तनावग्रस्त क्षेत्रों में तैनात सैन्यकर्मियों की बढ़ती आत्महत्याओं के मामले पर SC ने सुनवाई करने से किया इंकार

सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई से इंकार करते हुए कहा, कि इस मसले पर याचिकाकर्ता सरकार के सामने ज्ञापन के जरिये अपनी स्‍पष्‍ट बात रखे।

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Supreme Court on Military
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई से इंकार करते हुए कहा, कि इस मसले पर याचिकाकर्ता सरकार के सामने ज्ञापन के जरिये अपनी स्‍पष्‍ट बात रखे। वहीं सरकार भी जल्द इस पर विचार कर अपना फैसला ले। दरअसल, दो रिटायर्ड पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इसके जरिये मांग की थी, कि 600 से ज्यादा सैन्यकर्मियों (Army personnel) ने पिछले 6 वर्ष के दौरान खुदकुशी कर ली है, जोकि दुखद है। इन घटनाओं पर रोकने के लिए जवानों का समय- समय पर मानसिक स्वास्‍थ का परीक्षण होना चाहिए। केंद्रीय सशस्‍त्र सुरक्षा बलों में प्रशिक्षित काउंसलर की नियुक्ति भी होनी चाहिए।

इस याचिका के मुताबिक केंद्र सरकार ने सदन में आंकड़ा पेश करते हुए बताया था, कि पिछले 6 साल में कुल 680 जवान आत्महत्या कर चुके हैं। वहीं अकेले नक्सल प्रभावित बस्तर जिले में साल 2007-2019 के बीच 148 सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स के जवानों ने खुदकुशी की है।

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Supreme Court: बेहतर हो तनाव प्रबंधन

गौरतलब है, कि इससे पूर्व भी कई बार सैनिकों के बीच बेहतर संबंध एवं तनाव प्रबंधन को लेकर चर्चा उठी है। जिसमें उन्‍हें कपड़ों की बेहतर गुणवत्ता, भोजन, यात्रा सुविधाओं, मनोरंजन और शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना सुनिश्चित करने को भी सूचीबद्ध किया।

जानकारी के अनुसार वर्ष 2014 में 84 सैन्यकर्मियों ने आत्महत्या की, जबकि 2015 और 2016 में यह संख्या क्रमश: 78 और 104 थी। 31 जुलाई तक आत्महत्या करने वाले सैनिकों की संख्या 44 थी। वर्ष 2014 से सेना में भाईचारे के 11 मामले सामने आए हैं। मनोवैज्ञानिक अनुसंधान के रक्षा संस्थान ने आत्महत्याओं के मसले पर कई अध्ययन किए हैं। उनके निष्कर्षों ने तनाव की समस्या को दूर करने के लिए कदमों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। विभिन्न स्तरों के पर कमांडरों और मनोचिकित्सकों द्वारा सभी प्रमुख सैन्य स्टेशनों पर तनाव प्रबंधन सत्र आयोजित किए जाते हैं।

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