Bombay High Court: महाराष्ट्र में मुर्गा लड़ाई को फिर से शुरू करने की मांग वाली याचिका को बॉम्बे हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया है। याचिकाकर्ता ने ‘मुर्गा लड़ाई’ को पारंपरिक खेल बताते हुए उसे फिर से शुरू करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को निर्देश देने की मांग की थी।अदालत ने कहा कि पारंपरिक खेल के आधार पर ‘मुर्गा लड़ाई’ शुरू करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सुनवाई बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में हुई। हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, ‘यह हमारा सामान्य अनुभव है कि मुर्गे की लड़ाई एक खूनी खेल है, जब दो मुर्गे लड़ रहे हों, तब कोई भी शख्स हस्तक्षेप कर उन्हें एक-दूसरे को चोट पहुंचाने से नहीं रोक सकता।

Bombay High Court: एड्रेनालिन रश को बढ़ाती है मुर्गों की लड़ाई
कोर्ट का साफ तौर पर कहना था कि इस तरह के खेल का आयोजन केवल एड्रेनालिन रश के रोमांच को महसूस करने के उद्देश्य से किया जाता है।दो लड़ते हुए मुर्गों के बीच ज्यादा से ज्यादा हिंसा होते देखकर हमारी अधिवृक्क ग्रंथियों में खून और तेजी से पंप होने लगता है।जिससे जोश और जुनून तेजी से बढ़ता है।
कोर्ट ने कहा कि यह घटना उस सिद्धांत पर काम करती है, कि जितनी अधिक हिंसा होगी, उतना ही अधिक खून बहेगा और अधिक एड्रेनालिन के अधिक स्राव से उत्तेजना पैदा होगी।इसके साथ ही यह जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के बिल्कुल उलट भी है।
Bombay High Court: कुप्रथाओं को कानून के जरिए बंद किया
अदालत ने कहा कि देश में प्राचीन काल में खेले जाने वाले कुछ रीति-रिवाज, परंपराएं या खेल ऐसे थे जोकि वास्तव में ठीक नहीं थे। यही कारण था कि उन अस्वास्थ्यकर खेलों, परंपराओं को दूर करने के लिए ऐसे कानून बनाए गए। न्यायमूर्ति एसबी शुक्रे और जीए सनप की पीठ ने पूरे मामले की सुनवाई की।याचिकाकर्ता गजेंद्र चाचरकर ने इस मामले में वकील एआर इंगोले के जरिए याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा था कि अगर राज्य सरकार की राय है कि इस खेल में कुछ क्रूरता शामिल है, तो कुछ शर्ते लगाकर इसका ध्यान रखा जा सकता है।
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