Environment: देश में हर वर्ष जून और जुलाई के महीने में जमकर बारिश होती है।ऐसे में लोगों को लगातार पड़ रही भीषण गर्मी और बढ़ते तापमान से निजात पाने के लिए मानसून का बेसब्री इंतजार रहता है।इस दौरान होने वाली बारिश देश में सालाना होने वाली बारिश का लगभग 70 फीसदी होती है। लेकिन इस बार दक्षिण-पश्चिम मानसून की देरी से दिल्ली-एनसीआर को भीगाने में थोड़ी देरी होने की संभावना है।
ये पहला मौका नहीं है जब मानसून आने में देरी हुई है।पिछले 11 वर्षों में ये सातवां मौका है जब मानसून दिल्ली में देर से दस्तक दे रहा है।पिछले वर्ष संभावित तिथि से 16 दिन की देरी पर मानसून राजधानी पहुंचा था।मानसून में हो रही देरी की प्रमुख वजह लगातार बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग और तेजी से घटते वन हैं।
Environment: क्या है ग्लोबल वार्मिंग और इसका असर?
वायुमंडल में मौजूद ग्रीन हाउस गैस (मीथेन, कार्बन इाईऑक्साइड, ऑक्साइड और क्लोरो-फ्लूरो-कार्बन) के बढ़ते स्तर से पृथ्वी के औसत तापमान में होने वाली बढ़ोतरी को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। इसकी वजह से क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन भी होता है। इसका सबसे ज्यादा असर पर्यावरण पर पड़ता है। नतीजतन मौसम में हो रहे बदलाव के साथ ही असामन्य बारिश, कहीं सूखा तो कहीं भीषण गर्मी पड़ती है।पिछले दो दशक से ग्लोबल वार्मिंग में तेजी के साथ इजाफा हुआ है। इसका असर मानसून की गतिविधियों पर होता है।
Environment: कमजोर पड़ी मानसूनी हवाएं
मौसम विभाग के अनुसार इस वर्ष मानसूनी हवाओं ने पहले तो तेजी के साथ प्रगति की, लेकिन बाद में हवाएं कमजोर पड़ गईं। इस समय भी देश के पश्चिमी तटों पर मानसून पहुंच गया है।पूर्वी तट पर भी निम्न दबाव का क्षेत्र नहीं बनने से मानसून की प्रगति कमजोर हुई। अगर यही स्थिति रही तो ये पर्यावरण को नुकसान हो सकता है। बहुत से पर्यावरण वैज्ञानिकों को आशंका है कि वर्ष 2035 तक औसत वैश्विक तापमान अतिरिक्त 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
Environment: पिछले 11 वर्षों में Delhi-NCR में कब पहुंचा मानसून?
2011 | 26 जून |
2012 | 07 जुलाई |
2013 | 16 जून |
2014 | 3 जुलाई |
2015 | 25 जून |
2016 | 2 जुलाई |
2017 | 2 जुलाई |
2018 | 28 जून |
2019 | 5 जुलाई |
2020 | 25 जून |
2021 | 13 जुलाई |
Environment: जानें तेजी के साथ सिमटते वनों के नुकसान
पर्यावरण शोध पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसारभविष्य में हमारे ग्रह पर बड़े जंगलों की संख्या कम हो जाएगी। जोकि ठीक नहीं है।पुराने जंगलों का अस्तित्व भी कम हो जाएगा। क्योंकि पुराने जंगलों में जैवविविधता और कार्बन की मात्रा भी अधिक होती है। जबकि ऐसा युवा जंगलों में बिल्कुल भी नहीं होगा।
जलवायु परिवर्तन से जंगलों की कार्बन जमा करने की क्षमता कम हो जाएगी, लेकिन इसके अलावा वे उन प्रजातियों को सहेजने लायक भी नहीं रहेंगे जो ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद करते हैं।
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