सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) , विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने कई बार बयान दिया है कि, कोरोना वैक्सीन की पहली डोज में एंटीबॉडी तैयार होने लगती है। जिससे कोरोना जैसी महामारी से लड़ने में आसानी होती है। लेकिन लखनऊ के रहने वाले प्रताप चंद्र गुप्ता के साथ उल्टा हो गया। कोरोना वैक्सीन के बाद एंटीबॉडी भी नहीं बनी और प्लेटलेट्स घटकर तीन लाख से डेढ़ लाख तक पहुंच गई।
टूर एंड ट्रैवल का बिजनेस करने वाले प्रताप चंद्र ने इसे खुद के साथ धोखा बताया है। उन्होंने कोवीशील्ड वैक्सीन बनाने वाली सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) और उसे मंजूरी देने वाली ICMR और WHO पर FIR दर्ज कराने के लिए एप्लीकेशन दी है।
प्रताप ने इसके खिलाफ SII के CEO अदार पूनावाला, ICMR के डायरेक्टर बलराम भार्गव, WHO के DG डॉ. टेड्रोस एधोनम गेब्रेसस, स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की डायरेक्टर अपर्णा उपाध्याय के खिलाफ लखनऊ के आशियाना थाने में एप्लीकेशन दी है। इंस्पेक्टर पुरुषोत्तम गुप्ता ने कहा कि मामले की जांच के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों से संपर्क किया गया है। शासन स्तर पर इसकी जांच होगी।
प्रताप ने आरोप लगाया है कि, वैक्सीन लगवाने के बाद उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। मेरा प्लेटलेट्स घट गया। 21 मई को मैंने ICMR और स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ्रेंस को देखा। इसमें ICMR के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने साफ कहा था कि कोवीशील्ड की पहली डोज लेने के बाद से ही शरीर में अच्छी एंटीबॉडी तैयार हो जाती है, जबकि कोवैक्सिन की दोनों डोज के बाद एंटीबॉडी बनती है। ये देखने के बाद 25 मई को सरकारी लैब में उन्होंने एंटीबॉडी GT टेस्ट कराया।
प्रताप चंद्र ने बताया कि, मैं अकेला नहीं हूं जिसमे एंटीबॉडी नहीं बनी है। मेरे जैसे कई लोग और भी हैं। इसलिए अगर मेरी शिकायत को अनसुना किया जाता है तो, मैं 6 तारीख को कोर्ट खुलने पर कोर्ट जाउंगा। उन्होंने आगे कहा, मुझे बताया जाए वैक्सीन लगी थी या उस में पानी भरकर लगा दिया था।