एक टीवी शो के दौरान वरिष्ठ पत्रकार ने राजदीप सरदेसाई (Rajdeep Sardesai) ने इतिहासकार और लेखक Vikram Sampath से सवाल पूछा कि यह फैसला कौन करेगा कि असल में विनायक दामोदर सावरकर क्या हैं ? क्या वो स्वतंत्रता सेनानी हैं, हिंदुवादी नेता, गौ रक्षक को मूर्ख कहने वाले हैं, छुआछुत के खिलाफ बोलने बोले या मुस्लिम विरोधी हैं ? इसका जबाव देते हुए लेखक विक्रम संपथ ने कहा कि Savarkar के कई चेहरे और रूप हो सकते हैं।
सावरकर के माफीनामे पर विक्रम संपथ ने कहा कि सावरकर ने जो याचिका लिखी थी वो Mercy Petition नहीं थी और वो अकेले नहीं थे जिन्हें अंग्रेज सरकार की तरफ से पेंशन मिलती थी, हमारे देश में हजारों स्वतंत्रता सेनानी को पेंशन मिलती थी जिनकी डिग्री जब्त कर ली गई थी।
अंग्रेजों को सावरकर पर विश्वास नहीं था
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने सावरकर पर कभी भी विश्वास नहीं किया अगर वो करते तो वो उनका प्रयोग करते क्योंकि सावरकर बहुत पढ़ें लिखे थे, उन्होंने लंदन से वकालत की थी और उनके संबध बहुत अच्छे थे। अगर अंग्रेज उन पर विश्वास करते तो वो वायसराय के कैबिनेट के सदस्य भी बन सकते थे। हर 5 साल बाद उनकी याचिका Review के लिए जाती थी और हर बार अंग्रेज कहते है कि हम इस इंसान पर विश्वास नहीं कर सकते ।
सावरकर के भगत सिंह के साथ खास संबंध थे
विक्रम संपथ ने शो दौरान बताया कि उनके भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, दुर्गा भाभी और रास बिहारी बोस जैसे अनेक क्रांतिकारियों के साथ Underground नेटवर्क थे इसलिए अंग्रेजों ने सावरकर पर कभी भी विश्वास नहीं किया। भगत सिंह ने सावरकर की किताब का 1857 की क्रांति पर आधारित किताब का चौथा संस्करण छापा था। उन्होंने अपनी जेल डायरी में सावरकर की किताब हिंदुपदपादशाही का मेंशन किया है। भगत सिंह ने मतवाला पत्रिका में सवावरकर पर लेख लिखे। अपने स्वतंत्रता सेनानियों के संबंध को हम समझ नहीं पाए यह भी हमारे इतिहास में खोट है।
सावरकर हत्या में शामिल नहीं थे
जहा तक महात्मा गांधी की हत्या में सावरकर की भूमिका की बात है तो हर बार सुप्रीम कोर्ट ने गांधी की हत्या के लिए उनके रोल को नहीं माना है। 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गांधी की हत्या में सावरकर की भूमिका वाली याचिका को Review करने से मना कर दिया था। अगर देश का सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला देता तो हमें मानना चाहिए।
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