26 जनवरी 2023 को 74वें गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर भारतीय नौसेना का IL-38 (Ilyushin Il-38) विमान पहली बार और शायद अंतिम बार कर्तव्य पथ के ऊपर से उड़ान भरेगा। इस बार यह भारतीय वायु सेना के 9 राफेल सहित 44 विमानों में से एक होगा, जो कि इस भव्य आयोजन का हिस्सा होगा। विंग्ड स्टैलियंस के रूप में जाना जाने वाले इस Il-38 की फ्लीट को इस साल के अखिर तक भारतीय नौसेना से सेवामुक्त कर दिया जाएगा।
नौसेना द्वारा 1977 में शामिल करने के बाद से ही IL-38 विमान का उपयोग भारतीय नौसेना ने लंबी दूरी की एंटी-सबमरीन खोज और स्ट्राइक, एंटी-शिपिंग स्ट्राइक, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटेलिजेंस के साथ-साथ रिमोट SAR सहित एकीकृत एयरबोर्न लॉन्ग रेंज मैरीटाइम रिकॉनिसंस (LRMR) के क्षेत्र में भी प्रवेश किया।
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Il-38 की क्या है खासियत
साल 1977 में भारतीय नौसेना में शामिल किए गए, लंबी दूरी की निगरानी और पनडुब्बी रोधी युद्धक विमान इलुशिन 38 एसडी (Ilyushin-38) की जगह अब भारतीय नौसेना में अमेरिकी कंपनी बोइंग द्वारा बनाए गए P8is ने ले ली है। इलुशिन 38 एसडी भारतीय नौसेना का सबसे पुराना समुद्री निगरानी विमान है।
IL-38 एक समुद्री टोही विमान है, और लगभग 44 वर्षों तक अपने पूरे सेवाकाल में ये भारतीय नौसेना की एक महत्वपूर्ण हवाई संपत्ति बना रहा। IL-38 एक बहुउद्देश्यीय विमान भी है जिसमें सभी मौसम में उड़ान भरने की क्षमता है। रक्षा मंत्रालय से जुड़े हुए सूत्रों ने मीडिया को बताया कि, ‘Il-38 विमान के लिए 2023 के गणतंत्र दिवस समारोह में यह पहली और आखिरी उड़ान होगी।’
इससे पहले आईएन 301, नौसेना के पहले आईएल 38-SD (सी ड्रैगन्स) विमान को देश की सेवा के 44 साल पूरे करने के बाद 17 जनवरी 2022 को सेवामुक्त कर दिया गया था। Il-38 को INAS 315 स्क्वाड्रन से जुड़ा हुआ है जिसे 1 अक्टूबर 1977 को रियर एडमिरल एम के रॉय द्वारा कमीशन किए जाने के बाद कमांडर बी के मलिक ने इसकी कमान संभाली थी।
1977 में इस स्क्वाड्रन को शुरू करते हुए इसमें केवल तीन इल्युशिन 38 हुआ करते थे, हालांकि इसके बाद में दो Il-38 को शामिल किया गया था। Il-38 विमान के नौसेना में शामिल होने के बाद से भारतीय नौसेना को आधुनिक समुद्री टोही और फिक्स्ड-विंग एंटी-सबमरीन वारफेयर (एएसडब्ल्यू) क्षमता मिली जिसको नौसेना खुब भुनाया भी। इन विमानों के साथ ही, भारतीय नौसेना की लंबी दूरी की एंटी-सबमरीन सर्च और स्ट्राइक, एंटी-शिपिंग स्ट्राइक, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटेलिजेंस और दूर की खोज और बचाव मिशन के साथ संयुक्त लंबी दूरी की समुद्री टोही क्षमताओं तक पहुंच हो गई थी जो उस समय के हालात के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण थी।
कई महत्वपूर्ण मिशनों में निभाई बड़ी भूमिका
Il-38 का पहली बार खोज अभियान में पहली बार उपयोग जनवरी 1978 के दौरान किया गया था। जनवरी 1978 में इसने एयर इंडिया जंबो के मलबे का पता लगाने के लिए मैगनेटिक एनोमली डिटेक्टर (एमएडी) उपकरण का इस्तेमाल किया गया था जो मुंबई तट से उड़ान भरने के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
इसके बाद इस विमान ने 1996 में 25,000 घंटे की बगैर किसी दुर्घटना के उड़ान पूरी की थी। लेकिन, साल 2002 में स्क्वाड्रन की रजत जयंती के साथ-साथ 30,000 घंटे से अधिक की दुर्घटना-मुक्त उड़ान का जश्न मनाने के दौरान एक बड़ी घटना हुई जब दो IL-38s की बीच हवा में टकरा गये। इस दुर्घटना में भारतीय नौसेना के सत्रह कर्मियों की मौत हो गई थी, इसके साथ ही ये दोनों विमान भी खत्म हो गए। वहीं इनको 2002 में हुई दुर्घटना से दो साल पहले ही इसे अपग्रेड किया गया था ताकि अगले 15 सालों तक ये सेवाएं दे पाए।