अगर एक आदमी एक चुनाव में एक ही वोट दे सकता है तो एक नेता को एक ही चुनाव में दो जगह से चुनाव लड़ने की इजाज़त क्यों ? इसी सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है और मांग की गई है कि एक प्रत्याशी के दो जगह से चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाई। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से सहयोग करने के लिए कहा है।
बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है, इसमें याचिकाकर्ता ने कहा है कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-33 (7) में यह प्रावधान है कि एक प्रत्याशी दो सीटों से चुनाव लड़ सकता है लेकिन वहीं धारा-70 कहती है कि एक ही उम्मीदवार के दो सीटों से चुनाव लड़ने के बाद अगर वह उम्मीदवार दोनों ही सीटों पर जीत जाता है तो उसे एक सीट खाली करनी पड़ेगी यानी उसे एक जगह से इस्तीफा देना होगा क्योंकि वह एक ही सीट अपने पास रख सकता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि ऐसी स्थिति में जब वह प्रत्याशी एक सीट खाली कर देता है तो उस सीट पर फिर से चुनाव करवाना पड़ता है। दोबारा उपचुनाव कराने का मतलब है सरकार को उसके लिए फिर से तमाम प्रबंध करने पड़ते हैं और यह काम खर्चीला होता है और यह सरकार और जनता के पैसों का दुरुपयोग है।
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने भी अपना पक्ष रखा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच के सामने चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए वकील अमित शर्मा ने बताया कि चुनाव आयोग इस बारे में दो बार केंद्र सरकार से सिफारिश कर चुका है। पहले साल 2004 में और फिर दिसंबर 2016 में। अपनी सिफारिश में चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-33 (7) में संशोधन करने का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने भी ऐसा इसलिए कहा था कि दो सीटों से चुनाव लड़ने और दोनों सीट जीतने पर उम्मीदवार को एक सीट छोड़नी पड़ती है और आयोग को वहां फिर से चुनाव कराने पडते हैं। इससे मैनपावर और आर्थिक बोझ दोनों पडते हैं जो मतदाताओं का नुकसान है। सुप्रीम कोर्ट अब तीन हफ्ते बाद इस मामले की सुनवाई करेगा।