Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कमर्शियल अदालतों को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम के तहत निर्धारित मुआवजे की मात्रा को लेकर मध्यस्थता और सुलह अधिनियम-2013 की धारा-34 के तहत दाखिल अर्जियों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है।कोर्ट ने कहा कि यह कोई वाणिज्यिक लेनदेन नहीं कि उसे निस्तारण का क्षेत्राधिकार दिया गया हो।
यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने महोबा के तहसील कल्पपुरा गांव रैमैपुरा निवासी तुलसा रानी और अन्य की याचिका पर दिया। मालूम हो कि एक राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के लिए सरकार द्वारा याचिकाकर्ताओं की भूमि अगस्त 2017 में अधिग्रहित की गई।जुलाई 2018 में राजमार्ग प्राधिकरण ने अवार्ड घोषित किया। जिस पर किसानों ने आपत्ति जताते हुए जमीन के अधिक मुआवजे की मांग उठाई।उन्होंने मध्यस्थता के लिए अर्जी दी,लेकिन मध्यस्थ ने पारित अवार्ड को सही माना।
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Allahabad HC: घोषित अवार्ड को रद्द करने मांग उठाई
इस पर याचिकाकर्ता की ओर से कमर्शियल कोर्ट झांसी में अर्जी दाखिल कर घोषित अवार्ड को रद्द करने मांग उठाई गई। कमर्शियल कोर्ट ने अर्जियों को सक्षम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम-1956 की धारा 3 जी (5) के तहत वैधानिक मध्यस्थ के निर्णय को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत क्षेत्राधिकार रखने वाली अदालत में ही चुनौती दी जा सकती है। यह कोई वाणिज्यिक लेनदेन नहीं है,जिसे कमर्शियल अदालत को सुनने का अधिकार हो।
Allahabad HC: हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने पत्र पर जताया विरोध
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट लिटिगेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष की ओर से राष्ट्रपति को शिकायती पत्र भेजा गया है।हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने शिकायत पर आपत्ति जताते हुए कड़ा विरोध जताया है।बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राधाकांत ओझा की अध्यक्षता में हुई बैठक में कहा कि पत्र जस्टिस चंद्रचूड़ की स्वच्छ छवि धूमिल करने का प्रयास है।बार ने इसकी निंदा की और प्रस्ताव पारित करते हुए राष्ट्रपति से अनुरोध करते हुए कहा कि दुष्प्रेरणा से लगाए गए ऐसे आरोप को तत्काल खारिज किए जाए।जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ 31अक्तूबर 2013 से 12 मई 2016 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में चीफ थे।इस दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण फैसले दिए।
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