Supreme Court: भू अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी दी है। शीर्ष अदालत ने पुराने कानून के तहत भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई के मामलों में हाईकोर्ट के करीब 10 से ज्यादा फैसलों को निरस्त कर दिया है। मालूम हो कि हाईकोर्ट ने 1894 के पुराने कानून के तहत ली गई भूमि के मामलों में अधिग्रहण की कार्रवाई को समाप्त कर दिया था और नए कानून 2013 के तहत बढ़ा हुआ मुआवजा देने के आदेश दिए थे।
इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि सरकार यदि किसी जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया के तहत मुआवजा देकर कब्जा लेती है।उसके बाद उस जमीन पर भूस्वामी का कोई दावा नहीं रह जाता है।ऐसे जमीन पर अगर कोई कब्जा करता है, तो उसे पूरी तरह से अवैध माना जाएगा। शीर्ष अदालत ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही बताया।

Supreme Court: प्राधिकरण के नोटिस को दी थी चुनौती
Supreme Court: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरूद्ध बोस की पीठ ने उत्तर प्रदेश निवासी एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई की। जिसमें पिछले वर्ष 2 फरवरी को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के नोटिस को चुनौती दी गई थी।प्राधिकरण ने संबंधित व्यक्ति को जमीन के एक हिस्से से अपना अतिक्रमण हटाने के लिए कहा था।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का जमीन अधिग्रहण 1996 में हुआ था।उसे 1894 के भू-अधिग्रहण कानून के मुताबिक मुआवजा भी चुकाया जा चुका है। यहां तक की राजस्व अभिलेखों में भी स्वामित्व बदला जा चुका है।इसके बावजूद याचिकाकर्मा ने उस जमीन पर कब्जा कर रखा है।
कोर्ट ने सख्ती के साथ कहा कि संबंधित भूमि पर याचिकाकर्ता का कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि अधिग्रहण के बाद भूमि पूरी तरह से राज्य का हिस्सा बन चुकी है।सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
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