Places Of Worships Act मामले की सुनवाई, Supreme Court ने केंद्र को जवाब देने के लिए दिया 2 हफ्ते का समय

Supreme Court: CJI ने केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिये 2 हफ्ते का समय देते हुए सभी पक्षों को अपने-अपने प्रश्नों की सूची वकील वृंदा ग्रोवर को देने को कहा है।इसके बाद वकील वृंदा ग्रोवर सभी पक्षो के प्रश्नों को वकील कनु अग्रवाल को देंगीं।

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Supreme Court Judges Appointment
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Supreme Court: प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।इस दौरान सीजेआई ने केंद्र सरकार से पूछा कि आप इस मामले में कब तक अपना जवाब दाखिल कर रहे हैं।SG तुषार मेहता ने कहा कि हम इस मामले में जवाब दाखिल करेंगे।हमें 2 हफ्ते का समय दिया जाए।

CJI ने केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिये 2 हफ्ते का समय देते हुए सभी पक्षों को अपने-अपने प्रश्नों की सूची वकील वृंदा ग्रोवर को देने को कहा है।इसके बाद वकील वृंदा ग्रोवर सभी पक्षो के प्रश्नों को वकील कनु अग्रवाल को देंगीं।जिसका एक कंपाइलेशन जवाब वकील कनु अग्रवाल कोर्ट में देंगीं।इस बीच सभी पक्ष केंद्र के जवाब पर अपना 3 पेज तक जवाब दे सकते हैं।मामले की अगली सुनवाई कोर्ट ने 14 नवंबर तय की है।

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Supreme Court: 1991 में संसद में पारित हुआ था Places Of Worships Act

प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट संसद ने 18 सितंबर,1991 को पारित किया था। इस एक्ट के तहत सिर्फ राम मंदिर विवाद मामले को अलग रखा गया था।अब काशी और मथुरा विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष इसी एक्ट की दलील देकर मामले में विरोध जता रहा है।फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में इस एक्ट को रद्द करने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर इस एक्ट की वैधानिकता का परीक्षण कर रहा है।

दरअसल 1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता।

Supreme Court: कोर्ट पहले भी कोर्ट को जारी कर चुका है नोटिस

मालूम हो कि बीते 9 सितंबर को भी कोर्ट इस बाबत केंद्र को नोटिस जारी कर चुका है।दो सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करने को कहा था। उस समय प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित ने कहा था कि काशी और मथुरा में कार्रवाई पर हम रोक नहीं लगा सकते हैं।

Supreme Court: जानिए पूजा स्थल अधिनियम के बारे में यहां

पूजा स्थल अधिनियम 1991 के अनुसार, 15 अगस्त 1947 से पूर्व पूजा स्थलों की जो स्थिति थी, वही रहेगी। सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें इस अधिनियम की वैधता पर सवाल उठाए गए हैं। कहा गया है कि यह कानून देश पर आक्रमण करने वालों द्वारा अवैध रूप से निर्मित किए गए पूजा स्थलों को मान्य कर रहा है। इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित कर देना चाहिए।

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