने लाने, सच्चाई पेश करने, सभी पक्षों को अपने विचार रखने के लिए मंच देने के बारे में है. मेरी राय में मुख्यधारा की मीडिया के लिए सबसे बड़ा खतरा नए जमाने के डिजिटल प्लेटफॉर्म से नहीं बल्कि खुद मुख्यधारा की मीडिया चैनल से है.”
भारत के विधि आयोग (Law Commission) की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच (Hate Speech) को नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ घृणा को बढ़ाने के रूप में देखा गया है.
इस प्रकार हेट स्पीच कोई भी लिखित या मौखिक शब्द, संकेत, किसी व्यक्ति की सुनने या देखने से भय या डराना, या हिंसा के लिये उकसाना आदि को हेट स्पीच माना जा सकता है.
जस्टिस जोसेफ ने मौखिक रूप से कहा कि, ” राजनीतिक दल आएंगे-जाएंगे… लेकिन पूरी तरह से स्वतंत्र प्रेस के बिना कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता है…” उन्होंने आगे कहा कि “हेट स्पीच ताने-बाने में ही जहर घोल देती है… इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती.”
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार “आम भाषा में, “घृणास्पद भाषण” एक समूह या व्यक्ति को जाति, धर्म या लिंग – के आधार पर घृणा करना हेट स्पीच के दायरे में आती है. इससे सामाजिक शांति को खतरा हो सकता है.
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत, अभद्र भाषा की कोई सार्वभौमिक (Universal) परिभाषा नहीं है क्योंकि अवधारणा अभी भी व्यापक रूप से विवादित है, खासकर राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गैर-भेदभाव और समानता के संबंध में.
क्या है पूरा मामला?
इन दिनों सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ 11 रिट याचिकाओं की सुनवाई कर रही है, जिसमें हेट स्पीच को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है. याचिकाओं में सुदर्शन न्यूज टीवी द्वारा प्रसारित “यूपीएससी जिहाद” शो, धर्म संसद की बैठकों में दिए गए भाषण, और सोशल मीडिया के नियमन की मांग करने वाली याचिकाएं भी शामिल है.
सुनवाई के दौरान जस्टिस के.एम. जोसेफ और ऋषिकेश राय की बेंच ने कहा मेनस्ट्रीम मीडिया या सोशल मीडिया चैनल बिना रेगुलेशन के हैं लेकिन अभद्र भाषा से निपटने के लिए एक संस्थागत तंत्र (Institutional Mechanism) की जरूरत है. जस्टिस जोसेफ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि मुख्य धारा (Mainstream) की मीडिया में एंकर की भूमिका अहम है और अगर कोई भड़काऊ बयान देने की कोशिश करता है तो उसका (एंकर) फर्ज की उसे तुरंत रोके. जस्टिस जोसेफ ने आगे कहा कि, “प्रेस की स्वतंत्रता जरूरी है. हमारा अमेरिका जितना स्वतंत्र प्रेस नहीं है लेकिन हमें लक्ष्मण रेखा का पता होना चाहिए.”
जनवरी 2021 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा था कि “टीवी पर नफरत को रोकना कानून और व्यवस्था के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि पुलिसकर्मियों को लाठी से लैस करना और हिंसा और दंगों को फैलने से रोकने के लिए बैरिकेड्स लगाना.”
न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन टीवी पर अभद्र भाषा बोलने की आजादी नहीं दी जा सकती है. ऐसा करने वाले यूनाइटेड किंगडम के एक टीवी चैनल पर भारी जुर्माना लगाया गया था.
क्या कहता है कानून?
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) में ‘हेट स्पीच’ (Hate Speech) को लेकर कोई भी स्पष्ट परिभाषा नहीं है, इसलिये ब्रिटिश राज में बनी IPC में सुधारों का सुझाव देने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित आपराधिक कानूनों पर सुधार समिति (Committee for Reforms in Criminal Law) प्रयास कर रही है.
हेट स्पीच?
आमतौर पर हेट स्पीच (Hate Speech) का मकसद किसी विशेष समूह के प्रति घृणा पैदा करना है, यह समूह एक समुदाय, धर्म या जाति भी हो सकता है. हेट स्पीच का अर्थ हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है, लेकिन इसके हिंसा होने की प्रबल संभावना रहती है.
पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो द्वारा वर्ष 2021 में साइबर उत्पीड़न के मामलों पर जांच एजेंसियों के लिये एक मैनुअल प्रकाशित किया है, जिसमें हेट स्पीच के बारे में लिखा है कि वो भाषा “जो किसी व्यक्ति की पहचान और अन्य लक्षणों जैसे- यौन, विकलांगता, धर्म आदि के आधार पर उसे बदनाम, अपमान, धमकी या लक्षित करती है” हेट स्पीच के दायरे में आती है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार वर्ष 2014 में हेट स्पीच को लेकर केवल 323 मामले दर्ज किये गए थे जो वर्ष 2020 में यह बढ़कर 1,804 तक पहुंच गये.
हेट स्पीच से संबंधित कानूनी प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 153A और 153B, दो समूहों के बीच दुश्मनी या नफरत पैदा करने वाले कार्यों को दंडनीय बनाती है. वहीं धारा 295A, जान-बूझकर या दुर्भावनापूर्ण इरादे से लोगों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले कार्यों को दंडित करने से संबंधित है. इसके अलावा धारा 505(1) और 505(2), ऐसी सामग्री के प्रकाशन तथा प्रसार (Print and Publicity) को अपराध बनाती जिससे विभिन्न समूहों के बीच द्वेष या घृणा पैदा हो सकती है.
भारतीय दंड संहिता के अलावा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People’s Act), 1951 की धारा 8 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकती है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123(3A) और 125, चुनावों में जाति, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाती है.
मौजूदा समय मे हो रहे बड़े बदलावों ओर लगातार बढ़ते हुए हेट स्पीच के मामलों के बीच आईपीसी में बदलाव को लेकर लगातार सुझाव भी दिए जा रहे है, इसी को लेकर दो समितियां भी बनाई गई थी.
बेजबरुआ समिति, 2014
बेजबरुआ समिति द्वारा आईपीसी की धारा 153C (मानव गरिमा के लिये हानिकारक कृत्यों को बढ़ावा देने या बढ़ावा देने का प्रयास) में संशोधन कर पांच साल की सजा या जुर्माना या दोनों एवं धारा 509A (शब्द, इशारा या कार्य किसी विशेष जाति के सदस्य का अपमान करने का इरादा) में संशोधन कर तीन वर्ष की सजा या जुर्माना या दोनों का प्रस्ताव दिया.
विश्वनाथन समिति, 2019
विश्वनाथन समिति ने धर्म, नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, लैंगिक पहचान, यौन, जन्म स्थान, निवास, भाषा, विकलांगता या जनजाति के आधार पर अपराध करने या उकसाने के लिए आईपीसी में धारा 153 सी (बी) और धारा 505A का प्रस्ताव रखा. समिति द्वारा इन कृत्यों के लिए 5,000 रुपए के जुर्माने के साथ दो वर्ष तक की सजा के प्रावधान का प्रस्ताव रखा.
नवंबर में अगली सुनवाई
हेट स्पीच वाली याचिकाओं पर अगली सुनवाई 23 नवंबर को होगी. न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह ये स्पष्ट करे कि क्या वह हेट स्पीच पर रोक लगाने के लिए विधि आयोग (Law Commission) की सिफारिशों पर कार्रवाई करने का इरादा रखती है या नहीं.