केंद्र सरकार लगातार बढ़ते रासायनिक उर्वरकों के बिल को कम करने ओर उर्वरकों या वैकल्पिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से PM-PRANAM योजना पर काम कर रही है.
प्रस्तावित PM-PRANAM योजना से सरकार को रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी का बोझ कम करने में मदद मिलेगी, जो पिछले साल 2021-22 के 1.62 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 2022-23 में 39 फीसदी बढ़कर 2.25 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है.
केंद्र सरकार उर्वरकों की वैश्विक कीमतों में वृद्धि के कारण बढ़ी कीमतों से किसानों को बचाने के लिए सब्सिडी प्रदान करती है.
क्या है PM-PRANAM योजना?
पीएम प्रणाम (PM – Promotion of Alternate Nutrients for Agriculture Management Yojana (PM – PRANAM) योजना के तहत उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी की बचत करने वाले राज्यों को 50 फीसदी अनुदान के रूप में दिया जाएगा. इसमें से, राज्य को 70 फीसदी नई संपत्ति बनाने पर उपयोग करने की आवश्यकता होगी जिससे जिला स्तर, ब्लॉक और गांवों में उर्वरकों और उर्वरक उत्पादन इकाइयों के वैकल्पिक तरीकों को तकनीकी रुप से अपनाने को बढ़ावा मिले.
वहीं, राज्य शेष 30 बची हुई फीसदी राशि का उपयोग जागरूकता पैदा करने और उर्वरक के उपयोग को कम करने में मदद कर रहे किसानों, पंचायतों, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को पुरस्कृत करने और प्रोत्साहित करने के लिए कर सकते हैं.
कैसे होगी तुलना?
सरकार राज्य में एक साल में रासायनिक खाद के इस्तेमाल में हुई बढ़ोतरी या कमी की तुलना पिछले तीन साल में उसकी औसत खपत से करेगी. खपत की तुलना करने के लिए सरकार उर्वरक मंत्रालय के डैशबोर्ड (Integrated Fertilizers Management System – iFMS) का उपयोग करेगी.
पीएम प्रणाम योजना के लिए अलग से कोई बजट नहीं होगा. इसे विभिन्न योजनाओं के तहत उर्वरक विभाग द्वारा दी जाने वाली “मौजूदा उर्वरक सब्सिडी की बचत” के माध्यम से वित्तपोषित किया जाएगा.
भारत में उर्वरकों का उपयोग
5 अगस्त 2022 को रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खुबा ने लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि पिछले पांच वर्षों में, चार उर्वरकों – यूरिया, एमओपी (पोटाश का म्यूरेट), डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) और एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) की आवश्यकता 2017-18 के 528.86 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 21 प्रतिशत बढ़कर 2021-22 में 640.27 लाख मीट्रिक टन (LMT) पर पहुंच गई है.
डीएपी की मांग सबसे ज्यादा बढ़ी ओर यह 2017-18 में 98.77 लाख मीट्रिक टन की तुलना में 25.44 फीसदी बढ़कर 2021-22 में 123.9 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गई.
भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला रासायनिक उर्वरक यूरिया है, जिसने 2017-18 में 298 लाख मीट्रिक टन की तुलना में 19.64 फीसदी बढ़कर 2021-22 में 356.53 हो गई.
कितनी सब्सिडी
केंद्र सरकार ने केंद्रीय बजट 2021-22 में उर्वरक सब्सिडी के रूप में 79,530 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो संशोधित अनुमान में बढ़कर 1.40 लाख करोड़ रुपये हो गए. 2021-22 में अंतिम आंकड़ा 1.62 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था.
2022-23 में सरकार ने उर्वररक सब्सिडी के लिए 1.05 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा है. हालांकि, उर्वरक मंत्री ने कहा है रूस ओर यूक्रेन के मध्य जारी युद्ध के कारण 2022-23 के दौरान सब्सिडी का आंकड़ा 2.25 लाख करोड़ रुपये को पार कर सकता है.
क्या है वर्तमान स्थिति
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अधिकारियों ने 7 सितंबर 2022 को रबी फसलों को लेकर राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ पीएम-प्रणाम योजना के विचार को साझा किया और इसके विवरण पर चर्चा की. केंद्र ने योजना को लेकर राज्यों से सुझाव मांगें हैं. इसके साथ ही मंत्रालय ने प्रस्तावित योजना पर अंतर-मंत्रालयी (Inter-Ministerial) चर्चा भी शुरू कर दी है. सभी संबंधित विभागों के विचारों को शामिल करने के बाद पीएम प्रणाम योजना के मसौदे को अंतिम रूप दिया जाएगा.
केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली उर्वरक सब्सिडी में रिसाव को रोकने के लिए, केंद्र ने अक्टूबर 2016 से उर्वरकों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्रणाली (Direct Benefit Transfer) शुरू की थी. इस प्रणाली के तहत, विभिन्न उर्वरक ग्रेड पर 100 फीसदी सब्सिडी उर्वरक कंपनियों को खुदरा विक्रेता द्वारा लाभार्थी (किसानों) को होने वास्तविक बिक्री के आधार पर जारी की जाती है. इसके अलावा, सरकार ने उर्वरक नियंत्रण आदेश-1985 (FCO) में नैनो यूरिया और “जैव-उत्तेजक” जैसे नए पोषक तत्वों को शामिल किया था. इसके अलावा मृदा स्वास्थ्य कार्ड और नीम कोटेड यूरिया जैसी पहल भी की गई है.
भारत में उर्वरक का महत्व
कृषि एवं इससे संबद्धिंत क्षेत्र भारत में आय के सबसे बड़े स्रोत है. भारत का कृषि क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में 19.9 फीसदी का योगदान देता है, ओर भारत की 54.6 फीसदी जनसंख्या कृषि गतिविधियों से जुड़ी हुई है.
दुनिया के अन्य देशों (प्राकृतिक खेती करने वालों को छोड़कर) की तरह भारत का कृषि क्षेत्र काफी हद तक उर्वरक उद्योग पर निर्भर करता है, जो फसलों के उत्पादन के लिये आवश्यक सबसे महत्वपूर्ण कच्चे माल का निर्माण करता है.
इसके अलावा भारतीय उर्वरक उद्योग स्वस्थ फसलों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP), मोनोअमोनियम फॉस्फेट (MAP), नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम (NPK) एवं सिंगल सुपरफॉस्फेट (SSP) जैसे फास्फोरस उर्वरकों का उत्पादन करता है.