करिश्माई नेता करूणानिधि के निधन के बाद डीएमके पर कब्जे की लड़ाई शुरु हो गई है। मंगलवार को एमके की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक से पहले करुणानिधि के बेटे एमके अलागिरी ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत पर अपनी दावेदारी ठोक दी है। अलागिरी ने कहा है कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि उनके पिता के समर्थक उनका साथ देंगे। अलागिरी की इस सक्रियता ने करुणानिधि के छोटे बेटे एमके स्टालिन और उनके समर्थकों को चौंका दिया है।
फिलहाल पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष करुणानिधि के छोटे बेटे एमके स्टालिन हैं। स्टालिन को पिछले ही साल कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। वे विधानसभा में विपक्ष के नेता भी हैं। ऐसा समझा जा रहा है कि दिवंगत करुणानिधि के बाद अब उन्हें कल पार्टी अपना पूर्ण अध्यक्ष चुन सकती है।
अलागिरि को करुणानिधि ने पार्टी से 2014 में तब बाहर कर दिया था जब उन्होंने तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह और तमिलनाडु में ठीक-ठाक प्रभाव रखने वाले एडीएमके के प्रमुख वाइको से मुलाकात की थी ।
कुल मिलाकर देखा जाए तो डीएमके के साथ भी ठीक कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा कि एआईएडीएमके की नेता जयललिता के निधन के बाद पार्टी संगठन पर कब्जे को लेकर हुआ था। एआएडीएमके पर कब्जे के लिए अलग-अलग गुटों में काफी रस्साकशी हुई थी। अन्नाद्रमुक दो फाड़ भी हो गया था और वीके शशिकला के भतीजे दिनाकरण ने अलग पार्टी बनायी।
वहीं, इ पलानीसामी और ओ पन्नीरसेल्वम एक समझौते के तहत एक साथ आ गये और सत्ता व संगठन में अपने-अपने अधिकार क्षेत्र का बंटवारा कर लिया। उस समय जयललिता की भतीजी ने भी संगठन पर कब्जे की कोशिश की थी ।
लेकिन डीएमके के विभिन्न गुट एक साथ आ पायेंगे या नही यह देखना दिलचस्प होगा। हालांकि माना यह जा रहा है कि अलागिरी और स्टालिन का एक साथ आ पाना बहुत मुश्किल होगा। अलागिरि बार बार यही दोहरा रहे हैं कि उनके पिता के असली संबंधी और तमिलनाडु में उनके सभी समर्थक उसके साथ हैं। माना जा रहा है कि यह बयान देकर अलागिरी दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं ।
दरअसल, एआईएडीएमके और डीएमके द्रविड़ राजनीति की दो प्रमुख पार्टियां रही है और जे जयललिता और करुणानिधि द्रविड़ राजनीति के दो करिश्माई चेहरे रहे हैं। दोनों नेताओं के निधन के बाद द्रविड़ राजनीति में एक शून्य बना है। अगर दोनों दलों में राजनीतिक संकट गहराता है तो जाहिर तौर पर इसका सबसे बड़ा फायदा राजनीति में सक्रिय हुए अभिनेता कमल हसन को मिलेगा।
ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन