1947 से ही चली आ रही भारत–पाकिस्तान (India – Pakistan) के रिशतों में कड़वाहट के बीच यूं तो गाहे बगाहे झड़प आज तक होती रहती हैं लेकिन दोनों देशों के बीच 1948, 1965 और 1971 में युद्ध भी लड़ा जा चूका है। लोकिन आज हम बात कर रहें 1965 के युद्ध के बाद भारत – पाकिस्तान के बीच हुए ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement) के बारे में।
1965 में 5 अगस्त को शुरु हुए और 23 सितंबर को खत्म हुए युद्ध के बाद से दोनों देश संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा प्रायोजित युद्धविराम पर सहमत हुए थे। इसके बाद 10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच तत्कालीन सोवियत संघ के शहर ताशकंद में एक समझौता हुआ था जिसे हम ताशकंद समझौते के नाम से जानते है। आज इस समझौते को हुए 57 साल पूरे हो चुके हैं।
ये भी पढ़ें – Joshimath: आखिर क्यों धंस रहा है जोशीमठ?
1966 का Tashkent समझौता
4 जनवरी, 1966 को चर्चा के साथ शुरू हुए और 10 जनवरी, 1966 को अंतिम रूप दिए गए इस समझौते पर पर 1958 में तख्तापलट के आसरे सत्ता में आने वाले पाकिस्तानी के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान (Ayub Khan) और भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने हस्ताक्षर किए थे। ताशकंद, जो तत्कालीन सोवियत संघ (Soviet Union) का शहर हुआ करता था और अब उज्बेकिस्तान की राजधानी भी है, में, 10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच हुए समझौते को आज 57 साल पूरे हो गए हैं।
1966 में हुए ताशकंद समझौते की पेशकश सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधान मंत्री एलेक्सेई कोजिगिन (Aleksey Nikolayevich Kosygin) ने की थी। 4 दिनों तक चले बातचीत के दौर को समझौते में बदलने के कारण सोवियत संघ ने इसे सफल करार दिया गया था। इसी समझौते में ये भी कहा गया था कि दोनों देश युद्ध के बाद आर्थिक और कूटनीतिक रिश्तों को बहाल करने के साथ-साथ युद्धबंदियों को छोड़ने के अलावा भारत-पाकिस्तान के नेताओं को द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने की जिम्मेदारी दी गई थीं।
क्या था Tashkent समझौते में?
इस समझौते के तहत यह तय हुआ था कि भारत और पाकिस्तान अपनी-अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और दोनों देश अपने झगड़ों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाएंगे और 25 फरवरी 1966 तक अपनी-अपनी सेनाओं को वहां भेज देंगे जहां वे 5 अगस्त, 1965 के पहले थी। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच आपसी हितों से जुड़े हुए मामलों में शिखर वार्ताएं (High-level Dialogues) और अन्य स्तरों पर चर्चाओं का दौर जारी रहेगा।
इसके साथ ही भारत और पाकिस्तान इस बात को लेकर भी राजी हुए कि दोनों देश एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध फिर से स्थापित किए जाएंगे। भारत और पाकिस्तान अपने-अपने देश से आए शरणार्थियों को लेकर भी चर्चा जारी रखेंगे और एक दूसरे की संपत्ति को लौटाने पर भी विचार करेंगे।
समझौते का जो सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था वो ये था कि भारत एवं पाकिस्तान आपसी विवादों को सुलझाने के लिये बल का प्रयोग न करके शांतिपूर्ण हस करने की कोशिश करेंगे। इसके साथ ही 1961 की वियना संधि का पालन करते हुए राजनयिक संबंधों को बहाल करेंगे।
ये भी पढ़ें – क्या है No Fly List, जिसकी Pee Gate के बाद हो रही है खासी चर्चा?
लाल बहादुर शास्त्री की मौत
10 जनवरी 1966 को हुए ताशकंद समझौते के बाद जब लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) को 11 जनवरी 1966 को भारत लौटने वाले थे तभी उनकी मौत हो गई। ताशकंद में ही कराये गए उनके पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई है। लेकिन भारत में शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री और उनके बेटों ने इस बात को मानने से इनकार करते हुए कहा कि शास्त्रीजी के पार्थिव शरीर पर नील पड़े हुए दिखे थे। हालांकि, परिवार की मांग पर शास्त्री की मौत के कारणों को लेकर जांच भी हुई, लेकिन वो किसी नये नतीजे तक नहीं पहुंच पाई।
लाल बहादुर शास्त्री के साथ ताशकंद गए उनके सूचना अधिकारी कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब में ‘बियॉन्ड द लाइन’ (Beyond The Lines: An Autobiography) में लिखा है कि, “उस रात मैं सो रहा था, तभी अचानक एक रूसी महिला ने मेरा दरवाजा खटखटाया और बताया कि आपके प्रधान मंत्री मर रहे हैं। मैं तुरंत उनके कमरे में पहुंचा। मैंने देखा कि रूसी प्रधान मंत्री एलेक्सेई कोजिगिन बरामदे में खड़े हुए हैं, उन्होंने इशारे से बताया कि शास्त्री नहीं रहे।”