Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीएसी कांस्टेबल से नियुक्ति के डेढ़ साल के भीतर इस्तीफा देने पर कमांडेंट द्वारा प्रशिक्षण खर्च और वेतन की वसूली आदेश के तहत उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है। राज्य सरकार से याचिका पर चार हफ्ते में जवाब मांगा है। याचिका की सुनवाई 25 जुलाई को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव जोशी ने मेरठ पीएसी कांस्टेबल कमल प्रकाश की याचिका पर दिया है।याचिका पर वकीला ऋतेश श्रीवास्तव ने बहस की।याचिका के अनुसार याची का पीएसी कांस्टेबल पद पर चयन हुआ था। उसे प्रशिक्षण पर भेजा गया।
Allahabad HC: आदेश की वैधता को दी थी चुनौती
प्रशिक्षण पूरा होने के बाद 31 जुलाई 20 को तैनाती की गई। 9 दिसंबर 21को उसने इस्तीफा दे दिया।कमांडेंट पीएसी मेरठ ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। बल्कि उसके उलट प्रशिक्षण खर्च और दिए गए वेतन की वसूली का आदेश जारी कर दिया। जिसकी वैधता को चुनौती दी गई थी।
याची का कहना है कि नियमानुसार नियुक्ति के एक साल के भीतर इस्तीफा देने पर वेतन और खर्च वसूली की जाएगी, लेकिन याची ने एक साल बीतने के बाद इस्तीफा दिया है। इसलिए वसूली पूरी तरह से अवैध है। ऐसे में इसे रद्द किया जाए।कोर्ट ने मुद्दा विचारणीय माना और उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगाते हुए जवाब मांगा है।
Allahabad HC: कॉमर्शियल गतिविधि पर कोर्ट सख्त, नगरआयुक्त से मांगा जवाब
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा-वृंदावन में मास्टर प्लान के विपरीत आवासीय क्षेत्र में कॉमर्शियल गतिविधियों के विरुद्ध दाखिल याचिका की सुनवाई की।इस दौरान कोर्ट ने मथुरा- वृंदावन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और नगर आयुक्त नगर निगम मथुरा से जवाब मांगा है। ये आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल एवं न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने प्रह्लाद कृष्ण शुक्ल की जनहित याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा-पर्यावरण को पहुंच रही क्षति
याचिका की अगली सुनवाई 21 जुलाई को होगी। वकील प्रेमचंद्र पांडेय ने बहस की। याचिका में कहा गया है कि मथुरा-वृंदावन में आवासीय क्षेत्र में निर्धारित मास्टर प्लान के विपरीत बड़े पैमाने पर कॉमर्शियल गतिविधियां संचालित की जा रही हैं।
अनियोजित मनमाने विकास के कारण वृंदावन का प्राचीन स्वरूप प्रभावित हो रहा है। इससे यहां के नैसर्गिक पर्यावरण को भी बड़ी क्षति पहुंच रही है।
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