मध्य पूर्व के देश ईरान (Iran) इन दिनों बड़े स्तर पर प्रदर्शनों का सामना कर रहा है. देश की नैतिकता पुलिस (Morality Police) द्वारा 13 सितंबर 2022 को 22 वर्षीय महसा अमिनी नाम की युवती को हिजाब नहीं पहनने के चलते गिरफ्तार किया गया और तीन दिन बाद, यानी 16 सितंबर को उसकी मौत हो गई. लेकिन लंबे समय से प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों के लिए रविवार का दिन बड़ा दिन साबित हुआ.
रविवार को ईरान में लंबे समय से जारी विरोध प्रदर्शन के बीच अटार्नी जनरल मोहम्मद जफर मोंटेजेरी (Mohammad Jafar Montazeri) ने ईरानी समाचार एजंसी ISNA को बताया कि नैतिकता पुलिस (Morality Police) का न्यायपालिका से कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए इसे खत्म किया जा रहा है. एक धार्मिक सम्मेलन के दौरान एक प्रतिभागी के सवाल का जवाब देते हुए मोंटेजेरी ने ये टिप्पणी की. हालांकि अटॉर्नी जनरल के इस बयान की पुष्टि बाहरी देशों की अन्य एजेंसियों के जरिए की जानी बाकी है.
मोंटेजेरी ने आगे कहा कि इसका “नियंत्रण गृह मंत्रालय के पास था ना कि न्यायपालिका के पास.” इससे पहले मोंटेजेरी ने ईरानी संसद में ये भी कह चुके हैं कि “महिलाओं को हिजाब पहनना जरूरी करने वाले कानून पर दोबारा विचार किया जाएगा.”
कहां से हुई थी ईरान में प्रदर्शनों की शुरूआत?
यूं तो ईरान में प्रदर्शन कई बार हुए हैं, लेकिन इस बार के प्रदर्शन कई मामलों में खास हैं. इस वर्ष 16 सितंबर को 22 साल की छात्रा महसा अमिनी (Mahsa Amini) की पुलिस हिरासत में मौत के बाद हिजाब विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए थे. ईरानी सरकार द्वारा प्रदर्शनों को रोकने के लिए की गई कार्रवाई में अब तक तीन सौ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और हजारों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया है. ईरान में महिलाओं के लिए हिजाब एक जरूरी कानून है.

क्या है नैतिकता पुलिस? What is Morality Police?
ईरान में नैतिकता पुलिस (Morality Police) को औपचारिक रूप से ‘गश्त-ए इरशाद’ (Gasht-e Ershad) या इस्लामी मार्गदर्शन गश्ती के रूप में भी जाना जाता है का गठन वर्ष 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद (Mahmoud Ahmadinejad) ने ‘विनम्रता और हिजाब की संस्कृति का प्रचार प्रसार’ करने के लिए किया था. नैतिकता पुलिस ईरान में न्यायपालिका और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) से जुड़े अर्धसैनिक बलों (Paramilitary Forces) के अधिकारियों के साथ मिलकर काम करती है.
ईरान में नैतिकता पुलिस उन लोगों और खासतौर पर महिलाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती रही है, जो देश के इस्लामी कानून के हिसाब से कपड़े नहीं पहनते या किसी भी तौर पर शरिया कानून को तोड़ते हैं. ईरान में राष्ट्रपति हसन रूहानी (Hassan Rouhani- 2013-2021) के कार्यकाल में लिबास को लेकर कुछ राहत दी गई थी. रूहानी के ही कार्यकाल के दौरान महिलाओं को ढीली जींस और रंगीन हिजाब पहनने की अनुमति दी गई थी. वहीं, जुलाई 2022 में इब्राहिम रईसी (Ibrahim Raisi) के सत्ता संभालने के बाद से उन्होंने पुराने कानूनों को सख्ती से लागू कराना शुरू कर दिया है.

लेकिन अब भी कई लोगों का ये मानना है कि मोरैलिटी पुलिस की व्यवस्था खत्म होने के बावजूद ईरान में दशकों से चले आ रहे पुराने इस्लामिक कानूनों की सख्ती में कोई बदलाव नहीं आएगा.
ईरान में 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद मोरैलिटी पुलिस (Morality Police) के कई रूप देखने को मिले. लेकिन इसका हालिया गश्त-ए-इरशाद रूप जो 2006 में अस्तित्व में आया सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा. गश्त-ए-इरशाद ने 2006 से ही कार्य करना शुरू कर दिया था. इस दौरान गश्त-ए-इरशाद के लोग सुनिश्चित करते थे कि कोई भी महिला बगैर हिजाब के बाहर नहीं निकले. महिलाएं शॉर्ट्स, फटी हुई जीन्स की बजाय पूरी लंबाई तक के कपड़े पहनें.
हिजाब पहनने की अनिवार्यता, लेकिन कब से? Hijab compulsory?
हिजाब (Hijab) पहनने की अनिवार्यता 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद लागू हुई. ईरान में वैसे तो हिजाब को 1979 में अनिवार्य (Mandatory) कर दिया गया था, लेकिन 15 अगस्त को राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने एक आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए ड्रेस कोड के तौर पर सख्ती से लागू करने को कहा गया. 1979 से पहले शाह पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान काफी आजाद ख्यालों वाला देश था.

इतिहास
8 जनवरी 1936 को ईरान के रजा शाह ने कश्फ-ए-हिजाब (Kashf-e hijab) लागू किया. यानी अगर कोई महिला हिजाब पहनेगी तो पुलिस उसे उतार देगी. 1941 में शाह रजा के बेटे मोहम्मद रजा ने शासन संभाला और कश्फ-ए-हिजाब पर रोक लगा दी. हालांकि उन्होंने महिलाओं को अपनी पसंद की ड्रेस पहनने की अनुमति दी.
1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जानें लगीं. 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को बराबरी का हक देने का आदेश दिए गए. इसी कानून के तहत लड़कियों की शादी की उम्र 13 से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई, इसके साथ ही गर्भपात (Abortion) को भी कानूनी अधिकार बना दिया गया था. पढ़ाई में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया. 1970 के दशक तक ईरान की यूनिवर्सिटी में लड़कियों की हिस्सेदारी 30 फीसदी तक थी.
लेकिन 1979 में हुई क्रान्ति के बाद शाह रजा पहलवी को देश छोड़कर जाना पड़ा और ईरान इस्लामिक रिपब्लिक (Islamic Republic of Iran) हो गया. शियाओं के धार्मिक नेता आयोतोल्लाह रुहोल्लाह खोमेनी को ईरान का सुप्रीम लीडर बना दिया गया. यहीं से ईरान दुनिया में शिया इस्लाम का गढ़ बन गया. खोमेनी ने महिलाओं के अधिकार काफी कम कर दिए गए.
ईरान और प्रदर्शन
मुख्य रूप से अपने परमाणु कार्यक्रम से जुड़े अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते लंबे समय से चल रहे आर्थिक संकट को लेकर ईरान में नवंबर 2019 में, 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से सबसे घातक हिंसा देखी थी.