अयोध्या के रामजन्म भूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी को जबरदस्त झटका देते हुए इस मामले में जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 21 मार्च को इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि इस समस्या का समाधान दोनों पक्ष आपसी सहमति से कोर्ट के बाहर ही निकाले। इसमें अगर किसी प्रकार की कोई जरूरत पड़ी तो कोर्ट इसमें हस्तक्षेप करेगी। लेकिन कोर्ट के इस सलाह से मुस्लिम पक्ष सहमत नहीं थे जिसके बाद आज फिर से सुनवाई हुई और कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जल्दबाजी नहीं की जा सकती।
आपको बता दें कि भाजपा सांसद ने सुब्रमण्यम स्वामी ने अदालत में जल्द सुनवाई के लिए 21 मार्च को अर्जी दी थी। स्वामी ने कहा था कि हम हमेशा बातचीत को राजी है, मंदिर और मस्जिद, दोनों बननी चाहिए। लेकिन मस्जिद सरयू नदी के पार बननी चाहिए। राम जन्मभूमि पूरी तरह तरह से राम मंदिर के लिए होनी चाहिए। हम भगवान राम का जन्मस्थान नहीं बदल सकते, लेकिन मस्जिद हम कहीं भी बना सकते हैं।”
स्वामी की इसी याचिका का जवाब देते हुए कोर्ट ने उनसे पूछा कि इस मामले में आप पक्षकार हैं? कोर्ट ने कहा हमे नहीं पता कि आप इस केस के पक्षकार है या नहीं इसलिए हमारे पास आपकी बात सुनने का वक्त नहीं है।
केंद्र सरकार का पक्ष:-
केंद्रीय सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने इस मसले ने कहा ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह का समर्थन करते हुए कहा था कि इससे बेहतर कोई फैसला नहीं हो सकता क्योंकि राम-मंदिर कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है ब्लकि यह लाखों-करोड़ो लोगों की आस्था का मामला है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री पीपी चौधरी और उमा भारती ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए आपसी हल की सलाह को बेहतर बताया था।
विपक्ष की प्रतिक्रिया:-
वहीं दूसरी ओर विपक्ष इस मसले में मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि अगर दोनों पक्षों से जुड़े लोग आपसी रजामंदी वाला हल निकाल लें तो इससे समाज में बेहतर अमल हासिल हो सकेगा और सभी पक्ष एक-दूसरे का सम्मान करेंगे। वहीं सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी ने कहा था कि यह मसला अगर आपसी सहमति से हल हो पाता हो कोर्ट जाने की नौबत ही नहीं पड़ती। इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में रोज सुनवाई करनी चाहिए। इसी तरीके से एक दिन इस मामले का फैसला हो जाएगा।