सामाजिक विकास के लिए आरक्षण को आधार बनाना उचित है। लेकिन यह ध्यान देने की भी बात है कि इससे अपना स्वार्थ न नापा जाए। हालांकि पदोन्नति में आरक्षण की मांग काफी समय से उठ रही थी और उन मांगों को सुनते हुए बिहार की नीतीश सरकार ने इस पर फैसला ले लिया है। बिहार की नीतीश सरकार ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण देने का फैसला किया है। एक विशेष रिट पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट के 17 मई और छह जून के पारित आदेशों के संदर्भ में केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से एक सलाह मिलने के बाद ऐसा किया गया है। हालांकि एक सरकारी अधिसूचना के मुताबिक, ऐसे प्रमोशन सुप्रीम कोर्ट के आगे के आदेशों के तहत होगी। बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले भी प्रोन्नति में आरक्षण की वकालत करते रहे हैं।

नीतीश सरकार के इस फैसले को 2019 लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी काफी अहम माना जा रहा है। बिहार में दलितों को लेकर एनडीए और महागठबंधन में खींचतान जारी है। दोनों पक्ष दलितों को अपने-अपने पाले में करने की कोशिश में जुटे हैं। खबरों के मुताबिक, बिहार में एससी-एसटी कर्मियों की प्रोन्‍नति पर कोर्ट के फैसले से रोक लगी थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान पीठ के फैसले तक रोक हटा लेने के बाद राज्‍य सरकार ने यह कदम उठाया है। 17 मई 2018 और 5 जून 2018 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने प्रोन्‍नति में आरक्षण को ले नए दिशानिर्देश जारी किए। इसके बाद बिहार सरकार ने एक कमेटी बनाई, जिसकी सिफारिशों के आधार पर यह फैसला लिया।

बता दें कि यूपी में भी मायावती ने पदोन्नति में आरक्षण को लेकर काफी जोर लगाया था। लेकिन बात नहीं बन पाई। ध्यान रहे की प्रमोशन में आरक्षण का मसला काफी विवादित रहा है। दलितों के हिमायती इस मसले पर लगातार सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार की तरफ से अदालत में मजबूती से पक्ष नहीं रखने की वजह से प्रमोशन में आरक्षण नहीं मिल रहा है।

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