देश में इन दिनों एक क्षेत्र जिसकी सबसे ज्यादा अगर चर्चा हो रही है तो वो है उत्तराखंड (Uttarakhand) का जोशीमठ (Joshimath)। लेकिन जोशीमठ अबकि बार किसी उपलब्धि के लिए चर्चा में न होकर लगातार हो रही भू-धंसाव की घटनाओं को लेकर चर्चा में है। जोशीमठ के कई घरों और होटलों की दीवारें दरक रही हैं, सड़कों में दरारें पड़ गई हैं और कई जगहों पर जमीन को फाड़कर पानी निकल रहा है।
प्रशासन के लोगों को जोशीमठ से हटाकर दूसरी सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट किया जा रहा है। इन सब घटनाओं के बीच विषेशज्ञों ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि ये इकलौता मामला नहीं होगा बल्कि जोशीमठ की तरह कई अन्य पहाड़ी शहर भी भूस्खलन की मार में आ सकते हैं। इसमें उत्तराखंड के 5 जिले रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी हैं।
जोशीमठ मे जो कुछ हो रहा है उसको लेकर पीएम कार्यालय में भी उच्चस्तरीय बैठक की गई है। बैठक के बाद जोशीमठ में भूधंसाव (Landslide) क्यों हो रहा है, इसके ठोस कारणों का पता लगाने के लिए एक टीम का गठन किया गया है। उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से बुलाई गई ऑनलाइन बाठक मे बाताया कि केंद्रीय विशेषज्ञों के सहयोग से राज्य और जिले के अधिकारियों ने जमीनी स्थिति का आकलन किया गया है और करीब 350 मीटर चौड़ी जमीन की पट्टी प्रभावित हुई है।
कैसे होता है Landslide?
अगर हम गहरी विज्ञान की भाषा में न जाकर आसानी से समझे तो भूस्खलन (Landslide) एक ऐसा पर्यावरणीय (Environmental) नतीजा है, जो बिना ये सोचे समझे की इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति क्या है और हमें यहां क्या करना चाहिए और कितना करना चाहिए के बगैर गतिविधियों को बढ़ाने के कारण होने के कारण हैं। भूस्खलन के कारण घरों, सड़कों या फिर बड़ी इमारतों में भी दरारें आ जाती है और जमीन नीचे धंसने लगती है।
सिस्मिक (Seismic) जोन क्या है?
किसी भी देश या फिर दुनियाभर के भौगोलिक क्षेत्रों को हम सिस्मिक जोन के हिसाब से देखते हैं। जितना भी सिस्मिक जोन का लेवल बढ़ता चला जाता है उतनी ही भूकंप आने की संभावना बढ़ती चली जाती है। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड का जोशीमठ जो इस समय भूस्खलन के कारण चर्चा का विषय बना हुआ है वो प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से काफी संवेदनशील माने जाने वाले सिस्मिक जोन-5 में आता है। उत्तराखंड के जोशीमठ के अलावा कई अन्य पहाड़ी शहर भी जोन-5 में आते हैं, जिन पर ऐसे ही भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है।
पिछले भूकंपीय इतिहास के आधार पर, भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards – BIS) ने भारत को चार भूकंपीय क्षेत्रों अर्थात् जोन- 2, जोन- 3, जोन- 4 और जोन- 5 में वर्गीकृत किया है। इन चारों जोन में से जोन-5 में भूकंप आने की संभावना सबसे ज्यादा है तो वहीं जोन-2 सबसे कम है।
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India के कौन से राज्य किस जोन में?
देश के सबसे ज्यादा चिंता के विषय सिस्मिक जोन 5 में कुछ पहाड़ी राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों के अलावा गुजरात के कच्छ का थोड़ा सा हिस्सा, बिहार का उत्तरी हिस्सा और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कुछ हिस्से आते हैं। वहीं, सिस्मिक जोन 4 की बात करें तो इसमें देश की राजधानी दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR), जम्मू कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश का कुछ हिस्सा, यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल का उत्तरी इलाका, गुजरात का कुछ इलाका, महाराष्ट्र और राजस्थान का हिस्सा आता है।
इसके अलावा सिस्मिक जोन-3 में देश के दथिणी राज्य केरल, गोवा, लक्षदीप के अलावा उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल का बचा हुआ हिस्सा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के क्षेत्र आते हैं। सिस्मिक जोन 2 में भारत का बचा हुआ हिस्सा आता है जो भारत का करीब 41 फीसदी हिस्सा आता है।
जानकारी के अनुसार सिस्मिक जोन 5 में भारत का करीब 11 फीसदी भू-भाग, जोन- 4 में 18 फीसदी, जोन- 3 में 30 फीसदी और बाकी का हिस्सा जोन- 2 में आता है जो करीब 41 फीसदी है।
Joshimath में जमीन दरकने की आखिर वजह क्या है?
1970 के दशक में जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश के जोशीमठ (2000 में उत्तराखंड के गठन के बाद उत्तराखंड में) में बाढ़ की वजह से जब अलकनंदा नदी की बाढ़ से भूकटाव के बाद जोशीमठ में भूस्खलन की कई घटनाएं सामने आई तब इन्हें रोकने के लिए तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1976 में तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की कमेटी गठन किया।
1976 के बाद वर्ष 2006 में डॉ सविता की अध्ययन रिपोर्ट, वर्ष 2013 में आई भयकंर जल प्रलय के बाद पैदा हुई स्थितियों को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट के अलावा वर्ष 2022 में विशेषज्ञों की टीम की एक रिपोर्ट में जोशीमठ पर मंडराते हुए खतरे का उल्लेख किया था। इसके साथ ही सीवेज सिस्टम, निर्माण कार्यों पर नियंत्रण समेत अन्य कई कदम उठाने की भी सिफारिशें की गई थी।
18 सदस्यीय महेश चंद्र मिश्रा कमेटी ने क्षेत्र का गहनता से अध्ययन कर कहा था कि जोशीमठ की पहाड़ी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है और यहां एहतियाती कदम उठाने के साथ-साथ विकास की योजनाओं के नाम पर बहुत ज्यादा छेड़छाड़ करने की गुंजाइश नहीं बची है।
कई पर्यावरणविदों का मानना है कि जोशीमठ पहाड़ी के पानी सोखने की वजह से ही बीते साल घरों के दरकने की घटनाएं सामने आ चूकी हैं। इनके अनुसार, जोशीमठ की पहाड़ी की मिट्टी गीली होने के कारण चट्टानों की पकड़ ढीली हुई और जमीन धंसने लगी है।
इसके अलावा उत्तराखंड में धौलीगंगा नदी पर तपोवन जल विद्युत परियोजना को बनाया गया है तो वहीं, विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के लिए जोशीमठ की पहाड़ी के नीचे से एक सुरंग बनाकर धौलीगंगा का पानी पहुंचाने की कोशिश की गई। 2021 में ऋषिगंगा नदी में आई बाढ़ के चलते तपोवन परियोजना को काफी नुकसान हुआ था। इसके साथ ही विष्णुगढ़ परियोजना को लेकर बनाई जा रही सुरंग में भी बाढ़ का पानी भर गया था जिसके चलते सुरंग का काम पूरा नहीं हुआ था और बाढ़ का पानी भरने से जोशीमठ की पहाड़ी की मिट्टी ने वो पानी सोख लिया।
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