बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में 19 जनवरी 2021 को कहा था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट के बिना छूना POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा।

बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। 24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले का विरोध किया है साथ ही इसे गलत भी बताया है।

बता दें कि, एक सेशन कोर्ट ने एक 39 साल के शख्स को 12 साल की बच्ची का यौन शोषण करने के अपराध में तीन साल की सजा सुनाई थी। जिसे नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने संशोधित किया था।

दिसंबर, 2016 में हुई इस घटना को लेकर नाबालिग की गवाही में बताया गया था कि आरोपी सतीश नागपुर में बच्ची को कुछ खिलाने का लालच देकर अपने घर ले गया था और उसके साथ यौन शोषण किया। वहीं गनेडीवाला ने अपने आदेश में कहा था कि, उसने बच्ची का ब्रेस्ट छुआ और उसके कपड़े उतारने की कोशिश की थी।

कोर्ट ने अपने बयान में कहा था कि उसने बच्ची का कपड़ा बिना उतारे ब्रेस्ट छूने की कोशिश की थी, तो यह यौन शोषण नहीं माना जाएगा। इस मुद्दे पर आज यानी कि 24 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने विधि सेवा प्राधिकरण LSA कमिटी को निर्देश दिया कि वो दोनों मामलों में बच्ची से छेड़छोड़ के आरोपियों की तरफ से पैरवी करें।

महाराष्ट्र सरकार ने AG K. K. Venugopal  की दलीलों का समर्थन किया है। इस मुद्दे पर कोर्ट अब 14 सितंबर को सुनवाई करने वाला है। इसमें आरोपी का पक्ष सुना जाएगा।

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