छठ महापर्व (Chhath Mahaparv) की शुरुआत 8 नवंबर से नहाय खाय से हो गई है। आज से लेकर पूरे चार दिन तक छठ की रौनक घाटों पर दिखाई देगी। पहले दिन की शुरुआत नहाय खाय से होती है। दूसरे दिन खरना, तीसरे और चौथे दिन अस्त होते सूर्य को या फिर उदय होते सूर्य को नदी में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं। नहाय खाय में पूजा करने की विधि का खासा ख्याल रखा जाता है। इसकी तैयारी भी काफी खास होती है। यहां पर हम आपको तैयारी के बारे में बता रहे हैं।
इन बातों का रखें ध्यान
सुबह-सबेरे स्नान कर नया वस्त्र धारण करें। महिलाएं माथे पर लंबा सिंदूर लगाकर ही घर का काम करें। छठ का प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी लेपकर चूल्हा बनाएं या फिर गैस को साफ कर उस पर प्रसाद बना सकती हैं। छठ का व्रत काफी कठिन होता है। आज आखिरी बार नमक खाएं, भात बनेगा और सेंधा नमक से कद्दू यानी लौकी की सब्जी बनेगी। घर के सभी लोग यही भोजन करेंगे। छठ का मुख्य प्रसाद ठेकुआ बनाया जाएगा।
सामग्री
इस खास पूजा के लिए पांच गन्ने जिसमें पत्ते लगे होना आवश्यक होता है, पानी वाला नारियल, अक्षत (चावल), पीला सिंदूर, दीपक, घी, बाती, कुमकुम, चंदन, धूपबत्ती, कपूर, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, फूल, हरे पान के पत्ते, साबुत सुपाड़ी, शहद को भी एकत्रित कर लें. इसके साथ ही हल्दी, मूली और अदरक का हरा पौधा, बड़ा वाला मीठा नींबू, शरीफा, केला और नाशपाती भी पूजा के प्रयोग में आती है. इस पूजा में शकरकंदी और सुथवी का भी महत्व होता है। थेकुआ आदि बनाने के लिए गेहूं का आटा गुड़ , देसी घी भी चाहिए होता है।
इस तरह होती है पूजा
बता दें कि नहाय-खाय के दिन भोजन करने के बाद व्रती अगले दिन शाम को खरना पूजा करती हैं। इस पूजा में महिलाएं शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाकर उसे प्रसाद के तौर पर खाती हैं और इसी के साथ व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मईया) का आगमन हो जाता है।
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