अनुसूचित जाति और जनजाति कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दाखिल पुनर्विचार याचिका पर केंद्र को कोई राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया माना कि सरकार की दलीलों में कोई दम नहीं है। मामले पर अब सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि इस कानून को लेकर कोई नई बात बताएं आखिर क्यों फैसले पर पुनर्विचार किया जाये?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम ऐक्ट के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हम चाहते हैं कि बेकसूर लोगों के अधिकारों की सुरक्षा हो। हमारी चिंता उन बेकसूर लोगों को लेकर है, जो बिना ग़लती के जेल में हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि हमे संतुलन बना कर रखना होगा। जस्टिस ए के गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि ऐसा फैसला इसलिए दिया गया क्योंकि ये कानून थोड़ा अलग है, इसमें अग्रिम जमानत का भी प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि उसने एससी- एसटी एक्ट के प्रावधानों को छुआ भी नहीं है, सिर्फ तुरंत गिरफ्तार करने की पुलिस की शक्तियों पर लगाम लगायी है। कोर्ट ने कहा है कि गिरफ्तार करने की शक्ति सीआरपीसी से आती है एससी-एसटी कानून से नहीं, हमने सिर्फ इस प्रक्रियात्मक कानून की व्याख्या की है, एससी एस्टी एक्ट की नहीं।
एक्ट में बदलाव के विरोध पर 2 अप्रैल को हुए भारत बंद पर कोर्ट ने कहा, बाहर क्या हो रहा है हमे इससे मतलब नहीं हम सिर्फ कानून का पक्ष देखेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा लोगों को हमारे फैसले की जानकारी ही नही है। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इस कानून के प्रावधान कमजोर होंगे। साथ ही पीड़ित पक्ष को मुआवजा देने में दिक्कत होगी। के के वेणुगोपाल ने कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस कर्णन का भी उदाहरण दिया जब प्रधान न्यायाधीश समेत सुप्रीम कोर्ट के जजों पर इसी कानून के तहत मुकदमा दर्ज करने की कोशिश हुई थी। केंद्र सरकार के वकील ने माना कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी पक्षकार और दखलकर्ता दो दिन में लिखित जवाब दाखिल करें और उस पर जवाब के लिए 3 दिन का वक्त दिया गया है। मामले की सुनवाई अब दो हफ्ते बाद होगी।