महाराष्ट्र में आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय ने आंदोलन तेज कर दिया है। आंदोलनकारियों के हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद राज्य के बीड और धाराशिव जिलों में प्रशासन चौकन्ना है। राजनेताओं की संपत्तियों को निशाना बनाकर हिंसा और आगजनी की सिलसिलेवार घटनाओं के बाद बीड जिले में पुलिस ने 49 लोगों को गिरफ्तार किया है। छत्रपति संभाजीनगर जिले से भी हिंसा और आगजनी की घटनाएं सामने आई हैं। इस बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के दो विधायकों- संदीप क्षीरसागर और प्रकाश सोलंके और पूर्व मंत्री जय क्षीरसागर के घरों में आग लगाने की घटना सामने आई हैं।
बीड जिले से बीजेपी विधायक लक्ष्मण पवार ने मराठा आरक्षण की मांग के समर्थन में विधानसभा से अपना इस्तीफा दे दिया। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के करीबी माने जाने वाले नासिक और हिंगोली के दो शिवसेना सांसदों ने भी मराठा आरक्षण की मांग के समर्थन में इस्तीफा दे दिया है। दरअसल मराठा चाहते हैं कि उनको सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिया। ये लोग लंबे वक्त से इसकी मांग कर रहे हैं।
मराठा आरक्षण क्या है?
मराठा, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से एक “योद्धा” जाति के रूप में पहचाना जाता है, में मुख्य रूप से किसान और ज़मींदार आते हैं और ये महाराष्ट्र की आबादी का एक तिहाई हिस्सा हैं। 1960 के बाद से अब तक राज्य के 20 मुख्यमंत्रियों में से 12 इसी समुदाय के रहे हैं। इसलिए यह समुदाय राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रहा है। हालांकि बीते समय में मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के मराठों की समृद्धि में गिरावट आई है।
मराठा आरक्षण की मांग दशकों से चली आ रही है। मराठों के लिए आरक्षण की मांग 1981 में शुरू हुई थी। मराठा महासंघ और मराठा सेवा संघ ने 1997 में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा आरक्षण के लिए एक मजबूत आंदोलन चलाया था। यह मुद्दा 2000 में फिर से उठाया गया था।
मराठा आरक्षण की टाइमलाइन
अगस्त, 2016 में, अहमदनगर के कोपर्डी गांव में 15 वर्षीय लड़की के बलात्कार और हत्या की निंदा करने के लिए मराठों ने मराठा क्रांति मोर्चा के तहत औरंगाबाद में रैली की। इसके बाद 2016 और 2017 में राज्य भर में सरकारी रोजगार और शिक्षा में समुदाय के लिए आरक्षण को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनों के बाद मराठा आरक्षण, बलात्कारियों को कड़ी सजा और किसानों के लिए ऋण माफी की मांग करते हुए जिला कलेक्टर को दस सूत्री मांग पत्र सौंपा गया।
दिसंबर 2016 में, महाराष्ट्र सरकार ने भी मराठों के लिए आरक्षण को वैध ठहराने के लिए एक हलफनामा दायर किया और दावा किया कि इसने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया है। तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 2017 में न्यायमूर्ति एनजी गायकवाड़ की अध्यक्षता में एनजी गायकवाड़ आयोग की स्थापना करने का निर्णय लिया। आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि मराठों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) के तहत कोटा दिया जाना चाहिए। भले ही पैनल ने मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का सुझाव दिया, लेकिन उसने कोटा प्रतिशत को परिभाषित नहीं किया और इसे राज्यों पर निर्णय लेने के लिए छोड़ दिया।
मराठों को 2018 में महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा अधिनियम के तहत आरक्षण दिया गया था। इस कदम को राज्य विधान सभा और परिषद दोनों द्वारा अनुमोदित किया गया था; और उन्हें कांग्रेस और एनसीपी जैसे विपक्षी दलों का भी समर्थन प्राप्त था।
कानूनी लड़ाई जारी है
दिसंबर 2018 में, मराठा आरक्षण फैसले को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं और इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन बताया गया, जिसमें कहा गया है कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए। हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण को बरकरार रखा, लेकिन कहा कि मराठों को मौजूदा 16 प्रतिशत आरक्षण के बजाय, नौकरियां प्रदान करते समय कोटा को घटाकर 13 प्रतिशत और शैक्षिक अनुदान प्रदान करते समय 12 प्रतिशत किया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय के आदेश के बाद 2020 में समुदाय को एक बड़ा झटका लगा जब फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई। सितंबर 2020 में शीर्ष अदालत ने मराठा समुदाय को दिए गए आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए इस पर रोक लगाने का फैसला किया और कहा कि यह आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निर्धारित प्रावधानों का उल्लंघन करता है। मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के प्रावधान को रद्द कर दिया।
SC द्वारा मराठा आरक्षण को रद्द करने और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत कोटा बरकरार रखने के बाद, महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि जब तक मराठा आरक्षण का मुद्दा हल नहीं हो जाता, तब तक समुदाय के आर्थिक रूप से कमजोर लोग EWS कोटा इस्तेमाल कर सकते हैं।
राज्य सरकार ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि वह सुप्रीम कोर्ट में एक क्यूरेटिव पिटीशन दायर करेगी और कहा कि समुदाय के ‘पिछड़ेपन’ के विस्तृत सर्वेक्षण के लिए एक नया पैनल बनाया जाएगा। हालांकि, राज्य सरकार ने अभी तक सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल नहीं की है।
क्या कुनबी जाति प्रमाणपत्र से समस्या का समाधान हो जाएगा?
महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को शांत करने के लिए घोषणा की कि वह मराठवाड़ा के उन सभी मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र प्रदान करेगी जिनके पास निज़ाम-युग के दस्तावेज़ हैं, जो उन्हें कुनबी के रूप में मान्यता देते हैं। महाराष्ट्र राजस्व विभाग ने आज (31 अक्टूबर) से मराठा समुदाय के सदस्यों को वैध दस्तावेजों के साथ कुनबी प्रमाण पत्र जारी करना शुरू कर दिया है।
राज्य में कुनबी समुदाय कृषि-संबंधी व्यवसाय से जुड़ा है और उन्हें ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत रखा गया है। मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने का मतलब यह होगा कि मराठों को कुनबी समुदाय के भीतर गिना जाएगा और उन्हें ओबीसी का दर्जा दिया जाएगा, जिससे उन्हें ओबीसी समूह को मिलने वाले आरक्षण का लाभ मिलेगा। अन्य ओबीसी समूहों ने आरक्षण लाभ के लिए मराठों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने का विरोध किया है। जबकि मराठा राज्य की आबादी का 32% हैं, ओबीसी 52% हैं और राज्य में 382 जातियों में विभाजित हैं।