सुप्रीम कोर्ट के जज डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को सामाजिक असमानताओं को दूर करने वाले कानूनों और जमीनी हकीकत के बीच की खाई पर टिप्पणी करते हुए कहा कि डाबर को समलैंगिक जोड़े को दिखाने वाले करवा चौथ के विज्ञापन को “सामाजिक असहिष्णुता” के चलते वापस लेना पड़ा।
सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग के बाद डाबर ने माफी मांगी
मालूम हो कि पिछले हफ्ते, डाबर ने दो महिलाओं का एक साथ करवा चौथ मनाते हुए एक विज्ञापन वापस ले लिया। समाज के कई लोगों ने इस तरक्की पंसद सोच की तारीफ की थी लेकिन एक तबके द्वारा इसकी निंदा भी की गयी। बाद में डाबर को सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा। जिसके बाद कंपनी ने माफी मांगी।
”सामाजिक असहिष्णुता के चलते वापस लेना पड़ा विज्ञापन”
महिलाओं के लिए कानूनी जागरूकता पर आधारित एक कार्यक्रम में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “वास्तविक जीवन की स्थितियां बताती हैं कि कानून के आदर्शों और आज समाज की वास्तविक स्थिति के बीच बहुत अंतर है।” “बस दो दिन पहले, आप सभी को पता होगा, इस विज्ञापन के बारे में जिसे एक कंपनी को वापस लेना पड़ा। यह एक समलैंगिक जोड़े को करवा चौथ मनाते दिखाने वाला विज्ञापन था। इसे सामाजिक असहिष्णुता के चलते वापस लेना पड़ा।”
”हमारा संविधान पितृसत्ता में निहित असमानताओं को दूर करने की मांग करता है”
जस्टिस चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि संविधान में भारत में गहरी असमानताओं और पितृसत्ता के लिए समाधान बताया गया है, उन्होंने कहा कि हर दिन महिलाओं के खिलाफ अन्याय के उदाहरण हैं। हमारा संविधान पितृसत्ता में निहित असमानताओं को दूर करने की मांग करता है। यह महिला अधिकारों को सुरक्षित करने और महिलाओं की गरिमा और समानता के लिए एक शक्ति है। घरेलू हिंसा कानून, यौन उत्पीड़न की रोकथाम जैसे कानून महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को देने के लिए हैं।
”जागरूकता पुरुषों की युवा पीढ़ी में पैदा की जाए”
उन्होंने कहा, हालांकि,सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में हमारे जीवन में हर दिन, हम महिलाओं के खिलाफ अन्याय होता देखते हैं। महिलाओं के अधिकारों को लेकर जागरूकता आ सकती है अगर यह जागरूकता पुरुषों की युवा पीढ़ी में पैदा की जाए। क्योंकि मेरा मानना है पुरुषों और महिलाओं दोनों की मानसिकता में बदलाव होना चाहिए।
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