विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बुधवार 5 अक्टूबर को भारत की एक दवा कंपनी (Pharmaceutical Company) द्वारा बनाए गए 4 कफ-सिरप (खांसी की दवाई) जिनको अफ्रीकी देश गाम्बिया में प्रयोग किया जा रहा था को लेकर चेतावनी जारी की है. WHO की चेतावनी के बाद भारत का दवा क्षेत्र (Indian Pharma Industry) एक बार फिर से सुर्खियों में है.
WHO के अनुसार गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत गुर्दों की हालत बेहद खराब हो जाने की वजह से हुई है. बहुत मुमकिन है कि इन दवाईयों के इस्तेमाल के कारण ही बच्चों की मौत हुई हो. WHO ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इन कफ-सिरप में डायथेलेन ग्लाईकोल (Diethylene Glycol) और इथिलेन ग्लाईकोल (Ethylene Glycol) की इतनी मात्रा है कि ये इंसानों के लिए जानलेवा हो सकते हैं.
50 बिलियन डॉलर का है भारतीय दवा उद्योग
स्वास्थ्य, दुनिया के सामाजिक और आर्थिक विकास में सबसे बड़ा योगदान रखता है. यही कारण है कि दवा उद्योग को किसी भा देश के आर्थिक विकास में एक प्रमुख उद्योग के रूप में देखा जाता है. लगभग 50 बिलियन डॉलर (लगभग 4 लाख करोड़) वाला भारतीय दवा उद्योग, वैश्विक दवा क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है और हाल के वर्षों में खासकर कोरोना महामारी के बाद से इसमें बड़े बदलाव भी देखने को मिले हैं.
भारतीय दवा उद्योग (Indian Pharma Industry) मात्रा (Quantity) के आधार पर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है और मूल्य (Price) के आधार पर यह विश्व का 14वां सबसे बड़ा बाजार है. भारत में 3,000 दवा कंपनियां और 10,500 विनिर्माण इकाइयों का नेटवर्क है.
वर्ष 1969 में भारतीय दवाओं की भारतीय बाजार में महज 5 फीसदी हिस्सेदारी थी जो वर्ष 2020 तक बढ़कर 85 फीसदी तक पहुंच गई. भारत में दवा उद्योग को ‘रसायन और उर्वरक मंत्रालय’ एवं ‘स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय’ द्वारा नियंत्रित किया जाता है.

भारतीय दवा उद्योग
विश्व में अलग-अलग बीमारियों के 60 फीसदी टीकों की मांग की पूर्ति भारत की दवा कंपनियों (Indian Pharma Industry) द्वारा की जाती है. अमेरिका जैसे विकसित देश में सामान्य दवाओं की मांग का 40 फीसदी और ब्रिटेन की कुल दवाओं की 25 फीसदी आपूर्ति भारत में बनी दवाओं से ही होती है.
विश्व भर में एड्स जैसी खतरनाक बीमारी के लिये प्रयोग की जाने वाली एंटी-रेट्रोवायरल (Anti-Retroviral) दवाओं की 80 फीसदी आपूर्ति भारतीय दवा कंपनियां ही करती हैं.
भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार देश से होने वाला फार्मा निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 के 90,415 करोड़ रूपये तुलना में 103 फीसदी की वृद्धि दर्ज करते हुए वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 1,83,422 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारत ने सबसे ज्यादा दवाओं का निर्यात किया है.

क्यों भारतीय दवाओं को दी जाती है प्राथमिकता
भारतीय दवाओं को कम कीमत में अच्छी गुणवत्ता के साथ-साथ सक्षम भारतीय फार्मा कंपनियों की वजह से हमेशा ही प्राथमिकता दी जाती है.
भारत के वैश्विक निर्यातों (Global Exports) में फार्मास्यूटिकल एवं औषधियों का हिस्सा 5.92 फीसदी है. भारत सबसे ज्यादा अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, रूस एवं नाईजीरिया को दवाएं भेजता है. अमेरिका के बाहर एफडीए (अमेरिकी दवा नियामक) स्वीकृत संयंत्रों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है.
भारत में फार्मा क्षेत्र के लिए पहल –
बल्क ड्रग्स पार्क योजना
भारत सरकार राज्यों के साथ साझेदारी में 3 मेगा बल्क ड्रग पार्क का निर्माण कर रही है, 2020 में आई इस योजना के तहत 5 वर्षों में 3,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. केंद्र सरकार राज्यों को प्रति बल्क ड्रग पार्क के लिए 1,000 करोड़ रुपए का अनुदान देगी. बल्क ड्रग्स पार्क योजना से देश में थोक दवाओं की विनिर्माण लागत कम होने के साथ-साथ दवाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भरता कम होने की उम्मीद है.
बल्क ड्रग पार्क में सॉल्वेंट रिकवरी प्लांट, डिस्टिलेशन प्लांट, पावर और स्टीम यूनिट्स, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट आदि जैसी सामान्य सुविधाएं उपलब्ध होंगी.
कितने प्रकार की होती हैं दवाएं?
जेनेरिक दवा (Generic Drug)
जेनेरिक दवाएं वे होती हैं जिनके निर्माण या वितरण के लिये किसी पेटेंट की जरूरत नहीं पड़ती. जेनेरिक दवाओं की रासायनिक संरचना ब्रांडेड दवाओं जैसी ही होती है लेकिन उनकी बिक्री रासायनिक नाम से ही की जाती है. जैसे- क्रोसिन या पैनाडॉल ब्रांडेड दवाएं हैं वहीं इसकी जेनेरिक दवा का नाम पैरासीटामोल है.
जेनेरिक और ब्रांडेड दवा में फर्क –
जब भी कोई कंपनी लंबे समय के शोध और परीक्षण के बाद किसी दवा का निर्माण करती है तो वह उस दवा का पेटेंट (Patent) करा लेती है, आमतौर पर किसी दवा के लिए 10-15 वर्षों के लिये पेटेंट दिया जाता है. पेटेंट एक तरह का लाइसेंस होता है जो पेटेंट धारक कंपनी को ही संबंधित दवा के निर्माण व वितरण का अधिकार देता है.
जबतक पेटेंट की समयसीमा है तब तक केवल पेटेंट धारक कंपनी या जिसको वो मंजूरी देती है वे ही उस दवा का निर्माण कर सकती है. पेटेंट की अवधि समाप्त होने के बाद कोई भी कंपनी उस दवा का निर्माण कर सकती है, लेकिन हर कंपनी की दवा का नाम और मूल्य अलग-अलग होता है, ऐसी दवाओं को ब्रांडेड जेनेरिक दवा के नाम से जाना जाता है.
भारत सबसे ज्यादा जेनेरिक दवाओं का निर्माण करता है. भारतीय बाजार में मिलने वाली मात्र 10 फीसदी दवाएं ही पेटेंट हैं और लगभग 70 फीसदी दवाएं ब्रांडेड जेनेरिक हैं. भारत विश्व को सबसे अधिक जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराता है. वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं की कुल खपत का 20 फीसदी भारत से निर्यात किया जाता है.
केंद्र सरकार ने भारतीय दवा उद्योग के विकास के लिये वर्ष 2025 तक अपनी कुल जीडीपी का 2.5 फीसदी इस क्षेत्र पर खर्च करने का लक्ष्य रखा है. इसके अलावा ग्रीन फील्ड फार्मा परियोजना (विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में स्थापित की जाने वाली दवा कंपनियां) के लिये ऑटोमैटिक रूट के तहत 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) को मंजूरी दी गई है.