Nagchandreshwar Temple: साल में मात्र 24 घंटे के लिए खुलता है ये मंदिर, जानिए प्रतिमा की खासियत

Nagchandreshwar Temple: उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के तीसरे भाग में एक नागचंद्रेश्वर मंदिर है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यह मंदिर साल भर में केवल 24 घंटे के लिए खुलता है।

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Nagchandreshwar Temple: साल में मात्र 24 घंटे के लिए खुलता है ये मंदिर, जानिए क्या है इसमें रखी मूर्ती की खासियत
Nagchandreshwar Temple: साल में मात्र 24 घंटे के लिए खुलता है ये मंदिर, जानिए क्या है इसमें रखी मूर्ती की खासियत

Nagchandreshwar Temple: सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी मनाई जाती है। इस बार नाग पंचमी 2 अगस्त को मनाई जा रही है। यह दिन नाग देवता को समर्पित होता है। इस दिन लोग नाग देवता को गाय के दूध से स्नान कराते हैं। लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि इस दिन नाग देवता के साथ भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से कालसर्प दोष खत्म हो जाता है।

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Nagchandreshwar Temple

इस दिन भगवान शिव की अराधना भी अहम होती है। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के तीसरे भाग में एक नागचंद्रेश्वर मंदिर है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यह मंदिर साल भर में केवल 24 घंटे के लिए खुलता है। इस मंदिर की और इसकी पौराणिक कथा के बारे में आपको बताते हैं।

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Nagchandreshwar Temple

Nagchandreshwar Temple: 11वीं सदी की है प्रतिमा

नागचंद्रेश्वर मंदिर रखी प्रतिमा काफी पुरानी है। दरअसल, कहा जाता है कि इस मंदिर में रखी गई प्रतिमा 11वीं शताब्दी में नेपाल से लाई गई थी। इस प्रतिमा में शिव-पार्वती अपने पूरे परिवार के साथ आसन पर बैठे हुए हैं जिन पर सांप फन फैलाकर बैठा हुआ है। पूरे भारत में यह एकलौता ऐसा मंदिर है जिसमें भगवान शिव अपने परिवार के साथ सांप के शय्या पर विराजमान हैं।

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Nagchandreshwar Temple

Nagchandreshwar Temple: होती है त्रिकाल पूजा

भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की परंपरा है। यानी इसका कपाट खुलने के बाद तीन बार पूजा-अर्चना की जाती है। इस कड़ी में पहली पूजा मध्यरात्री में, दूसरी पूजा नांगपंचमी की दोपहर शासन द्वारा और तीसरी पूजा नागपंचमी की शाम को भगवान महाकाल की पूजा के बाद मंदिर समिति द्वारा की जाती है। अंत में कपाट को दोबारा 24 घंटे के लिए बंद कर दिया जाता है।

Nagchandreshwar Temple

Nagchandreshwar Temple: पौराणिक कथा

इसके पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है। मान्यताओं के अनुसार सांपों के राजा तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। इस तपस्या से भगवान शिव काफी प्रसन्न हुए और सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दे दिया। इस वरदान के बाद से राजा तक्षक ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पहले राजा तक्षक की यह इच्छा थी कि उनके एकांत में किसी तरह का कोई विघ्न ना हो इसलिए यही प्रथा चलती आ रही है कि सिर्फ नागपंचमी के दिन ही कपाट खोल कर उनके दर्शन किए जाते हैं और बाकी समय मंदिर बंद रहता है।

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