Gyanvapi मस्जिद विवाद में तीन महीने से ज्यादा समय तक चली सुनवाई के बाद आज आएगा फैसला, जानिए पूरे मामले के बारे में

प्रचलित मान्यता के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) का निर्माण सन् 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर करवाया था. साकिब खां की पुस्तक ‘यासिर आलमगीरी’ में इस बात का उल्लेख भी है कि औरंगजंब ने 1669 में गवर्नर अबुल हसन को आदेश देकर मंदिर को तोड़वा दिया था.

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ज्ञानवापी मस्जिद विवाद (Gyanvapi Mosque) में तीन महीने से ज्यादा समय तक चली सुनवाई में दोनों पक्षों (हिंदू और मुस्लिम पक्ष) की दलीलें सुनने के बाद ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस पर आज वाराणसी की एक अदालत में फैसला होगा.

ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) का मामला 1991 से अदालत में है. 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास समेत तीन लोगों ने वाराणसी के सिविल जज की अदालत में एक मुकदमा दायर कर दावा किया था कि औरंगजेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर उस पर मस्जिद बना दी इसलिये यह जमीन उन्हें वापस लौटाई जाए.

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18 अगस्त, 2021 को वाराणसी की एक अदालत में 5 महिलाओं ने मां श्रृंगार गौरी के मंदिर में पूजा-अर्चना की मांग को लेकर एक याचिका दायर की थी, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने श्रृंगार गौरी मंदिर की मौजूदा स्थिति को जानने के लिये एक कमीशन का गठन किया.

इसी संदर्भ में कोर्ट द्वारा श्रृंगार गौरी की मूर्ति और ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी कराकर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा था, जिसपर आज फैसला आएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में अयोध्या विवाद में फैसला दते हुए कहा था कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 “भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा के लिए बनाया गया एक विधायी साधन है, जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है.”

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ज्ञानवापी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रूख

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिंहा की तीन जजों की बेंच ने आदेश दिया था कि “मुकदमे (ज्ञानवापी केस) में शामिल जटिलताओं और संवेदनशीलता के संबंध में हमारा विचार है कि न्यायाधीश, वाराणसी के समक्ष चल रहे केस की सुनवाई उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा के एक वरिष्ठ और अनुभवी न्यायिक अधिकारी के द्वारा की जानी चाहिए. हम आदेश और निर्देश देते हैं कि सिविल केस डिवीजन वाराणसी के वरिष्ठ जिला न्यायाधीश का तबादला कर दिया जाएगा और सभी हस्तक्षेप आवेदन वहां स्थानांतरित हो जाएंगे.”

ज्ञानवापी मस्जिद

प्रचलित मान्यता के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) का निर्माण सन् 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर करवाया था. साकिब खां की पुस्तक ‘यासिर आलमगीरी’ में इस बात का उल्लेख भी है कि औरंगजंब ने 1669 में गवर्नर अबुल हसन को आदेश देकर मंदिर को तोड़वा दिया था.

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दोनों पक्षों की दलीलें

हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में सबूत के तौर पूरे ज्ञानवापी परिसर का नक्शा प्रस्तुत किया है, जिसमें मस्जिद के प्रवेश द्वार के बाद चारों ओर हिंदू-देवताओं के मंदिरों का जिक्र है, साथ ही इसमें विश्वेश्वर मंदिर, ज्ञानकूप, बड़े नंदी तथा व्यास परिवार के तहखाने का उल्लेख है. इसी तहखाने के सर्वे और वीडियोग्राफी को लेकर विवाद खड़ा हो गया है.

वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि 1991 के धर्मस्थल कानून के तहत इस विवाद पर कोई फैसला नहीं दिया जा सकता है.

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उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991

उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 की धारा 3 के तहत पूजास्थल, उसके खंड (टुकड़े) को एक अलग धार्मिक संप्रदाय या एक ही धार्मिक संप्रदाय के अलग वर्ग के पूजास्थल में बदलने को प्रतिबंधित किया गया है.

अधिनियम की धारा 4(2) में कहा गया है कि पूजास्थल की प्रकृति को बदलने के लिए संबंधित सभी मुकदमे, अपील या अन्य कार्रवाइयां (जो 15 अगस्त, 1947 तक लंबित थीं) इस अधिनियम के लागू होने के बाद खत्म हो जाएंगी और ऐसे मामलों पर कोई भी नई कार्रवाई नहीं की जा सकती. 

हालांकि यदि पूजास्थल की प्रकृति में बदलाव 15 अगस्त, 1947 (अधिनियम के लागू होने के बाद) की कट-ऑफ तारीख के बाद हुआ हो, तो उस स्थिति में कानूनी कार्रवाई शुरू की जा सकती है. अयोध्या के विवादित स्थल (राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद) को इस अधिनियम से छूट दी गई थी.

भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है, जिसने 12 मार्च 2021 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर उसकी प्रतिक्रिया मांगी थी.

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