स्वास्थ्य मंत्रालय ने आये दिन नकली और घटिया दवाओं की बढ़ती समस्या को देखते हुए सभी दवाईयों का सर्वे कराया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा सर्वे करवाने का काम नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ बायलॉजिकल्स यानी एनआईबी नोएडा को सौंपा था। सिविल सोसायटी और फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रतिनिधियों का काम ये देखना था कि दवाओं के सैंपल्स सही ढंग से लिए गए हैं या नहीं। सर्वे की गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए उसकी पारदर्शिता को बनाए रखना भी सिविल सोसायटी और फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया का काम था।
एनआईबी ने सर्वे की रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिससे पता चला कि देश में बिक रहीं डेढ़ हजार से ज्यादा दवाओं की गुणवत्ता निर्धारित मानक के अनुरूप नहीं है। सर्वें में इन ड़ेढ हजार दवाईयों में 13 दवाएं तो फर्जी पाई गई हैं। स्वास्थय मंत्रालय के मुताबिक करीब 48,000 दवाओं के नमूनों की जांच करने के बाद ये बातें सामने आई हैं। मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार कुल 1,850 दवाओं की गुणवत्ता मानक के अनुरूप नहीं मिली। इनमें से अधिकांश दवाओं की निर्माता विदेशी कंपनियां हैं जिनकी छोटा भाग भारत में मौजूद है। दवाओं के इस परिक्षण के लिए देश के सभी 29 राज्यों और 7 केंद्रशासित राज्यों मे स्थित खुदरा, थोक विक्रेता और सरकारी दुकानों से दवाईयों के सैंपल लिए गए थे। इन नमूनों की जांच देशभर के 28 केंद्रो पर की गई थी। सभी सैंपल्स की जांच दवा बनाने की जरूरतों के मुताबिक एनएबीएल से मान्यता प्राप्त केद्रों और राज्य के ड्रग टेस्टिंग लैबरेटरीज में की गई।
आज के दौर में दवाओं की जरूरत लगभग हर किसी को पड़ती है, मार्केट में ऐसी फर्जी दवाईयां बेचकर विदेशी कंपनियां लोगों की जिदंगियों के साथ कैसा खिलवाड़ कर रही हैं इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं। एनएबीएल के द्वारा जारी सर्वे के मुताबिक देश में घटिया दवाईयों का प्रतिशत 3.16 और नकली दवाईयों का प्रतिशत 0.2 है।