COP-27 में भारत ने पेश की अपनी लंबे समय के लिए कम-उत्सर्जन विकास रणनीति, जानिए पर्यावरण को लेकर क्या खास है इस नीति में

भारत अब दुनिया के उन 57 देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने 2015 के पेरिस समझौते के तहत अपनी Long-Term Low Emission Development Strategy (एलटी-एलडीईएस) सौंप दी है.

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COP-27 में भारत ने पेश की अपनी लंबे समय के लिए कम-उत्सर्जन विकास रणनीति, जानिए पर्यावरण को लेकर क्या खास है इस नीति में - APN News

भारत ने 14 नवंबर को मिस्र (Egypt) के शर्म-अल-शेख में 6 से 18 नवंबर, 2022 तक आयोजित किये जा रहे 27वें पार्टियों के सम्मेलन (Conference of Parties-27 – COP-27) के दौरान जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मलेन (UNFCCC) के सामने अपनी लंबे समय के लिए कम-उत्सर्जन विकास रणनीति (Long-Term Low Emission Development Strategy) को पेश कर दिया है. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव, जो कॉप-27 में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं, ने 14 नवंबर को भारत की दीर्घकालिक कम-उत्सर्जन विकास रणनीति को पेश किया.

भारत ने UNFCCC के COP-26 जो गेलास्गो में आयोजित किया गया था में अपनी जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रतिबद्धताओं को लेकर— ‘पंचामृत’ की घोषणा की थी, जिसमें वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन (Net-Zero Carbon Emission) तक पहुंचने की प्रतिबद्धता को शामिल किया गया है.

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भारत अब दुनिया के उन 57 देशों में शामिल

इसके साथ ही भारत अब दुनिया के उन 57 देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने 2015 के पेरिस समझौते के तहत अपनी Long-Term Low Emission Development Strategy (एलटी-एलडीईएस) सौंप दी है. पेरिस समझौते के अनुच्छेद 4 के पैरा 19 के अनुसार, सभी पक्षों को अपनी लंबी अवधि की कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीतियों को तैयार करने और संवाद करने का प्रयास करना चाहिए. इस समझौते के ही अनुच्छेद 2 में सभी देशों को अपनी-अपनी सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए, विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों का आकलन करने का निर्देश दिया गया है.

2070 तक भारत का शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष 2021 में ग्लास्गो में आयोजित हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-26) में भारत के लिए 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की घोषणा की थी. साथ ही, भारत 2030 तक कम कार्बन उत्सर्जन वाली अपनी विद्युत क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने और 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 फीसदी पूरा करने का लक्ष्य रखा हुआ है.

भारत द्वारा शुद्ध-शून्य लक्ष्य की घोषणा करना इस दृष्टिकोण से भी एक बड़ा कदम है, क्योंकि वह ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख योगदानकर्त्ताओं में शामिल नहीं है, लेकिन फिर भी भारत पर्यावरण को लेकर स्वैच्छिक दायित्व-बोध से आगे बढ़ रहा है. पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार दुनिया की आबादी का 17 फीसदी हिस्सा भारत में मौजूद होने के बावजूद, भारत का ऐतिहासिक संचयी उत्सर्जन, विश्व के कुल उत्सर्जन का मात्र 4.37 फीसदी ही है.

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क्या है भारत का शुद्ध-शून्य (Net Zero) उत्सर्जन लक्ष्य?

शून्य शुद्ध (Net Zero) उत्सर्जन लक्ष्य जिसे कार्बन तटस्थता (Carbon Neutrality) के रूप में भी जाना जाता है, को अगर हम आसान भाषा में समझे तो इसका अर्थ है कि कोई देश अपने उत्सर्जन को शून्य पर ले आएगा. इसके अलावा  यह एक ऐसे देश के रूप में चिन्हित होता है जिसमें किसी देश में होने वाले उत्सर्जन की भरपाई वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण को हटाने से होती है.

नेट जीरो नीति के तहत, वनों के क्षेत्र को बढ़ाया जा सकता है जो अधिक कार्बन का अवशोषण करते हैं. जबकि वातावरण से गैसों को हटाने के लिये कार्बन कैप्चर और स्टोरेज जैसी भविष्य की तकनीकों की जरूरत होती है. इस समय (15 नवंबर 2022 तक) दुनिया के 70 से अधिक देशों ने वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य बनने का दावा किया है.

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भारत की रणनीति की क्या हैं मुख्य विशेषताएं ?

भारत द्वारा पेश की गई रणनीति में कहा गया है कि ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल, डीजल) से अन्य स्रोतों में बदलाव न्यायसंगत, सरल, स्थायी और सर्व-समावेशी तरीके से किया जाएगा.

2021 में शुरू किए गए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य भारत को हरित हाइड्रोजन हब बनाना है. बिजली क्षेत्र के समग्र विकास के लिए हरित हाइड्रोजन उत्पादन का तेजी से विस्तार, देश में इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण क्षमता में वृद्धि और 2032 तक परमाणु क्षमता में तीन गुना की बढ़ोतरी जैसे कुछ अन्य लक्ष्य हैं, जिनकी भी परिकल्पना इस नीति में की गयी है.

नीति में कहा गया है कि जैव ईंधन के बढ़ते उपयोग, विशेष रूप से पेट्रोल में इथेनॉल का मिलाना; इलेक्ट्रिक वाहन के उपयोग को बढ़ाने का अभियान और हरित हाइड्रोजन (Green Hydrogen) ईंधन के बढ़ते उपयोग से परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. भारत 2025 तक इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को अधिकतम करने, 20 फीसदी तक इथेनॉल का मिलाना एवं यात्री और माल ढुलाई के लिए सार्वजनिक परिवहन के साधनों में एक सशक्त बदलाव लाने की आकांक्षा रखता है.

भूपेंद्र यादव द्वारा जारी कि गई नीति में कहा गया है कि शहरीकरण की प्रक्रिया हमारे वर्तमान अपेक्षाकृत कम शहरी आधार के कारण जारी रहेगी. भविष्य में स्थायी और जलवायु सहनीय शहरी विकास निम्न द्वारा संचालित होंगे- स्मार्ट सिटी पहल; ऊर्जा और संसाधन दक्षता में वृद्धि एवं अनुकूलन को मुख्यधारा में लाने के लिए शहरों की एकीकृत योजना; प्रभावी ग्रीन बिल्डिंग कोड और अभिनव ठोस व तरल अपशिष्ट प्रबंधन में तेजी से विकास के प्रयास किए जाएंगें.

‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ को लेकर कहा गया है कि भारत का औद्योगिक क्षेत्र एक मजबूत विकास पथ पर आगे बढ़ता रहेगा. इस क्षेत्र में कम-कार्बन उत्सर्जन वाले साधनों को अपनाने का प्रभाव- ऊर्जा सुरक्षा, ऊर्जा पहुंच और रोजगार पर नहीं पड़ना चाहिए. प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Performance Achievement and Trade) योजना, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, सभी प्रासंगिक प्रक्रियाओं और गतिविधियों में विद्युतीकरण के उच्च स्तर, भौतिक दक्षता को बढ़ाने और चक्रीय अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए पुनर्चक्रण (Recycling) एवं स्टील, सीमेंट, एल्युमिनियम और अन्य जैसे कठिन क्षेत्रों में अन्य विकल्पों की खोज आदि के माध्यम से ऊर्जा दक्षता में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.

इसके अलावा नीति के आखिरी में कहा गया है कि भारत का उच्च आर्थिक विकास के साथ-साथ पिछले तीन दशकों में वन और वृक्षों के आवरण को बढ़ाने का एक मजबूत रिकॉर्ड रहा है. भारत में जंगल में आग की घटनाएं वैश्विक स्तर से काफी नीचे है, जबकि देश में वन और वृक्षों का आवरण 2016 में कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन का 15 फीसदी अवशोषित करने वाला शुद्ध सिंक मौजूद है. भारत 2030 तक वन वृक्षों के आवरण द्वारा 2.5 से 3 बिलियन टन अतिरिक्त कार्बन अवशोषण की अपनी एनडीसी प्रतिबद्धता को पूरा करने के रास्ते पर है.

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