Supreme Court: परिवार, समलैंगिता और लिवइन को लेकर देश की शीर्ष अदालत ने विशेष टिप्पणी की है। अदालत ने परिवार के परिपूर्ण अर्थ को समझाने का प्रयास किया है। कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक संबंधों में अविवाहित भागीदारी और समलैंगिक संबंध भी शामिल हैं।ऐसे में असामान्य पारिवारिक इकाइयां भी कानून के समान संरक्षण की हकदार हैं। जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस बोपन्ना की पीठ ने एक फैसले में कहा कि कानून और समाज दोनों के मध्य परिवार की अवधारणा अहम है।इसमें अभिभावक अपने बच्चों के साथ एक एकल अपरिवर्तनीय इकाई होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अगस्त 22 को केंद्र सरकार की एक कर्मचारी को मातृत्व अवकाश की राहत देते हुए ये टिप्पणी की।
Supreme Court: परिस्थितियां पारिवारिक ढांचे में बदलाव का बनती है कारण
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ‘यह धारणा कई परिस्थितियों में दोनों की उपेक्षा करती है, जो किसी के पारिवारिक ढांचे में बदलाव का कारण बन सकती है। कोई घर पति या पत्नी की मृत्यु, अलगाव या तलाक सहित कई कारणों से एकल माता.पिता का घर हो सकता है।
ठीक इसी तरह बच्चों के अभिभावक और देखभाल करने वाले (जो पारंपरिक रूप से मां और पिता की भूमिका निभाते हैं), पुनर्विवाह, गोद लेने या पालन-पोषण के साथ परिवर्तन कर सकते हैं। प्रेम और परिवारों की ये अभिव्यक्तियां विशिष्ट नहीं हो सकती हैं, लेकिन वे अपने पारंपरिक समकक्षों की तरह वास्तविक हैं। परिवार इकाई की ऐसी असामान्य अभिव्यक्तियां समान रूप से योग्य हैं न केवल कानून के तहत सुरक्षा के लिए बल्कि सामाजिक कल्याण कानून के तहत उपलब्ध लाभों के लिए भी’।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एक कामकाजी महिला को उसके जैविक बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश के वैधानिक अधिकार से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके पति की पिछली शादी से 2 बच्चे हैं। उसने उनमें से 1 की देखभाल के लिए छुट्टी का लाभ उठाया था।कोर्ट ने कहा, ‘1972 के नियमों के तहत मातृत्व अवकाश देने का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल पर बने रहने में सुविधा प्रदान करना है। इस तरह के प्रावधानों के लिए यह एक कठोर वास्तविकता है कि अगर उन्हें छुट्टी और अन्य सुविधाएं नहीं दी जाती हैं तो कई महिलाएं सामाजिक परिस्थितियों के मद्देनजर बच्चे के जन्म पर काम छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगी’।
Supreme Court: परिवार की संरचना बदली
पीठ ने कहा, ‘तथ्य यह है कि अपीलकर्ता के पति की पहली शादी से दो बच्चे थे, इसलिए अपीलकर्ता अपने एकमात्र जैविक बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश का लाभ उठाने की हकदार नहीं होगी। उसे पहले की शादी से अपने जीवनसाथी से पैदा हुए दो जैविक बच्चों के संबंध में बाल देखभाल के लिए छुट्टी दी गई थी।यह एक ऐसा मामला हो सकता है जिस पर संबंधित समय पर अधिकारियों द्वारा उदार रुख अपनाया गया था। लेकिन वर्तमान मामले के तथ्य भी संकेत देते हैं कि अपीलकर्ता के परिवार की संरचना तब बदल गई, जब उसने अपनी पिछली शादी से अपने पति के जैविक बच्चों के संबंध में अभिभावक की भूमिका निभाई ’।
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