Nupur Sharma Case: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के विरोध में उतरा वकीलों का एक संगठन, CJI को हस्तक्षेप करने की रखी मांग

महिला वकीलों ने कहा कि पहले भी पुरुषों द्वारा ऐसी टिप्पणियां की गई है फिर भी इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी गई। यह देखा गया है कि विवादास्पद विषयों पर निर्भीक होकर बोलने वाली महिलाओं को कुछ पुरुष बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।

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Nupur Sharma Case
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Nupur Sharma Case: भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा के पैंगबर मुहम्मद पर की गई टिप्पणी के बाद देश भर में उनका कड़ा विरोध किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों का कुछ महिला वकिलों ने विरोध किया है। उन्होनें टिप्पणियों पर हस्तक्षेप की मांग को लेकर CJI को पत्र लिखा है। महिला वकीलों CJI को लिखे पत्र में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पारदीवाला की बेंच द्वारा नूपुर शर्मा की याचीका पर सुनवाई के दौरान जो टिप्पणियां की गई वह दुर्भाग्यपूर्ण हैं इसमें महिला वकिलों ने CJI को हस्तक्षेप की मांग की है। बता दें कि इसके पहले भी इस मामले में कई याचिकाएं दाखिल हुई हैं, जिसमें मांग की गई है कि शीर्ष न्यायालय को अपनी मौखिक टिप्पणी वापस लेनी चाहिए

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Nupur Sharma Case: महिला वकीलों ने कहा कि यह टिप्पणियां दुर्भाग्यपूर्ण हैं

महिला वकीलों कहना है कि पहले भी पुरुषों द्वारा ऐसी टिप्पणियां की गई है फिर भी इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी गई। इतना ही नही विवादास्पद विषयों पर निर्भीक होकर बोलने वाली महिलाओं को कुछ पुरुष बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। हम पितृसत्तात्मक सोच (महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक महत्व देते हैं ) लोगों द्वारा महिलाओं के अधिकारों को कुचलने के प्रयासों का कड़ा विरोध करते हैं।

अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि नुपुर शर्मा एक युवा महिला हैं जो पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में बेहतर काम कर रही हैं। ऐसी महिलाओं को प्रोत्साहित और समर्थन करने की जरूरत है। हालांकि हम मानते है यदि महिलाओं द्वारा कुछ भी अनुचित किया जाता है तो उन्हें किसी भी तरीके से रियायत नहीं दी जानी चाहिए।

Nupur Sharma
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बता दें कि याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा था कि, “जिस तरह से उन्होंने पूरे देश में भावनाओं को भड़काया है … और देश में जो हो रहा है उसके लिए यह महिला अकेले जिम्मेदार है।” अदालत ने यह भी कहा कि उन्हें पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है और उन्होंने आम नागरिकों के लिए उपलब्ध न्यायिक अधिकार खो दिया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी को अपने लिखित आदेश में शामिल नहीं किया था, फिर भी देश भर में इसका विरोध शुरू हो गया।

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