मध्य पूर्व के देश ईरान (Iran) इन दिनों बड़े स्तर पर प्रदर्शनों का सामना कर रहा है. देश की नैतिकता पुलिस (Moral Police) द्वारा 13 सितंबर को 22 वर्ष की महसा अमिनी नाम की युवती को हिजाब नहीं पहनने के लिए गिरफ्तार किया और तीन दिन बाद, यानी 16 सितंबर को उसकी मौत हो गई.
ईरानी मीडिया में चल रही खबरों के अनुसार, महसा अमिनी (Mahsa Amini) गिरफ्तारी के कुछ घंटे बाद ही कोमा में चली गई थी. इसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया. खबरों में दावा किया गया है कि अमिनी की मौत सिर पर चोट लगने से हुई. महसा अमिनी की मौत को लेकर अमेरिका, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने कड़ी निंदा की है. पुलिस का कहना है कि उसकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी और उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया गया था, लेकिन उसके परिवार ने इस बारे में संदेह जताया है.
ईरान की सेना ने कहा है कि, “इन प्रदर्शनों से सख्ती से निपटा जाएगा, ये हताश कार्रवाइयां इस्लामी शासन को कमजोर करने के लिए दुश्मनों की बुरी रणनीति का हिस्सा हैं”.
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी जो इन दिनों संयुक्त राष्ट्र की बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका में हैं ने गुरुवार को कहा कि उन्होंने 22 वर्षीय महसा अमिनी जिनकी पिछले सप्ताह “अनुपयुक्त पोशाक” पहनने के लिए गिरफ्तार होने के बाद मृत्यु हो गई थी के मामले की जांच का आदेश दे दिये हैं. न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान एक संवाददाता सम्मेलन में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि “अमेरिकी पुलिस द्वारा मारे गए सभी लोगों के बारे में जांच क्यों नहीं होती है और उनके बारे में आप बात क्यों नही करते हैं?”
क्यों हो रहे हैं प्रदर्शन
ईरान (Iran) में प्रदर्शनों की शुरुआत देश की नैतिकता पुलिस (Moral Police) द्वारा सख्ती से लागू किए गए ड्रेस कोड का उल्लंघन करने के आरोपल में गिरफ्तार युवती महसा अमिनी की पुलिस कस्टडी में मौत के बाद शुरू हुए.
ईरान के शासकों को देश में 2019 में गैसोलीन की कीमतों में वृद्धि को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के जैसे प्रदर्शन फिर से शुरु होने का अनुमान है, जो इस्लामिक गणराज्य के इतिहास के सबसे खूनी प्रदर्शन माने जाते है. रॉयटर्स की एक खबर के अनुसार 2019 में 1,500 लोग मारे गए थे.
मुख्य रूप से अपने परमाणु कार्यक्रम से जुड़े अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते लंबे समय से चल रहे आर्थिक संकट को लेकर ईरान में नवंबर 2019 में, 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से सबसे घातक हिंसा देखी थी.
हालांकि कुछ ईरानी शहरों और कस्बों में विरोध प्रदर्शनों का दायरा स्पष्ट नहीं है. लेकिन इंटरनेट ट्रैफिक मॉनिटर नेटब्लॉक्स के अनुसार, ईरान ने बाहरी दुनिया से जुड़ने के आम लोगों को एकमात्र साधन इंटरनेट की पहुंच को भी बाधित कर दिया है, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जो रैलियों के आयोजन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले लोकप्रिय प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं.
स्टेट टीवी पर एक ईरानी टीवी के एंकर ने गुरुवार देर रात कहा कि 22 वर्षीय महसा अमिनी के अंतिम संस्कार के बाद पिछले शनिवार को हुए विरोध प्रदर्शन के बाद से 26 प्रदर्शनकारी और पुलिसकर्मी मारे गए हैं. हालांकि उन्होंने या नहीं बताया कि ये अधिकारिक आंकड़े उस तक कैसे पहुंचे. उन्होंने कहा कि आधिकारिक आंकड़े बाद में जारी किए जाएंगे.
हिजाब पहनने की अनिवार्यता
हिजाब पहनने की अनिवार्यता 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद लागू हुई. ईरान में वैसे तो हिजाब को 1979 में अनिवार्य (Mandatory) कर दिया गया था, लेकिन 15 अगस्त को राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने एक आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए ड्रेस कोड के तौर पर सख्ती से लागू करने को कहा गया. 1979 से पहले शाह पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान काफी आजाद ख्यालों वाला देश था.
इतिहास
8 जनवरी 1936 को ईरान के रजा शाह ने कश्फ-ए-हिजाब लागू किया. यानी अगर कोई महिला हिजाब पहनेगी तो पुलिस उसे उतार देगी. 1941 में शाह रजा के बेटे मोहम्मद रजा ने शासन संभाला और कश्फ-ए-हिजाब पर रोक लगा दी. हालांकि उन्होंने महिलाओं को अपनी पसंद की ड्रेस पहनने की अनुमति दी.
1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जानें लगीं. 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को बराबरी का हक देने का आदेश दिए गए. इसी के तहत लड़कियों की शादी की उम्र 13 से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई. साथ ही गर्भपात (Abortion) को कानूनी अधिकार बनाया गया. पढ़ाई में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया. 1970 के दशक तक ईरान की यूनिवर्सिटी में लड़कियों की हिस्सेदारी 30 फीसदी तक थी.
लेकिन 1979 में हुई क्रान्ति के बाद शाह रजा पहलवी को देश छोड़कर जाना पड़ा और ईरान इस्लामिक रिपब्लिक हो गया. शियाओं के धार्मिक नेता आयोतोल्लाह रुहोल्लाह खोमेनी को ईरान का सुप्रीम लीडर बना दिया गया. यहीं से ईरान दुनिया में शिया इस्लाम का गढ़ बन गया. खोमेनी ने महिलाओं के अधिकार काफी कम कर दिए गए.