UP Election 2022: 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे अहम उत्तर प्रदेश को माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश की राजनीति उसकी जनसंख्या और भौगोलिक स्थिति के कारण हमेशा से दिल्ली की सत्ता के लिए काफी अहम रही है। कोरोना संकट, महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं के बीच हो रहे इस चुनाव में BJP को विरोधी दलों से कड़ी टक्कर मिल रही है। पिछले तीन दिनों में BJP खेमें से 2 मंत्री ने त्यागपत्र दे दिया है। पार्टी के लगभग 1 दर्जन विधायक बागी बताए जा रहे हैं। ये सभी ऐसे विधायक हैं जिनका अपनी जाति में मजबूत आधार माना जाता रहा है।
UP Election 2022: क्या है उत्तर प्रदेश का जातिगत गणित?
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश की राजनीति में धर्म और जाति का फैक्टर सबसे अहम रहा है। हालांकि किस जाति के कितने मतदाता हैं इसे लेकर कोई पुख्ता डेटा उपलब्ध नहीं है। लेकिन तमाम दलों और राजनीति के जानकारों की तरफ से लगातार दावें होते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में OBC वोट बैंक सबसे अधिक लगभग 41 प्रतिशत है। जिसमें सबसे अधिक संख्या यादवों की है। लेकिन इसके साथ ही कई और भी जातियां हैं जिनका मजबूत सामाजिक आधार रहा है।
राष्ट्रीय जनगणना के आधार पर सीएसडीएस की तरफ से जारी आंकड़ें को आप देख सकते हैं।
जाति | प्रतिशत |
अनुसूचित जाति | 21.1 |
अनुसूचित जनजाति | 0.1 |
हिंदू ओबीसी | 41.47 |
मुस्लिम ओबीसी | 12.58 |
मुस्लिम सामान्य वर्ग | 5.73 |
हिंदू सामान्य वर्ग | 18.92 |
क्रिश्चियन | 0.1 |
सिख | 0.32 |
UP Election 2022: पिछले चुनावों का क्या रहा है समीकरण?

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश की राजनीति में मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद आए बदलाव के बाद कांग्रेस का पतन हो गया। जिसके बाद दलित वर्ग का मत BSP के खाते में जाने लगा। यादव और मुस्लिम मतों का एक बड़ा हिस्सा सपा के साथ रहा और मंदिर आंदोलन के बाद सामान्य वर्ग के मतदाताओं और यादव के अलावा जो ओबीसी मतदाता थे वो बीजेपी के साथ आ गए। यादव के अलावा जो OBC मतदाता हैं वो बेहद अहम माने जाते हैं। पिछले 3 दशकों में इन्हें फ्लोटिंग वोटर के तौर पर देखा जाता रहा है। ये जिसके साथ गए हैं उनकी सरकार बनी है। सपा और बीजेपी की राजनीति पर इनका व्यापक असर रहा है। मायावती को भी अपने मजबूती के दिनों में इस वर्ग के क्षत्रपों का साथ मिला है।
2017 के विधानसभा चुनाव में किसे मिले थे कितने प्रतिशत वोट?
UP Election 2022: 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उसके सहयोगी दलों को अगर मिला दिया जाए तो 41.4 प्रतिशत वोट मिले थे। सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था और उसे लगभग 28 प्रतिशत वोट मिले थे। बीएसपी ने अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ा था उसे लगभग 22 प्रतिशत वोट मिले थे।
UP Election 2022: स्वामी प्रसाद मौर्य क्यों हैं महत्वपूर्ण?

2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी शर्मनाक पराजय के बाद पार्टी ने बिहार में नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियरिंग के तर्ज पर यादव के अलावा सभी ओबीसी जातियों को और दलित समाज में जाटव के अलावा सभी दलित जातियों को अपने साथ जोड़ कर, एक मजबूत गठजोड़ तैयार कर लिया था। जिसका परिणाम पार्टी को 2014,2017 और 2019 के चुनावों में देखने को मिला।
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। इस दौरान बीजेपी को ओमप्रकाश राजभर का भी साथ मिला था। निषाद पार्टी, अपना दल जैसे दलों को साथ लाकर पार्टी ने 300 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज कर विरोधियों को मात दे दी थी। सपा और बसपा अपन कोर मतदाताओं के साथ के बावजूद काफी पीछे रह गयी थी। ऐसे में यह माना जाने लगा था कि सपा को सिर्फ यादव और बसपा को सिर्फ जाटव मतदाताओं का वोट मिलता है। स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के बीजेपी छोड़कर सपा में आने के बाद सपा की पैंठ ओबीसी की अन्य जातियों में भी बढ़ेगी।
UP Election 2022: इस चुनाव में कितने बदले हैं समीकरण?
UP Election 2022: 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने किसी भी बड़े दल से गठबंधन न करते हुए छोटे-छोटे क्षत्रपों को साधने का प्रयास किया है। बुधवार को अखिलेश यादव द्वारा बुलाए गए बैठक में राष्ट्रीय लोकदल, महान दल, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, जनवादी पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी समेत कई अन्य दलों के नेता पहुंचे थे। इस बीच बीजेपी में इस्तीफों का दौर चल रहा है।
स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा दारा सिंह चौहान , ब्रजेश प्रजापति ,अवतार सिंह बढाना, रोशनलाल वर्मा , भगवती प्रसाद सागर, मुकेश वर्मा, विनय शाक्य, धर्म सिंह सैनी, बाला प्रसाद अवस्थी ने पार्टी छोड़ दिया है। उम्मीद है कि ये सभी नेता सपा के साथ जाएंगे। इन सभी नेताओं का अपनी-अपनी जातियों में एक आधार माना जाता रहा है।
UP Election 2022: कांग्रेस की रणनीति का किसे होगा फायदा?

जातिगत और सांप्रदायिक गठजोड़ से अलग कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव में अपनी अलग रणनीति बनायी है। पार्टी ने इस चुनाव में अपने आप को महिला मतदाताओं पर केंद्रित कर दिया है। ऐसे में सबसे अहम यह हो जाता है कि कांग्रेस के प्रयासों का असर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की महिला पर कितना पड़ता है? यह चुनाव परिणाम के लिए अहम कारक होगा। अगर कांग्रेस पार्टी सिर्फ शहरो तक ही महिला मतदाताओं पर असर कर पाएगी तो उसका नुकसान सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को होगा, लेकिन अगर गांव के जातिगत व्यवस्था पर भी कांग्रेस का महिला कार्ड चलता है तो उसका असर अन्य दलों के वोट बैंक और समीकरण पर भी पड़ेगा।
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