Brijesh Singh: मुख्तार अंसारी माफिया के जाने-माने दुश्मन और सबसे बड़े विरोधी बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार सिंह को 14 साल बाद गुरुवार रात जेल से रिहा कर दिया गया है। मुख्तार अंसारी पर हमले के सिलसिले में बुधवार को उन्हें हाईकोर्ट ने जमानत दे दिया था। बृजेश सिंह की पूरी जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। बृजेश सिंह पर हत्या और हत्या के प्रयास सहित दर्जनों मामले दर्ज हैं। इतना ही नहीं, इनके खिलाफ मकोका यानी महाराष्ट्र का संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, टाडा, गैंगस्टर कानून, हत्या, हत्या की साजिश, दंगा भड़काने, रंगदारी और धोखाधड़ी से जमीन हथियाने के मामले दर्ज हैं।
मुख्तार अंसारी के गैंग के लिए कभी बृजेश आतंक का पर्याय था तो कभी अपने भागने की वजह से सुर्खियां बटोरता था। इस दौरान उनकी मौत की भी अफवाह उड़ी थी। 2008 में भुवनेश्वर में गिरफ्तार होने के बाद, बृजेश 14 साल तक अलग-अलग जेलों में रहते हुए भी हमेशा सुर्खियों में रहा। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी से सांसद बने तभी जेल में रहते हुए बृजेश 2016 में वाराणसी सीट से एमएलसी बन गए।

कभी पूर्वांचल के सबसे बड़े माफिया डॉन कहे जाने वाले बृजेश सिंह पिछले 3 दशकों से अधिक समय से मुख्तार अंसारी के गिरोह से सीधे तौर पर लड़ रहे हैं।इस लड़ाई में अब तक दर्जनों लोगों की कुर्बानी दी जा चुकी है। दोनों ओर से भारी गोलाबारी की गई और लोग मारे गए थे। इन दोनों गिरोहों के बीच हुई हत्या में पहली बार AK-47 का भी इस्तेमाल किया गया था। पूर्वांचल के छोटे-मोटे अपराधी इन दोनों को अपना आदर्श मानते थे और कुछ बृजेश सिंह के गिरोह से जुड़े थे और कुछ मुख्तार अंसारी के साथ।
पिता की हत्या के बाद Brijesh Singh ने अपराध की दुनिया में रखा कदम
वाराणसी के धौरहरा गांव के रहने वाले बृजेश सिंह पढ़ाई में औसत थे। उनके पिता रवींद्र नाथ सिंह, जो सिंचाई विभाग के एक कर्मचारी थे, चाहते थे कि उनका बेटा अपनी पढ़ाई पास करे और IAS बने। पिता के सपने को साकार करने के लिए बृजेश को BSC में भर्ती कराया गया था। फिर जमीन के विवाद में पिता की हत्या कर दी गई। 1984 में हुए इस हत्याकांड के बाद बृजेश अपने पिता के सपनों को भूल गया, जिसके बाद उसने घर छोड़ दिया और आरोप है कि वहीं से वह अपराध की दुनिया में पहुंच गया।

पंचू के पिता की हत्या से सुर्खियों में आया था Brijesh Singh
वाराणसी के धौरहरा गांव के रहने वाले बृजेश सिंह का नाम सबसे पहले 1984 में हुई हत्या से जुड़ा था। आरोप है कि तब तक बृजेश सिंह ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए हथियार उठा लिए थे। पड़ोसी पंचू पर बृजेश सिंह के पिता रवींद्र सिंह की हत्या का आरोप लगाया गया था। कहा जाता है कि उस समय इस क्षेत्र में पंचू सबसे शक्तिशाली था। आरोप है कि 1985 में बृजेश पंचू के घर गया था, घर के बाहर पंचू के पिता हरिहर सिंह बैठे थे। तभी उसने हमला कर दिया था।
बृजेश के पिता की हत्या में ग्राम प्रधान रघुनाथ की भी भूमिका थी। आरोप है कि भीड़भाड़ वाले कोर्ट में बृजेश ने उसे AK-47 से भून डाला। कहा तो ये भी जाता है कि पूर्वांचल के इतिहास में पहली बार AK-47 का इस्तेमाल यहीं हुआ था। इस गैंगवार को रोकने के लिए पुलिस की एक विशेष टीम बनाई गई। पुलिस के साथ हुई झड़प में पंचू की मौत हो गई। इस मुठभेड़ के बाद लोगों को लगा था कि ‘खून का खेल’ रुक जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
गैंगवार के कुछ ही दिन बाद सिकरौरा गांव में पूर्व मुखिया रामचंद्र यादव समेत 6 लोगों की हत्या कर दी गई। इसी दौरान बृजेश को भी गोली लग गई। पुलिस ने बृजेश को पकड़ लिया। उसे लेकर पुलिस अस्पताल पहुंची, लेकिन वह वहां से फरार हो गया।
तीन साल रहा लापता, फिर ऐसे हुई भुवनेश्वर से गिरफ्तारी
इस घटना के बाद बृजेश गायब हो गया। ऐसी भी अफवाहें थीं कि बृजेश की हत्या कर दी गई थी। हालांकि पुलिस को विश्वास नहीं हुआ। हैरानी की बात यह है कि पुलिस के पास बृजेश की फोटो भी नहीं थी। वहां की इकलौती तस्वीर पुरानी थी। इसके आधार पर बृजेश को पकड़ना बेहद मुश्किल था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने तीन साल बाद इस काम में कामयाबी हासिल की।
2008 में, पुलिस ने बृजेश को भुवनेश्वर, ओडिशा से गिरफ्तार किया। पुलिस के मुताबिक, बृजेश वहां अरुण कुमार के रूप में रहता था। हालांकि कहा जाता है कि यह गिरफ्तारी प्रायोजित थी। स्नातक की पढ़ाई के बावजूद बृजेश तीन साल के भीतर ताकतवर होता चला गया। अब उसे पूर्वांचल में रहकर मुख्तार गैंग का खात्मा करना था।

बृजेश के जेल में आते ही पूर्वांचल में हत्या का सिलसिला
यह जानने के बाद कि बृजेश सिंह जीवित है और कैद में है, पुर्वांचल में एक बार फिर से हत्याओं का सिलसिला शुरू हो गया। दो गैंगों के बीच गैंगवार तेज हो गया। वाराणसी से गाजीपुर, मऊ, जौनपुर समेत अन्य जिलों में ताबड़तोड़ गोलियां चलने लगीं। जिला पंचायत के विशेष सदस्य अजय खलनायक के वाहन पर गोलियां चलाई गईं, जिनकी पत्नी भी वाहन में सवार थी। तीन गोलियां अजय को लगी और एक गोली उनकी पत्नी को लगी, हालांकि दोनों बच गए। ठीक दो महीने बाद 3 जुलाई को बृजेश के चचेरे भाई सतीश सिंह को सरेआम गोली मार दी गई।
मुख्तार अंसारी को टक्कर देने के लिए राजनीति में आए
कहा जाता है कि मुख्तार की राजनीति के प्रभाव को देखकर ब्रजेश सिंह ने कई राजनेताओं से भी संबंध बनाए। 2012 में उन्होंने खुद चंदौली की सैयदराजा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि, समाजवादी पार्टी की लहर में सपा प्रत्याशी मनोज सिंह से हार गए। ब्रजेश ने 2016 में वाराणसी की घेराबंदी से एमएलसी का दावा किया। मनोज सिंह की बहन मीना सिंह प्रतिद्वंद्वी ब्रजेश के सामने आईं। ब्रजेश ने मीना को हराकर मनोज से बदला लिया।
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