प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नियमों में बदलाव के डर से बैंकों का लोन जान-बूझकर नहीं चुकाने वाले कंपनियों के प्रमोटरों ने अपनी-अपनी कंपनी के डर से 83,000 करोड़ रुपए का बकाया चुका दिया है। इसकी वजह उनकी बैंको के प्रति चिंता नहीं बल्कि दिवालिया कानून में संसोधन है। इससे पहले की उन पर संसोधन दिवालिया कानून इन्सॉल्वंसी ऐंड बैंकरप्ट्सी कोड  के तहत कार्रवाई शुरु हो जाए उन्होंने ब83,000 करोड़ रुपए का बकाया चुका दिया।

कंपनी मामलों के मंत्रालय की ओर से जुटाए आंकड़े बताते हैं कि 2,100 से ज्यादा कंपनियों ने बैंकों का लोन वापिस कर दिया है। आपको बता दें कि इनमें से ज्यादातर ने आईबीसी में संशोधन के बाद बैंकों को बकाया चुकाया।

सरकार ने आईबीसी में संशोधन करके उन कंपनियों के प्रमोटरों को नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल की ओर से कार्रवाई शुरु हो जाने के बाद नीलाम हो रही किसी कंपनी के लिए बोली लगाने पर रोक लगा दी गई जिसे दिया गया लोन बैंको को नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स घोषित करनी पड़ी। ध्यान रहें कि जब लोन की ईएमआई 90 दिनों तक रुक जाए तो उसे एनपीए घोषित कर दिया जाता है।

आईबीसी में संशोधन का उद्योग जगत ने कड़ा विरोध किया क्योंकि एस्सर ग्रुप के रुइया, भूषण ग्रुप के सिंघल और जयप्रकाश ग्रुप के गौड़ जैसे नामी-गिरामी घरानों को रेजॉलुशन प्रोसेस में भाग लेने से रोक दिया। एक आशंका यह भी थी कि बड़े पैमाने पर कंपनियों अयोग्य घोषित करे दिए जाने के कारण नीलाम हो रही कंपनियों के लिए बड़ी बोलियां नहीं लग पाई।जिससे बैंकों को अपने लोन का छोटा हिस्सा ही वापस मिल सकेगा।

इसके जवाब में सरकार ने कहा कि प्रमोटरों को बैंकों को चूना लगाकर अपनी ही कंपनी औने-पौने दाम में वापस पाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हालांकि, सरकार ने बैंकों का बकाया चुकानेवाले प्रमोटरों को बोली लगाने की अनुमति जरूर दे दी। एक सूत्र ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, ‘लोन डिफॉल्टर्स पर वास्विक दबाव बकाया वापस करने का है। आईबीसी की वजह से कर्ज लेने और देने की संस्कृति बदल रही है।

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