Allahabad HC: निठारी कांड (Nithari Case) में नृशंस हत्या और दुष्कर्म के आरोपी सुरेंद्र कोली और सह अभियुक्त मनिंदर सिंह पंढेर की सजा के खिलाफ अपील की सुनवाई अब 21 मार्च 22 को होगी।कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने पीड़िताओं की पोस्टमार्टम रिपोर्ट दाखिल की। जिस पर कोली के वकील ने जानकारी प्राप्त करने के लिए समय मांगा।
कोर्ट ने सीबीआई वकील संजय यादव से कहा कि ऑटोप्सी रिपोर्ट मूलरूप में पेश करें ,किसी अदालत में पत्रावली के साथ संलग्न न हो।ये आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने सुरेंद्र कोली की सजा के खिलाफ अपील की सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने सीबीआई को जवाबी हलफनामे के साथ पीड़िताओं की ओर से मांगी गई पोस्टमार्टम रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।
Allahabad HC: पोस्टमार्टम रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश
ये आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने सुरेंद्र कोली की सजा के खिलाफ अपील की सुनवाई करते हुए दिया। कोली की तरफ से अर्जी दाखिल कर पिंकी सरकार की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पेश करने की मांग की। इसी तरह कुल15 केसों में पीड़िता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मांगी गई है।कोली का कहना है कि सीएमएस नोएडा डा विनोद कुमार की देखरेख में किये गए पोस्टमार्टम, जिसकी रिपोर्ट सीबीआई इंस्पेक्टर अजय सिंह को प्राप्त हुई है, उसे पेश करें। कोर्ट ने सीबीआई अधिवक्ता को तीन मार्च तक का समय दिया था। कोली पर बच्चियों के साथ दुराचार करने, हत्या कर खून पीने और मांस खाने का आरोप है। जिसमें सीबीआई कोर्ट गाजियाबाद ने फांसी की सजा सुनाई है।निठारी नाले में नर कंकाल मिलने के बाद जांच में कई बच्चियों के साथ दुष्कर्म और उनकी हत्या का खुलासा हुआ था।
Allahabad HC: किशोरी से दुष्कर्म और हत्या के आरोपी की फांसी की सजा रद्द, कोर्ट बोला, सजा के लिए आधारभूत सबूत जरूरी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के बाद 14 वर्षीय किशोरी की जलाकर हत्या करने के आरोपी की फांसी की सजा रद्द कर दी है।कोर्ट ने कहा, पाक्सो एक्ट के तहत स्वीकार्य आधारभूत सबूतों के बगैर इस अवधारणा पर सजा नहीं दी जा सकती। अभियुक्त स्वयं को निर्दोष साबित करने में नाकाम रहा है। कोर्ट ने कहा कि निश्चित तौर पर अभियुक्त पर स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार सिद्ध होता है, उसे साबित करना चाहिए।
अभियोजन को उसके अपराध में लिप्त होने का प्रथमदृष्टया पर्याप्त तथ्य व आधारभूत साक्ष्य होना चाहिए।संदेह से परे अपराध साबित करना अभियोजन का दायित्व है। केवल अभियुक्त अपने को निर्दोष साबित नहीं कर सका, इसकी अवधारणा पर सजा नहीं सुनाई जा सकती। कोर्ट ने आरोपों से मुक्त करते हुए फांसी, आजीवन कैद और जुर्माने की सजाएं रद्द कर दीं। उसे तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है।
Allahabad HC: फोरेंसिक और डीएनए की जांच नहीं करवाई
यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने मानू ठाकुर की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।कोर्ट ने कहा कि अभियोजन ने पीड़िता के मृत्युकालिक बयान को साबित करने के लिए ,बयान दर्ज करने वाले मजिस्ट्रेट और डाक्टर का बयान नहीं लिया। न ही फोरेंसिक व डीएनए जांच ही करवाई। ट्रायल कोर्ट में पीड़िता का बयान दर्ज करने वाले मजिस्ट्रेट को सम्मन करने की अर्जी भी नहीं दी। कोर्ट ने कहा अधीनस्थ अदालतों ने सबूतों को समझने में गलती की। आरोप साबित किए बगैर इस आधार पर सजा सुना दी, कि आरोपी अपने को निर्दोष साबित नहीं कर सका।
Allahabad HC: एफआईआर हाथरस के सिकंदर राव थाने में दर्ज कराई
अभियोजन का कहना था कि पीड़िता अपनी नानी के घर में थी। आरोपी ने घर में आकर छेड़छाड़ की, दुष्कर्म कर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दी। गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां 20 दिन बाद उसकी मौत हो गई, मामले की एफआईआर हाथरस के सिकंदर राव थाने में दर्ज कराई गई।पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और ट्रायल कोर्ट ने फांसी, आजीवन कारावास सहित विभिन्न अपराधों में सजा और लाखों रुपये का जुर्माना लगाया।सत्र अदालत ने अपील खारिज करते हुए सजा बहाल रखी।वरिष्ठ अधीक्षक जिला जेल अलीगढ़ ने फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को अपील संदर्भित की। आरोपी की तरफ से कहा गया है, कि पीड़िता खाना बना रही थी, मसाला लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो मिट्टी तेल की बोतल गैस बर्नर पर गिर पड़ी और आग भड़क उठी। जिसमें वह 85 फीसदी जल गई।अस्पताल में उसकी लंबे इलाज के बाद मौत हो गई।
कोर्ट ने निर्दोष होने की अवधारणा मानवाधिकार बताया
कोर्ट ने कहा कि आरोपी के अपराध सिद्ध होने तक निर्दोष होने की अवधारणा मानवाधिकार हैं। इसके वैधानिक अपवाद हो सकते हैं। आरोपी को दोषी मानने के लिए उचित, निष्पक्ष व तर्कपूर्ण अवधारणा होनी चाहिए। पाक्सो एक्ट की धारा 29 में अवधारणा का उपबंध है।कोर्ट ने कहा कि आरोपी पर स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार है।यह अनुच्छेद 14व 21के मूल अधिकारों के विपरीत नहीं है। जरूरी है कि सजा संतोषजनक व विश्वसनीय सबूतों के आधार पर दी जाए।
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