अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) सरकार अगले महीने 8 तारीख को देश में एंटी पोलियो कैम्पेन (Anti Polio Campaign) के तहत बच्चों को पोलियो की ओरल वैक्सीन (Oral Vaccine) पिलाएगी। इसके लिए यूनाइटेड नेशन्स (UN) फंड दी है।
बता दें कि अफगान और पाकिस्तान तालिबान हमेशा से एंटी पोलियो कैम्पेन का विरोध करते रहे हैं औऱ यहां पोलियो वैक्सीन पिलाने वाली टीमों पर कई जानलेवा हमले हुए।
UN ने मुहैया कराया फंड
यूएन ने पिछले दिनों कहा था कि 8 नवंबर को दुनिया के तमाम देशों में एंटी पोलियो कैम्पेन चलाया जाएगा और इसके लिए फंड भी दिया जाएगा। तालिबान ने इस कैम्पेन में मदद का आश्वासन दिया है । ये टीमें घर-घर जाकर ड्रॉप्स पिलाएंगी और इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी तालिबान ने ली है।
एंटी पोलियो कैम्पेन अपनी निगरानी में चलाएगा तालिबान
बता दें कि तीन साल बाद अफगानिस्तान में इस तरह का कैम्पेन चलाया जाएगा। इस दौरान उन इलाकों में भी टीमें जाएंगी, जहां पहले ये कभी नहीं पहुंच पाईं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अलावा नाईजीरिया ही ऐसा देश है, जहां अब भी पोलियो के मामले सामने आते हैं। पोलियो वायरस के कई प्रकार अब भी मौजूद हैं और इनमें से ज्यादातर इन्ही तीन देशों में हैं।
करीब 10 पहले जब हामिद करजई सरकार के दौरान देश में एंटी पोलियो कैम्पेन चलाया गया था, तब तालिबान के डर से अभियाना फेल हो गया। वहीं पाकिस्तान में कबायली इलाकों में वजीरिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में दो बार एंटी पोलियो कैम्पेन बंद करना पड़ा है, तालिबान ने पोलियो वर्कर्स की हत्या कर दी थी।
सीडीसी ने पोलियो को लेकर कई देशों को सतर्क रहने के लिए कहा था
बता दें कि कुछ महीनों पहले पोलियो जैसी बीमारी एक्यूट प्लेसिड म्येलिटिस (Acute Placid Myelitis) के फैलने की आशंका सेंटर फॉर डिजिज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने दी है और साथ ही सतर्क रहने की सलाह दी है, जिसके बाद तेजी से टीकाकरण किया जा रहा है ।
क्या है एक्यूट प्लेसिड म्येलिटिस
यह एक असमान्य और गंभीर न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, यह तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है, विशेष रूप से रीढ की हड्डी के क्षेत्र को ग्रे मैटर कहा जाता है, जिससे शरीर में मांशपेशियां कमजोर होती हैं।
ये है लक्षण
सीडीसी का रिलीज में बताया गया है कि एएफएम एक मेडिकल इमरजेंसी है और फौरन मरीजों के स्वास्थ की देखभाल होनी चाहिए। उन इलाकों पर खास ध्यान देना चाहिए, जहां कोरोना के मामले रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग के चलते इस साल कोरोना की एक और लहर में देरी हो सकती है और ऐसी स्थिति में एएफएम के मामले ज्यादा बढ़ सकते हैं। बताया गया है कि 2014 के बाद से न्यूरालॉजिकल बीमारी के कारण पैरालिसिस के मामले सामने आए हैं। 2018 में सबसे ज्यादा प्रकोप 42 राज्यों में आया, 239 लोग बीमार हुए और 95 प्रतिशत बच्चे बीमार हुए।
नहीं है कोई इलाज नहीं
सीडीसी ने कहा है कि इसका कोई इलाज नहीं, लक्षणों के आधार पर इसका इलाज किया जाता है। जरूरी है रोग पहचान कर तुरंत चिकित्सा। इमरजेंसी डिपार्टमेंट में पैडियाट्रिसियंस और फ्रंटलाइन प्रोवाइडर्स और अर्जेंट केयर्स को एएफएम की फौरन पहचान करने के लिए तैयार रहना चाहिए और तुरंत मरीजों को इलाज देना चाहिए।
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